मुंबई. फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने एक बार फिर हिंदी फिल्म उद्योग की चमक-दमक और दिखावे पर करारा प्रहार किया है. अपने बेबाक विचारों के लिए मशहूर अनुराग ने इस बार फिल्म प्रमोशन के चलन को “पैसे की फिजूलखर्ची” बताया है. उनका कहना है कि बॉलीवुड में अब प्रचार की होड़ इतनी बढ़ चुकी है कि फिल्म की गुणवत्ता और दर्शकों का मुंहज़बानी असर पीछे छूट गया है.
फिल्म समीक्षक कोमल नाहटा के पॉडकास्ट पर बातचीत के दौरान अनुराग कश्यप ने कहा कि “किसी भी चीज़ को मौका ही नहीं मिलता. तीन दिन से आगे किसी फिल्म को सांस लेने की जगह नहीं दी जाती. पहले के ज़माने में सिनेमा हॉल कम थे, लेकिन लोगों के बीच बात फैलती थी, वर्ड ऑफ माउथ होता था. अब माहौल उल्टा हो गया है.”
अनुराग ने उदाहरण देते हुए कहा, “मेरा तो सीधा सा लॉजिक है. डेमन स्लेयर क्यों चल रही है? क्या कोई उसके प्रमोशन के लिए आया था? हॉलीवुड की फिल्म F1 क्यों चली? क्या ब्रैड पिट इंडिया आए थे उसे प्रमोट करने? नहीं न. फिर भी चली, क्योंकि लोगों को कंटेंट पसंद आया. आज की तारीख में फिल्मों को प्रचार नहीं, बल्कि दर्शकों से जुड़ाव चाहिए.”
निर्देशक ने कहा कि बॉलीवुड में हर चीज़ का मूल्य अब इस बात से तय होता है कि किसके पास प्रमोशन के लिए ज्यादा पैसा है. “यहां पर कोई सीमा नहीं है. साउथ में एक सिस्टम है, वहां प्रमोशन की एक लिमिट होती है. लेकिन यहां अगर किसी के पास पैसे ज्यादा हैं तो वह पूरे शहर में होर्डिंग लगा देगा, चैनल खरीद लेगा, और छोटी फिल्में उसकी चकाचौंध में गुम हो जाती हैं. यह असमानता सिर्फ इंडस्ट्री को कमजोर करती है,” उन्होंने कहा.
अनुराग कश्यप ने हिंदी सिनेमा की प्रतिस्पर्धा को “आवाज़ की होड़” बताया. उनके मुताबिक अब फिल्मों की चर्चा उनके कंटेंट से ज्यादा उनके प्रमोशनल कैंपेन से तय होती है. “यहां सबको बस यह चिंता रहती है कि कौन कितना बड़ा है. जो छोटी या मझोली फिल्म है, उसे मौका नहीं दिया जाता. यह सोच सिनेमा के लिए सबसे खतरनाक है,” अनुराग ने कहा.
बातचीत के दौरान उन्होंने बॉलीवुड में बढ़ती ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा पर भी कटाक्ष किया. “आज Maddock Films ने इतनी सफलता हासिल की है, खुश होने की बात है. लेकिन यहां तो सबके दिल में जलन है. कोई दूसरे की तारीफ नहीं कर सकता. हर कोई बस यह सोच रहा है कि कौन आगे है और कौन पीछे,” उन्होंने कहा.
अनुराग कश्यप का यह बयान ऐसे समय आया है जब बॉलीवुड में मार्केटिंग और प्रमोशन का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है. बड़ी फिल्मों के लिए करोड़ों रुपये केवल प्रचार अभियानों पर खर्च किए जाते हैं — चाहे वह रियलिटी शो में उपस्थिति हो, विदेशी टूर, डिजिटल कैंपेन, या सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के साथ साझेदारी. कई बार इन प्रमोशन की लागत फिल्मों के निर्माण बजट के बराबर या उससे भी ज्यादा हो जाती है.
