तमिलों और बिहारी श्रमिकों पर बयान को लेकर पीएम मोदी पर डीएमके और सहयोगियों का हमला, ‘क्षेत्रीय नफरत फैलाने’ का आरोप

तमिलों और बिहारी श्रमिकों पर बयान को लेकर पीएम मोदी पर डीएमके और सहयोगियों का हमला, ‘क्षेत्रीय नफरत फैलाने’ का आरोप

प्रेषित समय :22:07:39 PM / Fri, Oct 31st, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

चेन्नई.  शुक्रवार को सत्तारूढ़ डीएमके और उसके सहयोगी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा प्रहार किया। बिहार में एक चुनावी सभा के दौरान मोदी के उस बयान पर विवाद खड़ा हो गया जिसमें उन्होंने कहा था — “तमिलनाडु में डीएमके के लोग बिहार के मेहनतकश लोगों को परेशान कर रहे हैं।”

मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एम. के. स्टालिन ने इस टिप्पणी को “तमिलों और बिहारवासियों के बीच नफरत भड़काने का प्रयास” करार दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “मैं एक तमिल के तौर पर दुखी हूं। प्रधानमंत्री को यह याद रखना चाहिए कि वे इस देश के सर्वोच्च पद पर हैं और उन्हें अपने पद की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। भाजपा लगातार तमिलों के खिलाफ जहर उगल रही है — कभी ओडिशा में, तो कभी बिहार में।”

स्टालिन ने कहा कि भाजपा और उसके नेता सस्ती राजनीति कर रहे हैं और उन्हें हिंदू-मुस्लिम या तमिल-बिहारी जैसे विभाजन पैदा करने के बजाय जनता के कल्याण पर ध्यान देना चाहिए।

इधर, सीपीआई(एम) के राज्य सचिव पी. शन्मुगम ने भी प्रधानमंत्री पर दोहरे रवैये का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “ओडिशा विधानसभा चुनाव के दौरान भी मोदी ने सवाल उठाया था कि क्या कोई तमिल ओडिशा पर शासन कर सकता है। उन्होंने पुरी जगन्नाथ मंदिर की चाबियां तमिलनाडु में छिपी होने की अफवाह भी फैलाई थी। अब फिर वही राजनीति दोहराई जा रही है।”

कांग्रेस सांसद माणिकम टैगोर ने कहा कि भाजपा हर चुनाव में तमिलों का अपमान करती है और जब चुनावी माहौल गरम होता है, तब ‘क्षेत्रीय भावनाओं’ को भड़काने का सहारा लेती है।

वहीं, भाजपा की ओर से पलटवार करते हुए राज्य अध्यक्ष नैनार नागेंद्रन ने स्टालिन के पुराने चुनावी बयान की याद दिलाई। उन्होंने कहा, “स्टालिन ने खुद कहा था कि डीएमके उत्तर भारत के लोगों को तमिलनाडु में आने नहीं देगी। तब राष्ट्रीय एकता की बात कहां गई?”

बयानबाज़ी के इस दौर में दक्षिण और उत्तर भारत की राजनीति एक बार फिर आमने-सामने है। तमिलनाडु की सियासत में जहां भाजपा को ‘बाहरी दल’ के तौर पर देखा जाता है, वहीं डीएमके इस विवाद को “तमिल अस्मिता” से जोड़कर राजनीतिक रूप से भुनाने की कोशिश में है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद सिर्फ़ बयान तक सीमित नहीं रहेगा — आने वाले चुनावों में यह तमिलनाडु और बिहार दोनों राज्यों की राजनीतिक हवा को प्रभावित कर सकता है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-