भारतीय क्रिकेट ड्रेसिंग रूम में खुला विद्रोह कोच मदन लाल को बीसीसीआई ने तुरंत हटाया

भारतीय क्रिकेट ड्रेसिंग रूम में खुला विद्रोह कोच मदन लाल को बीसीसीआई ने तुरंत हटाया

प्रेषित समय :20:49:20 PM / Tue, Oct 28th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम में कोच और खिलाड़ियों के बीच तालमेल पिछले एक दशक से टीम की पहचान रहा है, चाहे वह रवि शास्त्री हों या राहुल द्रविड़ और अब गौतम गंभीर. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब ड्रेसिंग रूम के अंदर का माहौल बेहद तनावपूर्ण और विद्रोह से भरा हुआ था. ग्रेग चैपल युग से भी पहले, भारतीय क्रिकेट इतिहास के आधुनिक दौर के सबसे नाटकीय घटनाक्रमों में से एक तब हुआ जब 1997 के श्रीलंका दौरे के दौरान खिलाड़ियों ने तत्कालीन मुख्य कोच मदन लाल से बात करना बंद कर दिया. एक अखबार में दिए गए कोच के सनसनीखेज इंटरव्यू के बाद यह स्थिति उत्पन्न हुई, जिसके परिणामस्वरूप बोर्ड को हस्तक्षेप करना पड़ा और मदन लाल को उनके पद से हटा दिया गया.

यह घटना पूर्व बीसीसीआई प्रबंधक रत्नाकर शेट्टी की आत्मकथा ‘ऑन बोर्ड—माई ईयर्स इन बीसीसीआई’ में विस्तार से दर्ज है और हाल ही में 'रैंडम क्रिकेट फोटोज़' नामक चैनल द्वारा इंस्टाग्राम पर इस कहानी के सामने आने के बाद यह एक बार फिर चर्चा में आ गई है. 1983 विश्व कप विजेता हीरो मदन लाल 1996 से 1997 तक भारतीय टीम के कोच थे. रत्नाकर शेट्टी के विवरण के अनुसार, यह विवाद तब शुरू हुआ जब 'द हिंदू' समाचार पत्र में मदन लाल का एक विस्फोटक इंटरव्यू प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने श्रीलंका दौरे पर मौजूद टीम के कई सक्रिय सदस्यों पर असामान्य रूप से खरी और तीखी टिप्पणियाँ कीं.

जिन खिलाड़ियों की सार्वजनिक आलोचना की गई उनमें अजय जडेजा, रॉबिन सिंह, सबा करीम और अनिल कुंबले जैसे दिग्गज शामिल थे. मदन लाल ने अजय जडेजा की आलोचना करते हुए कथित तौर पर कहा था कि जडेजा को यह तय कर लेना चाहिए कि वह बल्लेबाज के रूप में खेल रहे हैं या गेंदबाज के रूप में, और "आप एक मैच में अच्छा प्रदर्शन करके अगले पांच में विफल नहीं हो सकते." उन्होंने रॉबिन सिंह को "एक ऐसा क्रिकेटर बताया जो कड़ी मेहनत करता है लेकिन वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ऑलराउंडर के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता." विकेटकीपर सबा करीम को उन्होंने "एक औसत विकेटकीपर" बताते हुए कहा कि वह अपनी बल्लेबाजी से "मैच का रुख नहीं बदल सकते." उस समय के भारत के प्रमुख स्पिनर अनिल कुंबले को भी नहीं बख्शा गया; मदन लाल ने कहा कि वह कुंबले की गेंदबाजी से "खुश नहीं" हैं और उन्हें टर्न के बजाय लाइन और लेंथ पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी.

यह इंटरव्यू कोच के यह कहकर समाप्त हुआ था कि, "मुझे पता है कि हम जीत नहीं रहे हैं, लेकिन मैं अकेला क्या कर सकता हूँ?"

इन टिप्पणियों ने भारतीय खेमे और क्रिकेट बोर्ड को स्तब्ध कर दिया. तत्कालीन टीम मैनेजर रत्नाकर शेट्टी ने तुरंत पत्रकार विजय लोकपल्ली से संपर्क किया, जिन्होंने पुष्टि की कि मदन लाल ने प्रकाशन से पहले उन बयानों पर सहमति व्यक्त की थी. शेट्टी के वृत्तांत के अनुसार, इसके बाद ड्रेसिंग रूम में लगभग विद्रोह की स्थिति पैदा हो गई. खिलाड़ी कई दिनों तक अपने कोच से बात करने से इनकार करते रहे, जिससे टीम के अंदर एक असहज और बर्फीला माहौल बन गया.

तनाव तब अपने चरम पर पहुँच गया जब श्रृंखला के दौरान एक वनडे मैच में, जिस खिलाड़ी की कोच ने आलोचना की थी, उसने शतक जड़ा. सूत्रों के अनुसार, उस बल्लेबाज ने जश्न मनाते हुए अपने बल्ले का हैंडल मीडिया एनक्लोजर की ओर इशारा किया—इसे कोच को दिया गया अस्पष्ट चुनौती भरा संदेश माना गया. हालांकि शेट्टी की किताब यह स्पष्ट नहीं करती कि यह इशारा मोहम्मद अजहरुद्दीन या अजय जडेजा में से किसने किया था, जिन्होंने उस मैच में शतक जड़े थे.

इस विवाद के कुछ ही महीनों के भीतर, बीसीसीआई ने त्वरित कार्रवाई करते हुए मदन लाल को भारतीय टीम के मुख्य कोच के पद से हटा दिया. उनकी जगह अंशुमान गायकवाड़ को नियुक्त किया गया. इस घटना ने मदन लाल के लगभग 10 महीने के कोचिंग कार्यकाल का एक तूफानी अंत कर दिया, जो भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे विवादास्पद कोचिंग अवधियों में से एक बना हुआ है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-