नई दिल्ली.कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आ रही है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) अब वेतन सीमा को ₹15,000 से बढ़ाकर ₹25,000 प्रतिमाह करने पर विचार कर रहा है। सूत्रों के अनुसार, इस प्रस्ताव पर चर्चा ईपीएफओ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड (CBT) की अगली बैठक में की जाएगी, जो दिसंबर 2025 या जनवरी 2026 में आयोजित हो सकती है। यदि यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है, तो इससे देशभर के करीब 1 करोड़ अतिरिक्त कर्मचारियों को भविष्य निधि (Provident Fund) और कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) के दायरे में लाया जा सकेगा।
वर्तमान में ईपीएफओ के नियमों के तहत वे कर्मचारी जिनका बेसिक पे ₹15,000 या उससे कम है, उन्हें अनिवार्य रूप से ईपीएफ और ईपीएस में शामिल किया जाता है। नियोक्ता और कर्मचारी दोनों को उनके मूल वेतन का 12% हिस्सा भविष्य निधि में जमा करना होता है। वहीं जिनका वेतन ₹15,000 से अधिक है, वे स्वैच्छिक रूप से इन योजनाओं से जुड़ सकते हैं, लेकिन उनके लिए यह अनिवार्य नहीं होता।
श्रम मंत्रालय के एक अधिकारी ने Moneycontrol को बताया कि “वेतन सीमा में ₹10,000 की वृद्धि से सामाजिक सुरक्षा लाभ अनिवार्य रूप से लगभग एक करोड़ और व्यक्तियों तक पहुंचेंगे। यह कदम उन कर्मचारियों के लिए राहत साबित होगा जिनका वेतन ₹15,000 से थोड़ा अधिक है और जो अब तक ईपीएफओ के दायरे से बाहर हैं।”
श्रमिक संगठनों का कहना है कि देश के महानगरों और औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले बड़ी संख्या में मध्यम-कौशल और निम्न-कौशल कर्मचारी ऐसे हैं जिनका वेतन ₹15,000 से ऊपर है, लेकिन वे औपचारिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली का हिस्सा नहीं बन पाते। पिछले कुछ वर्षों से ट्रेड यूनियन लगातार मांग कर रही हैं कि वेतन सीमा को बढ़ाकर ₹25,000 किया जाए ताकि अधिकतम श्रमिकों को इस सुरक्षा दायरे में शामिल किया जा सके।
अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो इसका सीधा असर निजी क्षेत्र के छोटे उद्योगों, कारखानों, सुरक्षा सेवाओं, रिटेल और आईटी सपोर्ट स्टाफ जैसे सेक्टरों में कार्यरत लाखों कर्मचारियों पर पड़ेगा। इन कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से ईपीएफ और ईपीएस में पंजीकरण कराना होगा, जिससे उनके भविष्य के लिए एक स्थायी पेंशन और बचत कोष सुनिश्चित होगा।
क्या है ईपीएफओ की वेतन सीमा का अर्थ?
