चक्रवात मोंथा ने मचाई तबाही तेलंगाना में छह की मौत, आंध्र में 5,000 करोड़ का नुकसान

चक्रवात मोंथा ने मचाई तबाही तेलंगाना में छह की मौत, आंध्र में 5,000 करोड़ का नुकसान

प्रेषित समय :21:38:13 PM / Fri, Oct 31st, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

 नई दिल्ली. चक्रवात ‘मोंथा’ ने इस सप्ताह दक्षिण भारत के राज्यों तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में तबाही का तांडव मचाया. तेज़ हवाओं और मूसलाधार बारिश ने कई जिलों को जलमग्न कर दिया, सड़कें टूटीं, बिजली ढांचे बिखर गए और दर्जनों गांव अंधेरे में डूब गए. प्रशासन के मुताबिक, केवल तेलंगाना में छह लोगों की मौत हुई है, जबकि आंध्र प्रदेश में बुनियादी ढांचे को हुए नुकसान का अनुमान 5,000 करोड़ रुपये से अधिक लगाया गया है.

तेलंगाना के सिद्धिपेट जिले में एक दंपती की मौत तब हो गई जब वे एक उफनती धारा को पार करने की कोशिश कर रहे थे. उनकी मोटरसाइकिल बह गई और शव अगले दिन बरामद किए गए. जंगांव जिले में एक महिला भी बाढ़ के तेज बहाव में बह गई. सुर्यापेट में एक व्यक्ति की जान उस वक्त चली गई जब चलते वक्त एक पेड़ उसके ऊपर गिर पड़ा. महबूबाबाद में एक दीवार ढहने से बुजुर्ग महिला की मौत हो गई, जबकि वारंगल में एक अपंग व्यक्ति अपने ही घर में डूबकर मर गया जब बाढ़ का पानी कमरे तक पहुंच गया. कई अन्य लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं. अधिकारियों का कहना है कि उन्हें आशंका है कि कुछ लोग बाढ़ के बहाव में बह गए होंगे.

29 अक्टूबर को हुई मूसलाधार बारिश ने वारंगल, हनमकोंडा, महबूबाबाद, करीमनगर, खम्मम, भद्राद्री कोठागुडेम, नलगोंडा और सिद्धिपेट जैसे जिलों को बुरी तरह प्रभावित किया. सड़कों पर पानी भर गया, निचले इलाकों में घरों में पानी घुस गया और बिजली आपूर्ति घंटों तक ठप रही. ड्रेनेज सिस्टम चरमरा गया और राहतकर्मियों को नावों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना पड़ा.

तेलंगाना की सीमावर्ती आंध्र प्रदेश में नुकसान का पैमाना और भी व्यापक रहा. मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि राज्य को करीब 5,265 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ है. ऊर्जा मंत्री जी. रवि कुमार ने बताया कि “राज्य में लगभग 13,000 बिजली पोल, 3,000 किलोमीटर लंबी लाइनें और 3,000 ट्रांसफार्मर चक्रवात ‘मोंथा’ के दौरान क्षतिग्रस्त हुए.” उन्होंने बताया कि विभाग ने पहले से ही स्थिति का अंदाजा लगाकर दो दिन पहले ही टीमों को तैनात कर दिया था ताकि किसी आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई की जा सके.

कुमार ने कहा कि तेज़ हवाओं के बीच भी सार्वजनिक सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई और बहाली कार्य चक्रवात के दौरान ही शुरू कर दिया गया. लगभग 1,500 कर्मचारी राहत और पुनर्स्थापन कार्यों में लगे रहे, जिससे कई जिलों में 24 घंटे के भीतर बिजली की आपूर्ति फिर से शुरू हो सकी. उन्होंने कहा कि कृषि और मत्स्य पालन से जुड़े फीडरों की बिजली आपूर्ति 48 घंटों के भीतर पूरी तरह बहाल कर दी जाएगी.

विशाखापट्टनम और उसके तटीय इलाकों में समुद्र का जलस्तर कई फीट बढ़ गया. मछुआरों की सैकड़ों नौकाएं क्षतिग्रस्त हो गईं, बंदरगाहों पर खड़ी कई नावें आधी डूब गईं. समुद्री हवाओं की रफ्तार 110 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंची, जिससे कई इलाकों में पेड़ उखड़ गए और संचार नेटवर्क ठप हो गया. तटीय सड़कों पर रेत और मलबे का ढेर लग गया. स्थानीय प्रशासन ने तटीय गांवों से हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया.

