नई दिल्ली। अभिनेता परेश रावल अभिनीत फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ अपने रिलीज से पहले ही विवादों में घिर गई है। ताजमहल की उत्पत्ति को लेकर फिल्म में किए गए चित्रण को लेकर उठे विवाद ने अदालत तक दस्तक दी, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को इस पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया। याचिका में फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की गई थी। हालांकि, अदालत ने कहा कि मामला स्वतः सूचीबद्ध होगा और तत्काल सुनवाई की आवश्यकता नहीं है। फिल्म का प्रदर्शन 31 अक्टूबर को देशभर में होना तय है।
विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब पिछले महीने फिल्म का पोस्टर जारी हुआ। इसमें ताजमहल के गुंबद से भगवान शिव की मूर्ति उभरती दिखाई गई थी और टैगलाइन थी — “अगर जो कुछ आपने सीखा है, वह झूठ हो तो? सच्चाई सिर्फ छिपी नहीं है, उसका न्याय हो रहा है।” इस पोस्टर के सामने आते ही सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं शुरू हो गईं। कुछ यूजर्स ने इसे “प्रचार आधारित” और “झूठे इतिहास” को बढ़ावा देने वाला बताया।
विवाद बढ़ने पर फिल्म की निर्माता कंपनी स्वर्णिम ग्लोबल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड ने सफाई जारी करते हुए कहा कि फिल्म का उद्देश्य धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। उनके अनुसार, “‘द ताज स्टोरी’ किसी धार्मिक विवाद पर आधारित नहीं है और न ही यह दावा करती है कि ताजमहल किसी शिव मंदिर पर बना है। फिल्म का विषय ऐतिहासिक तथ्यों की खोज पर केंद्रित है। हम दर्शकों से आग्रह करते हैं कि वे फिल्म देखकर अपनी राय बनाएं।”
इसके बावजूद, विरोध थमा नहीं। कई समीक्षकों ने इसे हाल ही में आई फिल्मों ‘द उदयपुर फाइल्स’ और ‘द बंगाल फाइल्स’ से तुलना करते हुए कहा कि इस तरह की फिल्में इतिहास की व्याख्या को राजनीतिक रूप देने की कोशिश करती हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट में इस फिल्म के खिलाफ जनहित याचिका (PIL) दाखिल की गई थी, जिसे अधिवक्ता शकील अब्बास ने दायर किया। उन्होंने आरोप लगाया कि फिल्म ताजमहल की उत्पत्ति से जुड़े “मनगढ़ंत और भड़काऊ” विचार प्रस्तुत करती है। याचिका में फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की गई और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) को फिल्म के प्रमाणन की समीक्षा करने या आवश्यक कट लगाने का निर्देश देने की अपील की गई, ताकि “साम्प्रदायिक सौहार्द बना रहे।”
याचिका में यह भी कहा गया कि यह फिल्म “एक विशेष प्रचार एजेंडे” के तहत बनाई गई है, जो “इतिहास की विद्वता पर अविश्वास पैदा कर सकती है” और “ताजमहल की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचा सकती है,” जो यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है। इसमें यह भी उल्लेख किया गया कि फिल्म में ऐसे दृश्य हैं जो समाज में तनाव भड़का सकते हैं।
हालांकि, जब यह मामला मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया, तो अदालत ने कहा — “आज क्यों? प्रमाणन कब जारी हुआ था? यह स्वतः सूचीबद्ध होगा, क्षमा करें।” इस प्रकार तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया गया।
वहीं, इसी मुद्दे पर अयोध्या के भाजपा नेता राजनीश सिंह ने भी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और सेंसर बोर्ड से फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। सिंह का कहना है कि यह फिल्म उनके द्वारा दायर की गई एक पुरानी न्यायिक याचिका पर आधारित है। उन्होंने 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में एक याचिका दायर की थी, जिसमें ताजमहल के 22 बंद कमरों को खोलकर “ऐतिहासिक तथ्यों की जांच” करने की मांग की गई थी। वह याचिका उस समय खारिज हो गई थी। अब सिंह का कहना है कि फिल्म में उनकी न्यायिक याचिका के विषय का “अनुचित व्यावसायिक उपयोग” किया गया है।
उन्होंने कहा, “मुझे जानकारी मिली है कि ‘द ताज स्टोरी’ मेरी याचिका के विषय पर आधारित है। यह मेरे बौद्धिक और कानूनी अधिकारों का उल्लंघन है। किसी न्यायिक मामले का व्यावसायिक उपयोग अनुचित है।”
इस बीच, अभिनेता परेश रावल ने फिल्म का बचाव करते हुए कहा कि ‘द ताज स्टोरी’ का मकसद किसी विवाद को जन्म देना नहीं, बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों के कम ज्ञात पहलुओं को उजागर करना है। उन्होंने कहा, “फिल्म ताज की वास्तुकला, उसके निर्माण की प्रक्रिया और समय के साथ जुड़े मिथकों पर आधारित है। जैसे, 22,000 कारीगरों के हाथ काटे जाने जैसी चर्चाओं की सच्चाई पर भी इसमें रोशनी डाली गई है। फिल्म का उद्देश्य सच को सामने लाना है।”
रावल ने आगे कहा कि विवाद से समाज का ताना-बाना कमजोर होता है। “यह फिल्म तथ्यों को स्पष्ट करने और प्राथमिक स्रोतों से इतिहास को समझने का प्रयास करती है। अनावश्यक विवाद देश की सामाजिक एकता और मानसिकता को नुकसान पहुंचाते हैं,” उन्होंने कहा।
फिल्म में एक वकील की भूमिका निभा रहे अभिनेता जाकिर हुसैन ने भी यही रुख अपनाया। उन्होंने कहा, “इतिहास से जुड़े कुछ विषय हमेशा विवाद पैदा करते हैं। यह घटना 16वीं सदी की है और कई ऐतिहासिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। जब ताजमहल बन रहा था, तब विभिन्न यात्रियों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से इसका वर्णन किया। वक्त के साथ अर्थ बदलते गए। हमारी फिल्म दर्शकों के सामने एक स्वस्थ बहस प्रस्तुत करती है।”
फिल्म के निर्देशक तुषार अमरीश गोयल ने कहा कि परेश रावल और जाकिर हुसैन का सहयोग इस फिल्म की मुख्य शक्ति है। उन्होंने कहा, “दोनों अनुभवी कलाकारों ने न्यायालयिक दृश्यों में जिस गंभीरता और संवेदनशीलता से काम किया है, वह फिल्म की आत्मा है।”
फिलहाल, अदालत द्वारा कोई रोक नहीं लगाई गई है, और फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ तय समयानुसार शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज़ होगी। इस विवाद ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि इतिहास और आस्था से जुड़े विषयों पर आधारित फिल्मों को कैसे देखा जाए — मनोरंजन के दृष्टिकोण से या राजनीतिक और वैचारिक संदर्भों में।
जैसे-जैसे सोशल मीडिया पर इस फिल्म के समर्थन और विरोध में बहस तेज हो रही है, यह साफ है कि ‘द ताज स्टोरी’ केवल एक सिनेमाई कृति नहीं, बल्कि भारत के इतिहास और उसकी व्याख्या पर चल रही पुरानी बहस का नया अध्याय बन चुकी है।
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