कुआलालंपुर। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कुआलालंपुर में आयोजित 20वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) में आतंकवाद को "निरंतर और संक्षारक खतरा" बताते हुए वैश्विक समुदाय से इसके प्रति 'जीरो टॉलरेंस' का दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के नेताओं और प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए जयशंकर ने स्पष्ट और दृढ़ता से कहा कि "आतंकवाद के खिलाफ हमारी रक्षा का अधिकार कभी भी दांव पर नहीं लगाया जा सकता है।" उनका यह बयान भारत के उस राष्ट्रीय वक्तव्य का हिस्सा था, जिसने क्षेत्रीय सहयोग, आर्थिक स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए 19 देशों के नेताओं को एक मंच पर लाया।
विदेश मंत्री ने आतंकवाद को "निरंतर और संक्षारक खतरा" करार देते हुए कहा, "दुनिया को शून्य सहिष्णुता प्रदर्शित करनी चाहिए; इसमें अस्पष्टता (ambivalence) के लिए कोई जगह नहीं है। आतंकवाद के खिलाफ हमारी रक्षा के अधिकार से कभी समझौता नहीं किया जा सकता है।" जयशंकर के इस कड़े रुख ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर आतंकवाद के मुद्दे पर भारत की अडिग स्थिति को एक बार फिर रेखांकित किया है।
वैश्विक संघर्षों पर चिंता और शांति प्रयासों का समर्थन
आतंकवाद के अलावा, जयशंकर ने वैश्विक स्तर पर चल रहे संघर्षों के दूरगामी परिणामों पर भी प्रकाश डाला, विशेष रूप से गाजा और यूक्रेन में जारी तनाव का जिक्र किया। उन्होंने कहा, "हम ऐसे संघर्ष भी देख रहे हैं जिनके महत्वपूर्ण और व्यापक प्रभाव पड़ रहे हैं। गहरे मानवीय संकट के अलावा, वे खाद्य सुरक्षा को कमजोर करते हैं, ऊर्जा प्रवाह को खतरा पैदा करते हैं और व्यापार को बाधित करते हैं।"
इस पृष्ठभूमि में, भारत ने वैश्विक शांति की पहल का समर्थन किया। जयशंकर ने कहा, "इसलिए भारत गाजा शांति योजना का स्वागत करता है। हम यूक्रेन संघर्ष को भी जल्द समाप्त करने की कामना करते हैं।" ये टिप्पणियां दर्शाती हैं कि भारत न केवल अपने पड़ोस में, बल्कि व्यापक वैश्विक स्थिरता के लिए भी प्रतिबद्ध है।
आसियान के प्रति भारत की मजबूत प्रतिबद्धता
विदेश मंत्री ने आसियान (ASEAN) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया और शांति तथा स्थिरता सुनिश्चित करने में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के बढ़ते महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "भारत ईएएस की गतिविधियों और इसकी भविष्य की दिशा का पूर्ण समर्थन करता है। हमने हाल ही में ऊर्जा दक्षता नीतियों पर ईएएस ज्ञान विनिमय कार्यशाला और उच्च शिक्षा संस्थानों के एक सम्मेलन की मेजबानी की थी।"
समुद्री सहयोग के क्षेत्र में भारत की बढ़ती भागीदारी को रेखांकित करते हुए, जयशंकर ने कहा कि "समुद्री सहयोग को आगे बढ़ाने की हमारी प्रतिबद्धता आसियान आउटलुक ऑन द इंडो-पैसिफिक और 1982 यूएनसीएलोएस (UNCLOS) के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता के अनुरूप मजबूत बनी हुई है।" उन्होंने घोषणा की कि 2026 को आसियान-भारत समुद्री सहयोग वर्ष के रूप में मनाया जाएगा, जो इस क्षेत्र में भारत के गहरे जुड़ाव को दर्शाता है।
सांस्कृतिक विरासत और सुरक्षा सहयोग की पहल
जयशंकर ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) के मंच पर एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पहल का प्रस्ताव रखा। उन्होंने गुजरात के प्राचीन बंदरगाह लोथल में अगले ईएएस समुद्री विरासत उत्सव की मेजबानी करने की इच्छा व्यक्त की। लोथल, सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख केंद्र रहा है, और इस प्रस्ताव के माध्यम से भारत अपने समृद्ध समुद्री इतिहास को दुनिया के सामने लाना चाहता है। इसके साथ ही, भारत 7वें ईएएस समुद्री सुरक्षा सहयोग सम्मेलन की मेजबानी करने का भी इरादा रखता है, जो इस क्षेत्र में सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए भारत की सक्रिय भूमिका को दर्शाता है।
शिखर सम्मेलन की व्यापक रूपरेखा
यह 20वां पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन एक ऐतिहासिक अवसर भी था, क्योंकि नेताओं ने ईएएस सहयोग की 20वीं वर्षगांठ मनाई और इसकी प्रगति की समीक्षा की। शिखर सम्मेलन में आसियान सदस्यों, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित 19 देशों के नेताओं ने भाग लिया। इस वर्ष के शिखर सम्मेलन में ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपतियों को भी आसियान अध्यक्ष के अतिथि के रूप में शामिल किया गया था, जो क्रमशः ब्रिक्स और जी20 के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में वैश्विक समूहों के बीच बढ़ते जुड़ाव को रेखांकित करता है।