तेलंगाना सरकार ने मृतकों के परिजनों को सहायता राशि देने की घोषणा की है. राहतकर्मी अब भी प्रभावित इलाकों में पानी निकालने और बचाव कार्य में लगे हुए हैं. भारी बारिश से फसलों को भी नुकसान हुआ है. किसान संगठनों ने मांग की है कि सरकार खेतों में जलजमाव से हुए नुकसान का शीघ्र आकलन कर मुआवजा दे.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नायडू ने अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे बिजली और सड़क नेटवर्क को जल्द से जल्द दुरुस्त करें. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार हर प्रभावित परिवार तक राहत पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है. नायडू ने बताया कि बिजली विभाग की त्वरित कार्रवाई के चलते बड़े पैमाने पर जनहानि टली. “यदि हमारे दलों ने समय रहते तैयारी न की होती, तो तबाही और भी गहरी होती,” उन्होंने कहा.

हालांकि, आपदा के बीच राजनीतिक बयानबाजी ने भी जोर पकड़ा. ऊर्जा मंत्री रवि कुमार ने वाईएसआरसीपी प्रमुख जगन मोहन रेड्डी पर निशाना साधते हुए कहा कि “जो नेता पहले आपदा निरीक्षणों में रेड कार्पेट बिछवाते थे, अब उन्हें चुप रहना चाहिए.” उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि रेड्डी शायद इस बात से खिन्न हैं कि इस बार Cyclone Montha के बावजूद जनहानि कम हुई, क्योंकि सरकार की तैयारी और विभागों के तालमेल ने स्थिति को नियंत्रण में रखा.

मौसम विभाग के अनुसार, ‘मोंथा’ ने बंगाल की खाड़ी से उठकर आंध्र प्रदेश के उत्तरी तट पर दस्तक दी और फिर तेलंगाना की ओर बढ़ा. इसके प्रभाव से दोनों राज्यों के कई हिस्सों में 200 मिलीमीटर से अधिक बारिश दर्ज की गई. भद्राद्री कोठागुडेम, करीमनगर और वारंगल में नदियां उफान पर रहीं. प्रशासन ने 40 से अधिक जलाशयों के गेट खोलने पड़े ताकि अतिरिक्त पानी को निकाला जा सके.

राहत एजेंसियों ने बताया कि राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की टीमों को दोनों राज्यों में तैनात किया गया था. कई ग्रामीण इलाकों में बाढ़ के कारण सड़क संपर्क टूट गया. कई जगहों पर हेलिकॉप्टरों के जरिये जरूरी सामान पहुंचाया गया.

हालांकि अब मौसम सामान्य होने लगा है, लेकिन नुकसान का आकलन आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है. विद्युत विभाग, सड़क निर्माण एजेंसियां और ग्रामीण विकास टीमें पुनर्स्थापन कार्य में जुटी हैं. स्थानीय लोग अब भी अपने घरों में जमा पानी निकालने और बर्बाद सामान को समेटने में लगे हुए हैं.

चक्रवात ‘मोंथा’ ने एक बार फिर यह याद दिला दिया है कि प्राकृतिक आपदाएं केवल तटीय इलाकों की नहीं, बल्कि आंतरिक जिलों की भी चुनौती बन चुकी हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ते जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसे चक्रवात अधिक तीव्र और बार-बार हो रहे हैं. आंध्र और तेलंगाना की सरकारों के सामने अब पुनर्निर्माण के साथ-साथ भविष्य की बेहतर आपदा प्रबंधन रणनीति तैयार करने की बड़ी चुनौती है.

मोंथा के गुजर जाने के बाद, दोनों राज्यों के लोगों ने राहत की सांस तो ली है, लेकिन पीछे छूटे निशान साफ दिख रहे हैं—पानी में डूबे घर, टूटी सड़कों के किनारे मलबा और बिजली के खंभों से लटकती तारें. फिलहाल प्राथमिकता जीवन को सामान्य करने की है, लेकिन इस विनाशकारी चक्रवात ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रकृति के सामने मनुष्य की तैयारी अब भी अधूरी है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-