कभी कहा जाता था कि कैंसर से लड़ाई सिर्फ दवाओं और इलाज से जीती जा सकती है, लेकिन अब विज्ञान यह साबित कर रहा है कि शरीर की सक्रियता भी इस जंग में उतनी ही प्रभावशाली भूमिका निभा सकती है। ऑस्ट्रेलिया की एडिथ कोवन यूनिवर्सिटी (Edith Cowan University) में किए गए एक नए अध्ययन ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है — सिर्फ एक 45 मिनट का व्यायाम सत्र भी शरीर में ऐसे जैविक परिवर्तन उत्पन्न कर सकता है, जो कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को लगभग 30% तक धीमा कर देता है।
यह शोध The Times of India में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार स्तन कैंसर रोगियों पर केंद्रित था। वैज्ञानिकों ने पाया कि जब मरीजों ने एक सत्र के लिए वर्कआउट किया — चाहे वह हाई-इंटेंसिटी कार्डियो एक्सरसाइज़ हो या वेट ट्रेनिंग — उनके रक्त में “मायोकाइन (Myokine)” नामक विशेष प्रोटीन की मात्रा बढ़ गई। ये मायोकाइन मांसपेशियों से निकलते हैं और शरीर में सिग्नल की तरह कार्य करते हुए कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने का काम करते हैं।
वैज्ञानिकों की खोज और नया दृष्टिकोण
इस अध्ययन का नेतृत्व कर रहे प्रमुख शोधकर्ता डॉ. रॉब न्यूटन और उनकी टीम ने बताया कि व्यायाम के दौरान शरीर से निकलने वाले मायोकाइन वास्तव में “एंटी-कैंसर सिग्नल” की तरह कार्य करते हैं। उन्होंने स्तन कैंसर के रोगियों के रक्त नमूनों का अध्ययन किया और पाया कि व्यायाम के बाद इन नमूनों ने प्रयोगशाला में कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को 30% तक धीमा कर दिया।
डॉ. न्यूटन के अनुसार, “यह बेहद रोमांचक खोज है क्योंकि यह दिखाती है कि शरीर स्वयं एक ‘प्राकृतिक दवा’ तैयार कर सकता है। व्यायाम सिर्फ फिटनेस नहीं बढ़ाता, यह कैंसर की प्रगति को भी प्रभावित कर सकता है।”
एक सत्र के बाद इतना प्रभाव कैसे?
अध्ययन में शामिल प्रतिभागियों ने 45 मिनट तक विभिन्न प्रकार की एक्सरसाइज की — कुछ ने साइक्लिंग जैसी एरोबिक एक्टिविटी की, जबकि कुछ ने मांसपेशियों पर आधारित रेजिस्टेंस ट्रेनिंग की। व्यायाम के तुरंत बाद उनके खून के नमूने लिए गए और इन नमूनों को कैंसर कोशिकाओं के साथ कल्चर किया गया। परिणाम चौंकाने वाले थे — सभी नमूनों ने कोशिका वृद्धि को काफी हद तक धीमा कर दिया।
यह परिणाम दिखाता है कि व्यायाम का प्रभाव तत्काल होता है, और इसके लिए लंबे प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। यह “एक्सरसाइज़ मेडिसिन” के क्षेत्र में एक नया अध्याय खोलता है, जहाँ व्यायाम को एक चिकित्सीय हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है।
मायोकाइन: शरीर की प्राकृतिक दवा
मायोकाइन वे जैविक अणु हैं जो मांसपेशियों से निकलते हैं और पूरे शरीर में संदेशवाहक की तरह कार्य करते हैं। ये न सिर्फ सूजन कम करते हैं, बल्कि कोशिकाओं में मेटाबॉलिक बैलेंस भी बनाए रखते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि ये मायोकाइन कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकते हुए उनकी ऊर्जा आपूर्ति को बाधित कर सकते हैं।
अर्थात, जब व्यक्ति व्यायाम करता है तो शरीर की मांसपेशियाँ सिर्फ गतिशील नहीं होतीं — वे एक तरह की केमिकल फैक्ट्री बन जाती हैं, जो कैंसर से लड़ने वाले रसायन तैयार करती हैं।
कैंसर रोगियों के लिए नया संदेश
यह अध्ययन उन लाखों स्तन कैंसर रोगियों के लिए आशा की नई किरण बन सकता है, जो सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन के बाद भी स्वस्थ रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
डॉ. न्यूटन कहते हैं, “हमने देखा कि व्यायाम के बाद शरीर खुद ही ट्यूमर वृद्धि को रोकने वाले रासायनिक सिग्नल भेजने लगता है। यह प्रभाव बेहद शक्तिशाली और प्राकृतिक है। इसका अर्थ है कि कैंसर रोगियों के इलाज में व्यायाम को ‘पूरक चिकित्सा’ के रूप में जोड़ा जा सकता है।”
कितना व्यायाम है लाभदायक?
