भोपाल/होशंगाबाद/बालाघाट.मध्य प्रदेश के प्रमुख धान उत्पादक क्षेत्रों में पिछले सप्ताह अचानक हुई बे-मौसम भारी बारिश ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। कटाई के लिए तैयार खड़ी धान की फसल पर प्रकृति का यह अप्रत्याशित प्रहार किसानों के लिए दोहरी मार लेकर आया है, क्योंकि खेतों में पानी भरने और तेज हवाओं के साथ हुई बौछारों के कारण हजारों एकड़ की पकी हुई फसलें या तो मिट्टी में बिछ गई हैं या उनमें नमी का अत्यधिक स्तर आ गया है, जिससे उनकी गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हुई है,
इस आकस्मिक मौसम परिवर्तन ने राज्य के कृषि परिदृश्य में एक गंभीर संकट खड़ा कर दिया है, खासकर होशंगाबाद, बालाघाट, मंडला और सिवनी जैसे जिलों में जहां धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है और लाखों किसानों की रोजी-रोटी इसी फसल पर निर्भर करती है। किसान, जो कई महीनों की कड़ी मेहनत और भारी निवेश के बाद सुनहरी फसल कटाई के मुहाने पर खड़े थे, अब अपने खेतों में बर्बाद हो चुकी फसलों को देखकर गहरे सदमे और निराशा में डूबे हुए हैं।बालाघाटजिला मुख्यालय के निकटस्थ ग्राम सुरवाही में फसल क्षति की जानकारी मिलते ही क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता, पूर्व सरपंच एवं मंडी सदस्य जितेन्द्र ‘जित्तू’ चौधरी स्थानीय पटवारी, ग्राम सेवक एवं प्रशासनिक टीम के साथ सुरवाही के विभिन्न खेतों में पहुँचे और प्रभावित फसलों का मुआयना किया।
मुआयना के दौरान कई खेतों में पानी भर जाने तथा कटी-अकटी धान की फसल के गिरने की स्थिति सामने आई। श्री चौधरी ने किसानों से चर्चा कर उनकी समस्याएं सुनीं और कहा कि एक किसान होने के नाते वे इस पीड़ा को भली-भांति समझते हैं। विपदा की घड़ी में किसानों को फौरी राहत दिलाने हर मुमकिन कोशिश उनके द्वारा की जाएगी।
मध्यप्रदेश सरकार एवं जिला प्रशासन से आग्रह किया है कि सभी प्रभावित किसानों के लिए राहत राशि की शीघ्र घोषणा की जाए, जिससे किसानों को समय पर सहायता मिल सके और उनकी आर्थिक स्थिति को संभाला जा सके।
धान की फसल, जो आमतौर पर नवंबर की शुरुआत में मंडियों तक पहुँच जाती है, इस साल रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद जगा रही थी, लेकिन इस विनाशकारी बारिश ने सभी अनुमानों को धराशायी कर दिया है। कृषि विभाग के शुरुआती आकलन और स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, नुकसान का प्रतिशत कुछ क्षेत्रों में 80 से 100 प्रतिशत तक पहुँच गया है, जहाँ पानी अभी भी भरा हुआ है और दाने काले पड़ रहे हैं। तेज बारिश के कारण कटाई की प्रक्रिया पूरी तरह से रुक गई है, और जो फसलें पहले ही काटी जा चुकी थीं, वे भी खुले में भीगने से खराब हो गई हैं, जिससे उनकी सरकारी खरीद की संभावना कम हो गई है। नमी की अधिक मात्रा के कारण अब इन फसलों को मंडी में बेचने पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी मिलने की उम्मीद कम है, क्योंकि निजी खरीदार भी नमी वाले धान को औने-पौने दामों पर खरीद रहे हैं, जिससे किसानों को प्रति क्विंटल हजारों रुपये का नुकसान हो रहा है।
होशंगाबाद जिले के एक किसान रामेश्वर पटेल ने आँखों में आँसू लिए अपनी व्यथा बताते हुए कहा, "मैंने साहूकार से ऊँचे ब्याज पर कर्ज लेकर खाद, बीज और डीजल खरीदा था। फसल इतनी अच्छी थी कि लग रहा था कि इस साल सारा कर्ज उतर जाएगा और बेटी की शादी के लिए कुछ बचत भी हो जाएगी। पर इस एक हफ्ते की बारिश ने सब छीन लिया। खेत में धान की जगह सिर्फ कीचड़ और बिछी हुई फसल का ढेर दिख रहा है। अब समझ नहीं आ रहा कि मैं अगली फसल कैसे लगाऊँगा और इस साल घर का खर्च कैसे चलेगा।" इसी तरह की हृदय विदारक कहानियाँ बालाघाट के हर गाँव से सामने आ रही हैं, जहाँ के किसान पारंपरिक रूप से धान की खेती पर ही निर्भर रहते हैं। किसानों का कहना है कि मौसम विभाग की तरफ से कोई स्पष्ट या समय पर चेतावनी नहीं मिली, जिसके चलते वे समय रहते फसल काटने या उसे सुरक्षित स्थान पर रखने का कोई प्रबंध नहीं कर पाए।
इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, राज्य सरकार ने प्रभावित जिलों में तत्काल गिरदावरी (फसल क्षति का सर्वेक्षण) शुरू करने के निर्देश दिए हैं। राजस्व विभाग और कृषि विभाग के अधिकारियों की संयुक्त टीमें युद्ध स्तर पर खेतों का दौरा कर रही हैं ताकि वास्तविक नुकसान का आकलन किया जा सके। हालांकि, किसानों का आरोप है कि गिरदावरी की प्रक्रिया बहुत धीमी है और कई स्थानों पर अधिकारी ठीक से आकलन नहीं कर रहे हैं, जिससे उन्हें आशंका है कि उन्हें वास्तविक नुकसान की भरपाई नहीं मिल पाएगी। किसानों की मांग है कि उन्हें तत्काल 25,000 रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा दिया जाए और उनके कृषि ऋणों पर ब्याज माफ किया जाए। वहीं, विपक्ष ने सरकार पर इस प्राकृतिक आपदा को गंभीरता से न लेने का आरोप लगाया है और किसानों के लिए विशेष राहत पैकेज की घोषणा की मांग को लेकर राज्य भर में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। राजनीतिक दबाव लगातार बढ़ रहा है क्योंकि विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और कृषि अर्थव्यवस्था राज्य की रीढ़ है।
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव का स्पष्ट संकेत है, जहाँ मौसम का मिजाज अप्रत्याशित होता जा रहा है। जबलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. एस.के. मिश्रा ने बताया, "मानसून की वापसी में देरी और फिर कटाई के समय अचानक पश्चिमी विक्षोभ के कारण हुई यह बारिश असामान्य है। किसानों को अब ऐसी किस्मों का चयन करना होगा जो कम अवधि में तैयार हो सकें या जो जल भराव के प्रति अधिक सहिष्णु हों। इसके अलावा, राज्य को फसल बीमा योजना के प्रभावी क्रियान्वयन और किसानों को मौसम की सटीक और स्थानीय जानकारी समय पर उपलब्ध कराने के लिए एक मजबूत तंत्र विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है।" उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि किसानों को अपनी धान की फसल का तुरंत पानी निकालने और धूप निकलते ही उन्हें सुखाने के लिए व्यापक प्रयास करने चाहिए, हालाँकि अधिकांश फसलें जमीन में मिल जाने के कारण यह कार्य बेहद कठिन हो गया है।
बाजार पर भी इस आपदा का गहरा असर पड़ना तय है। चूंकि मध्य प्रदेश देश में चावल के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में से एक है, इसलिए धान की आपूर्ति में कमी से आने वाले हफ्तों में चावल की कीमतों में उछाल आने की आशंका है। थोक व्यापारियों ने पहले ही अच्छी गुणवत्ता वाले धान का स्टॉक करना शुरू कर दिया है, जिससे मंडियों में कृत्रिम कमी का माहौल बन रहा है। आर्थिक विश्लेषकों का अनुमान है कि ग्रामीण क्षेत्रों की क्रय शक्ति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि किसानों की आय में भारी गिरावट आएगी, जिससे त्योहारी सीजन के बाद राज्य की समग्र अर्थव्यवस्था पर मंदी का दबाव बढ़ सकता है। यह सिर्फ कृषि का नहीं, बल्कि राज्य के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने का भी संकट है। राज्य सरकार को इस स्थिति को राष्ट्रीय आपदा के रूप में देखते हुए केंद्र सरकार से अतिरिक्त वित्तीय सहायता की मांग करनी चाहिए ताकि किसान इस गहरे सदमे से उबर सकें और अगली फसल की बुवाई के लिए तैयार हो सकें। किसानों का भविष्य अब सरकार द्वारा घोषित किए जाने वाले राहत पैकेज और मुआवजे की गति और पर्याप्तता पर टिका हुआ है
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