ईएएस के साथ-साथ, मलेशिया 47वें आसियान शिखर सम्मेलन और संबंधित शिखर सम्मेलनों, तीसरे एजेईसी (AZEC) लीडर्स मीटिंग और 5वें आरसीईपी (RCEP) शिखर सम्मेलन की भी मेजबानी कर रहा है, जो क्षेत्र में बहुपक्षीय जुड़ाव की व्यापकता को दर्शाता है। विदेश मंत्री जयशंकर सोमवार की देर शाम मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम द्वारा आयोजित रात्रिभोज में भी शामिल होंगे।
सांस्कृतिक कूटनीति का नया अध्याय
विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा गुजरात के प्राचीन बंदरगाह लोथल (Lothal) में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) समुद्री विरासत महोत्सव आयोजित करने का प्रस्ताव, भारत की सांस्कृतिक कूटनीति (Cultural Diplomacy) और रणनीतिक पहुँच को गहरा करने का एक बहुआयामी प्रयास है। यह प्रस्ताव केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि इसके गहरे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भू-रणनीतिक निहितार्थ हैं:
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
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जड़ों का प्रदर्शन: लोथल, सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख केंद्र और विश्व का सबसे पहला ज्ञात बंदरगाह है, जिसका इतिहास लगभग 4500 वर्ष पुराना है। इस स्थल पर EAS महोत्सव का आयोजन करके, भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र के सामने न केवल अपनी समृद्ध समुद्री विरासत को प्रस्तुत करेगा, बल्कि यह भी स्थापित करेगा कि भारत सदियों से एक प्रमुख समुद्री राष्ट्र रहा है, न कि केवल एक भूमि-आधारित सभ्यता।
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सभ्यताओं का मिलन: यह महोत्सव आसियान और पूर्वी एशियाई देशों को भारत की प्राचीन संस्कृति से सीधे जोड़ेगा। यह उन्हें याद दिलाएगा कि इन क्षेत्रों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के समुद्री मार्ग कितने पुराने हैं। यह साझा विरासत क्षेत्रीय सद्भाव और आपसी समझ को मजबूत करती है।
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'विश्व-गुरु' की छवि: अपनी प्राचीन विरासत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शित करके, भारत अपनी सॉफ्ट पावर (Soft Power) को बढ़ावा देता है और खुद को एक आधुनिक, लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है जिसकी जड़ें गहरे इतिहास में निहित हैं।
भू-रणनीतिक और आर्थिक निहितार्थ
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समुद्री प्रभुत्व पर जोर: यह कदम हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) और आसियान आउटलुक ऑन द इंडो-पैसिफिक (AOIP) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है। लोथल में आयोजन करके, भारत प्रतीकात्मक रूप से इस क्षेत्र में समुद्री संपर्क, सुरक्षा और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए अपनी अग्रणी भूमिका पर ज़ोर देता है।
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गुटों का जुड़ाव (Synergy with Groups): आसियान, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की उपस्थिति में समुद्री विरासत का प्रदर्शन, क्वाड (Quad) और ईएएस के सदस्य देशों के साथ भारत के साझा समुद्री हितों को और पुष्ट करता है। यह चीन के बढ़ते समुद्री प्रभाव के बीच, एक नियम-आधारित और स्वतंत्र इंडो-पैसिफिक के विचार को बढ़ावा देता है।
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गुजरात का वैश्विक मंच: गुजरात, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है, को एक प्रमुख सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र के रूप में प्रदर्शित करने का यह एक बड़ा अवसर है। यह आयोजन विदेशी निवेश और पर्यटन को आकर्षित करने के लिए राज्य के भू-आर्थिक महत्व को बढ़ाता है।
संक्षेप में, लोथल में EAS महोत्सव का प्रस्ताव, भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति में संस्कृति और इतिहास को एक शक्तिशाली कूटनीतिक उपकरण के रूप में प्रयोग करने की एक दूरदर्शी रणनीति है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