अनुराग ने इस प्रवृत्ति को लेकर कहा कि “अब फिल्म की बात नहीं होती, बस उसके पोस्टर और पार्टी की चर्चा होती है. मैं मानता हूं कि प्रचार ज़रूरी है, लेकिन एक सीमा तक. सिनेमा तब तक नहीं बढ़ेगा जब तक हम फिल्म को सांस लेने का मौका नहीं देंगे. पहले फिल्में चलती थीं क्योंकि लोग उन्हें अपने अनुभव से आगे बढ़ाते थे, न कि इसलिए कि किसी स्टार ने पाँच टीवी शो में जाकर चिल्लाया कि मेरी फिल्म आ रही है.”
फिल्म निर्देशक ने यह भी कहा कि छोटे निर्माताओं और स्वतंत्र फिल्मकारों को इस प्रतिस्पर्धा में सबसे ज्यादा नुकसान होता है. “आप एक छोटे फिल्ममेकर हैं, आपके पास कंटेंट अच्छा है लेकिन बजट नहीं. आप प्रमोशन नहीं कर सकते, तो आपकी फिल्म रिलीज़ के तीन दिन बाद ही थिएटर से हटा दी जाएगी. ऐसे में सिनेमा की विविधता खत्म हो जाएगी,” अनुराग ने जोड़ा.
वह बोले कि साउथ फिल्म इंडस्ट्री से बॉलीवुड को सीख लेनी चाहिए. “तेलुगु या तमिल सिनेमा में प्रमोशन का एक संतुलन है. वहां का दर्शक स्टार की नहीं, फिल्म की बात करता है. वहां लोग थिएटर तक इसलिए जाते हैं क्योंकि उन्हें कहानी पर भरोसा है. यहां पर पहले ही शो के टिकट महंगे कर दो, शहर में दो हफ्ते तक शोर मचा दो, और तीसरे दिन सब भूल जाते हैं. यह टिकाऊ मॉडल नहीं है,” अनुराग ने कहा.
उन्होंने आगे कहा कि फिल्मों की असली ताकत उनके कंटेंट और कलाकारों की ईमानदारी में है. “आपका प्रमोशन कितना भी बड़ा हो, अगर कहानी में दम नहीं है तो वह दर्शक के दिल में जगह नहीं बना पाएगी. दूसरी तरफ, अगर फिल्म सच्ची और भावनात्मक है तो लोग खुद उसकी चर्चा करेंगे. यही सिनेमा की असली सफलता है,” निर्देशक ने कहा.
अनुराग कश्यप के इस बयान को सोशल मीडिया पर फिल्म प्रेमियों और उद्योग जगत के कई लोगों का समर्थन भी मिला है. कई लोगों ने कहा कि वह वही कह रहे हैं जो हर फिल्मकार महसूस करता है लेकिन खुलकर बोल नहीं पाता. एक यूज़र ने लिखा, “अनुराग कश्यप बॉलीवुड की अंतरात्मा की आवाज़ हैं. उन्होंने वही कहा जो सब सोचते हैं.” वहीं कुछ लोगों ने यह भी तर्क दिया कि मार्केटिंग के बिना फिल्में भीड़ में खो सकती हैं, लेकिन अनुराग के समर्थकों का कहना था कि “अच्छी फिल्म को पहचानने के लिए दर्शक आज भी सबसे बड़ा माध्यम है.”
अनुराग कश्यप की पिछली निर्देशित फिल्म निशांची थी, जबकि उनकी हालिया फिल्म बंदर का प्रीमियर टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में हुआ. बतौर अभिनेता वह अब डकैत फिल्म में एक निडर पुलिस अधिकारी की भूमिका में नज़र आएंगे. यह फिल्म हिंदी और तेलुगु दोनों भाषाओं में एक साथ बनाई जा रही है और इसमें अदिवी शेष तथा मृणाल ठाकुर मुख्य भूमिकाओं में हैं.
अनुराग का यह कहना कि “प्रमोशन पर पैसा बर्बाद करने से अच्छा है कि वही पैसा फिल्म के निर्माण या नए कलाकारों पर लगाया जाए”, हिंदी सिनेमा के लिए एक गंभीर आत्ममंथन का विषय बन गया है. उनके मुताबिक “अगर बॉलीवुड को दोबारा लोगों का भरोसा जीतना है, तो उसे शोर नहीं, सच्चाई की जरूरत है.”
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