वेतन सीमा वह अधिकतम मासिक बेसिक सैलरी है जिस पर अनिवार्य भविष्य निधि (PF) और कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) का योगदान आधारित होता है। वर्तमान में यह सीमा ₹15,000 तय है। यानी यदि किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी ₹15,000 या उससे कम है, तो उसे और उसके नियोक्ता दोनों को 12% योगदान देना होता है। यह राशि कर्मचारी के भविष्य निधि खाते में जमा होती है, जिसका हिस्सा सेवानिवृत्ति के समय या विशेष परिस्थितियों में निकाला जा सकता है।
यदि यह सीमा ₹25,000 तक बढ़ाई जाती है, तो इसका अर्थ होगा कि ₹25,000 तक के वेतन वाले सभी कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से भविष्य निधि का हिस्सा बनना पड़ेगा। इससे न केवल उनके रिटायरमेंट फंड में वृद्धि होगी, बल्कि लंबी अवधि की पेंशन सुरक्षा भी मजबूत होगी।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
इस निर्णय के संभावित असर पर वित्त विशेषज्ञों और उद्योग जगत की राय बंटी हुई है। आर्थिक दृष्टि से, इससे औपचारिक रोजगार संरचना (Formal Employment) को मजबूती मिलेगी और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलेगा। सरकार का लक्ष्य भी अगले कुछ वर्षों में सोशल सिक्योरिटी कवरेज को 90% कार्यबल तक पहुंचाना है।
वहीं, कुछ उद्योग संगठनों ने आशंका जताई है कि इस कदम से नियोक्ताओं पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढ़ेगा, क्योंकि 12% योगदान उन्हें भी देना होगा। छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) के लिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है। फिर भी, दीर्घकालिक दृष्टि से यह श्रम बाजार में स्थिरता और उत्पादकता बढ़ाने वाला कदम साबित हो सकता है।
कर्मचारियों के लिए फायदे
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भविष्य निधि में अधिक योगदान:
₹25,000 बेसिक सैलरी पर 12% की दर से हर माह ₹3,000 कर्मचारी और ₹3,000 नियोक्ता द्वारा जमा किए जाएंगे। इससे कर्मचारी की सेवानिवृत्ति राशि में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। -
पेंशन योजना में मजबूती:
कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) के अंतर्गत अधिक कर्मचारियों का नामांकन होगा, जिससे पेंशन कवरेज में व्यापक सुधार आएगा। -
सामाजिक सुरक्षा का विस्तार:
लाखों ऐसे कर्मचारी जो अब तक स्वैच्छिक तौर पर ही शामिल हो पाते थे, अब स्वतः इस व्यवस्था में जुड़ जाएंगे। इससे असंगठित क्षेत्र का औपचारिकरण (Formalization) होगा। -
लंबी अवधि की बचत में बढ़ोतरी:
ईपीएफ खाते में अधिक योगदान होने से कर्मचारियों की दीर्घकालिक बचत में इजाफा होगा, जो वित्तीय स्थिरता और रिटायरमेंट प्लानिंग के लिए लाभदायक है।
हालिया बदलावों की पृष्ठभूमि
ईपीएफओ ने हाल ही में अपने सात करोड़ से अधिक सब्सक्राइबर के लिए आंशिक निकासी (Partial Withdrawals) के नियमों को उदार बनाया है। अब सदस्यों को अपने खाते में 25% राशि न्यूनतम बैलेंस के रूप में बनाए रखनी होगी, जबकि शेष 75% तक की राशि वे निकाल सकते हैं। साथ ही, पूर्ण निकासी (Final Settlement) के लिए समयसीमा को दो माह से बढ़ाकर 12 माह और पेंशन निकासी की समयसीमा को दो माह से बढ़ाकर 36 माह किया गया है।
इन सुधारों के बाद अब यदि वेतन सीमा में वृद्धि भी लागू हो जाती है, तो यह देश की सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था में एक बड़ा कदम माना जाएगा।
ईपीएफओ द्वारा वेतन सीमा को ₹25,000 तक बढ़ाने की संभावित पहल को रोजगार सुरक्षा की दिशा में ऐतिहासिक कदम कहा जा सकता है। यह निर्णय कर्मचारियों के हितों की रक्षा, पेंशन प्रणाली को सुदृढ़ करने और असंगठित क्षेत्र को औपचारिक रूप देने की दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
हालांकि, इसे लागू करने से पहले नियोक्ताओं की वित्तीय चिंताओं, श्रम बाजार की प्रतिस्पर्धा और राजस्व संतुलन का भी ध्यान रखना होगा। यदि सरकार और उद्योग जगत के बीच सामंजस्य बनता है, तो यह बदलाव करोड़ों भारतीय श्रमिकों के जीवन में स्थायी वित्तीय सुरक्षा और आत्मविश्वास लेकर आएगा।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