विशेषज्ञों के अनुसार, हर व्यक्ति को सप्ताह में कम से कम 150 मिनट की मध्यम स्तर की या 75 मिनट की तीव्र व्यायाम गतिविधि करनी चाहिए। लेकिन इस अध्ययन से यह भी सिद्ध होता है कि सिर्फ एक सत्र, यानी 45 मिनट का समय भी कैंसर से रक्षा की दिशा में बड़ा कदम हो सकता है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि शरीर का सक्रिय रहना मायोकाइन के निरंतर स्राव को प्रोत्साहित करता है, जो लंबे समय में कैंसर कोशिकाओं को कमजोर बना सकता है।
मनोवैज्ञानिक और सामाजिक असर
कैंसर रोगियों में अवसाद और मानसिक थकान आम बात है। व्यायाम न केवल शारीरिक रूप से लाभकारी है बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ करता है। अध्ययन से पता चला कि जिन रोगियों ने नियमित व्यायाम किया, उनमें आत्मविश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण में भी उल्लेखनीय सुधार देखा गया।
डॉ. न्यूटन बताते हैं, “व्यायाम मरीजों को यह एहसास दिलाता है कि वे बीमारी के खिलाफ खुद कुछ कर सकते हैं। यह सशक्तिकरण की भावना भी कैंसर से लड़ाई में एक महत्वपूर्ण हथियार है।”
आगे के अध्ययन की ज़रूरत
हालांकि यह शोध बेहद उत्साहजनक है, वैज्ञानिक अब यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कौन-से मायोकाइन कैंसर कोशिकाओं पर सबसे अधिक असर डालते हैं और क्या अलग-अलग व्यायाम प्रकारों से इनके प्रभाव में भिन्नता आती है। भविष्य में इन मायोकाइन को थेरेप्यूटिक एजेंट के रूप में विकसित करने की दिशा में भी शोध चल रहा है।
स्वास्थ्य नीति के लिए संकेत
इस अध्ययन के नतीजे स्वास्थ्य नीतियों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अब समय आ गया है जब अस्पतालों में कैंसर रोगियों के लिए “एक्सरसाइज़ थेरेपी” को एक अनिवार्य भाग बनाया जाए। जैसे डॉक्टर दवा लिखते हैं, वैसे ही व्यायाम का प्रिस्क्रिप्शन भी दिया जाना चाहिए।
ऑस्ट्रेलिया की इस शोध ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कैंसर के खिलाफ जंग सिर्फ अस्पतालों की दीवारों तक सीमित नहीं है। हमारा शरीर, अगर सही तरह से सक्रिय किया जाए, तो स्वयं एक उपचार केंद्र बन सकता है। एक साधारण 45 मिनट की वर्कआउट, चाहे वह तेज़ चलना हो या हल्का रेजिस्टेंस ट्रेनिंग, शरीर में ऐसे रासायनिक बदलाव लाती है जो कैंसर कोशिकाओं की रफ्तार पर ब्रेक लगा सकते हैं।
कह सकते हैं कि यह अध्ययन सिर्फ कैंसर उपचार की दिशा में नहीं, बल्कि स्वास्थ्य विज्ञान की सोच में भी एक क्रांतिकारी बदलाव का संकेत है — जहाँ दवा और व्यायाम अब एक साथ जीवन की रक्षा के दो पहिए बन चुके हैं।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

