जबलपुर. मध्य प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं के लिए आने वाले दिन बड़े झटके लेकर आ सकते हैं. जबलपुर समेत पूरे प्रदेश में बिजली वितरण प्रणाली में बड़े बदलाव की सुगबुगाहट तेज हो गई है, जिसके तहत घाटे में चल रही सरकारी बिजली वितरण कंपनियों के महत्वपूर्ण कार्य अब निजी कंपनियों को सौंपने की व्यापक तैयारी की जा रही है. सूत्रों के मुताबिक, यह कदम केंद्र सरकार के दबाव और राज्य की वितरण कंपनियों के लगातार बढ़ते घाटे की भरपाई के नाम पर उठाया जा रहा है. इस संभावित निजीकरण की खबर सामने आते ही सोशल मीडिया से लेकर आम उपभोक्ता वर्ग में महंगी बिजली और मनमानी बिलिंग को लेकर विरोध और आशंकाओं का माहौल गरमा गया है.
जो जानकारी सामने आ रही है, उसके अनुसार, सरकार की योजना बिजली वितरण प्रणाली में 'सुधार' की आड़ में वितरण का कार्य निजी हाथों में सौंपने की है. इसका सीधा मतलब है कि विद्युत पोल, मीटर और तार जैसे मूलभूत ढाँचे पर स्वामित्व तो सरकारी बिजली कंपनी का ही रहेगा, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कार्य जैसे बिल वसूली, नए कनेक्शन जारी करने और पूरे वितरण क्षेत्र के संचालन का जिम्मा निजी कंपनियां संभालेंगी. विशेषज्ञ इसे सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल की तरफ बढ़ने वाला कदम बता रहे हैं, जिसमें वितरण निगमों की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी निजी हाथों में बेचने का प्रस्ताव भी शामिल हो सकता है. यह बदलाव सीधे तौर पर लाखों उपभोक्ताओं के मासिक बजट को प्रभावित करेगा, क्योंकि निजी कंपनियों का मुख्य लक्ष्य लाभ कमाना होगा, जिसके चलते बिजली की दरों में भारी वृद्धि की आशंका जताई जा रही है.
इस संभावित बदलाव पर बिजली क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का तर्क है कि सरकारी बिजली कंपनियों के घाटे का मुख्य कारण समय पर सब्सिडी का भुगतान न होना, सरकारी विभागों द्वारा समय पर बिल न चुकाना और बड़े पैमाने पर बिजली चोरी है. उनका मानना है कि यदि सरकारी विभाग अपना पूरा बिजली बिल चुका दें, सरकार सब्सिडी का पैसा समय पर जारी करे और बिजली चोरी को सख्ती से रोका जाए, तो किसी भी ग्रांट या निजी कंपनी की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी. ऐसे में वितरण व्यवस्था का निजीकरण घाटे का समाधान कम और उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालने का प्रयास ज्यादा माना जा रहा है.
जबलपुर, जो कि मध्य प्रदेश विद्युत मंडल का मुख्यालय रह चुका है, वहाँ के उपभोक्ताओं और कर्मचारियों में इस खबर को लेकर विशेष आक्रोश है. कर्मचारी संगठन पहले से ही केंद्र सरकार द्वारा बिजली वितरण निगमों के निजीकरण को लेकर राज्यों पर बनाए जा रहे दबाव के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. उनका आरोप है कि निजीकरण वर्टिकल रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर हजारों पदों की छंटनी की साजिश है, जो प्रदेश की समूची बिजली व्यवस्था को खतरे में डाल सकती है. अखिल भारतीय पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने भी इस मामले पर कड़ा विरोध जताते हुए राष्ट्रव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है.
उपभोक्ता परिषदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि पूर्व में किए गए बिजली सुधारों का बोझ भी अंततः आम उपभोक्ताओं पर ही पड़ा है, और अब निजीकरण के नाम पर उनसे और अधिक वसूली की जाएगी. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जबलपुर और प्रदेश के अन्य शहरों के नागरिक लगातार अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं. हैशटैग #बिजली_निजीकरण_विरोध और #महंगी_बिजली_एमपी जैसे कीवर्ड ट्रेंड कर रहे हैं, जहाँ लोग अपने बिलों के स्क्रीनशॉट साझा कर रहे हैं और सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग कर रहे हैं. नागरिकों का कहना है कि निजी कंपनियां केवल शहरी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेंगी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और भी बदतर हो सकती है. यह मामला अब केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं रहा, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बन चुका है, जिस पर सरकार को जल्द ही स्पष्टीकरण देना पड़ सकता है. आने वाले दिनों में कर्मचारी संगठनों और उपभोक्ता संघों द्वारा बड़े विरोध प्रदर्शन की तैयारी की जा रही है, जो इस मुद्दे को और गरमा सकता है.
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