चुनावी रण में राहुल गांधी का जलवा. बेगूसराय के तालाब में मछली पकड़ने से महागठबंधन की राजनीति को मिली नई धार

चुनावी रण में राहुल गांधी का जलवा. बेगूसराय के तालाब में मछली पकड़ने से महागठबंधन की राजनीति को मिली नई धार

प्रेषित समय :19:54:17 PM / Sun, Nov 2nd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

बेगूसराय:बिहार विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच, जहाँ तमाम राजनेता मंचों से चुनावी वादों और आरोप-प्रत्यारोपों की बौछार कर रहे हैं, वहीं लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बेगूसराय की धरती पर एक ऐसा कदम उठाया जिसने चुनावी विमर्श को सीधे ज़मीन से जोड़ दिया। रविवार को चुनाव प्रचार के दौरान, कांग्रेस नेता राहुल गांधी अचानक स्थानीय मछुआरों के साथ एक तालाब में कूद पड़े और पारंपरिक तरीके से मछली पकड़ने की प्रक्रिया में भाग लिया। उनका यह कदम सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट नहीं था, बल्कि महागठबंधन की सामाजिक न्याय और हाशिए पर खड़े समुदायों को गले लगाने की रणनीति का एक मुखर प्रदर्शन बन गया।

घटनाक्रम के अनुसार, राहुल गांधी अपने ट्रेडमार्क सफेद टी-शर्ट और काली पैंट पहने हुए बेगूसराय पहुँचे, जहाँ उन्हें महागठबंधन के उप-मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार मुकेश सहनी और कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार का साथ मिला। मुकेश सहनी स्वयं मछुआरा समुदाय से आते हैं, और इस संयुक्त गतिविधि ने सामाजिक समीकरणों को साधने की स्पष्ट कोशिश की। तालाब में उतरकर, राहुल गांधी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर एक नीली जाली (नेट) को खींचना शुरू किया। यह दृश्य जल्द ही सोशल मीडिया पर छा गया, जहाँ उनकी यह 'मछली पकड़ने की मुहिम' राजनीति के गलियारों में चर्चा का विषय बन गई।

इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, आस-पास मौजूद लोग लगातार "राहुल गांधी ज़िंदाबाद" के नारे लगाते रहे, जिसने चुनावी उत्साह को चरम पर पहुँचा दिया। कन्हैया कुमार भी अपने गृह जिले बेगूसराय में इस कार्यक्रम में शामिल हुए और उन्होंने भी पानी में उतरकर जाल खींचने में हाथ बँटाया। जब जाल बाहर निकाला गया, तो उसमें फँसी मछलियाँ महागठबंधन के लिए 'शुभ शगुन' से कम नहीं थीं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की सीधी भागीदारी से राहुल गांधी की छवि एक 'जन-नेता' के रूप में मजबूत होती है, जो महज़ वातानुकूलित गाड़ियों से रैलियाँ संबोधित करने के बजाय, आम जनता के जीवन का हिस्सा बनने को तैयार हैं। यह दिखाता है कि महागठबंधन वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर 'जमीन से जुड़े' होने का संदेश देने पर ज़ोर दे रहा है।

मछली पकड़ने की यह घटना, जो तुरंत वायरल हो गई, ने पूरे चुनाव प्रचार में एक नया ट्विस्ट ला दिया। यह उस समय हुआ जब बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को होने हैं और परिणाम 14 नवंबर को घोषित किए जाएँगे। इस चुनावी मौसम में, इस दृश्य ने सोशल मीडिया की दुनिया में सनसनी मचा दी, जहाँ एक ओर कांग्रेस समर्थक इसे 'सादगी और जुड़ाव' का प्रतीक बता रहे हैं, वहीं विपक्षी दल इसे 'फोटो ऑप' और राजनीतिक ड्रामा करार दे रहे हैं।

इसी दिन, राहुल गांधी ने अपनी चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखे हमले भी किए। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी न केवल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से "डरे हुए" हैं, बल्कि उन्हें "बड़े व्यापारिक घरानों" द्वारा रिमोट-नियंत्रित किया जा रहा है। गांधी ने महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि केवल चौड़ा सीना होने से कोई मजबूत नहीं हो जाता; महात्मा गांधी का शरीर भले ही दुबला-पतला था, लेकिन उन्होंने उस समय की महाशक्ति ब्रिटिश हुकूमत का सामना किया था। इसके विपरीत, उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के "56 इंच के सीने" वाले दावे पर तंज कसते हुए कहा कि 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान जब ट्रंप ने उन्हें फोन किया तो उन्हें 'पैनिक अटैक' आ गया और पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष दो दिनों में रुक गया। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी केवल ट्रंप से ही नहीं, बल्कि अंबानी और अडानी जैसे बड़े व्यापारिक घरानों द्वारा भी नियंत्रित हैं।

राहुल गांधी ने 1971 के युद्ध का ज़िक्र करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दृढ़ता की तुलना की, जिन्हें अमेरिका ने धमकी दी थी, लेकिन वह नहीं डरीं और वही किया जो देश के लिए ज़रूरी था। उन्होंने दावा किया कि मोदी सरकार के सभी बड़े फैसले, जैसे कि जीएसटी और नोटबंदीछोटे व्यवसायों को नष्ट करने और बड़े व्यापारिक घरानों को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से लिए गए थे। राहुल गांधी का यह हमला, मछली पकड़ने के भावनात्मक और दृश्य-आधारित जुड़ाव के साथ मिलकर, एक दोहरी रणनीति का हिस्सा लगता है, जहाँ एक ओर वह आम लोगों के जीवन से खुद को जोड़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कॉर्पोरेट नियंत्रण जैसे बड़े राजनीतिक मुद्दों पर हमलावर मुद्रा बनाए हुए हैं।

निष्कर्षतः, राहुल गांधी का बेगूसराय में तालाब में कूदना बिहार चुनाव के अंतिम चरण में महागठबंधन के लिए एक बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है। यह घटना दर्शाती है कि चुनावी लड़ाई अब केवल मंचों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सीधे जनता के बीच उनकी दिनचर्या, उनके व्यवसाय और उनके संघर्षों में उतरकर लड़ी जा रही है। इस घटना ने जहाँ एक ओर बिहार की मछुआरा और अति पिछड़ा वर्ग को साधने का प्रयास किया है, वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी को अपने विरोधियों पर निशाना साधने के लिए एक नई नैतिक शक्ति भी प्रदान की है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-