जबलपुर.शहर की एक महिला डॉक्टर ने उस समय मानवता की मिसाल पेश की जब उन्होंने कैंसर पीड़ित 11 वर्षीय मासूम बच्ची का निःशुल्क इलाज कर उसकी जिंदगी बचा ली। यह कहानी सिर्फ एक डॉक्टर और मरीज की नहीं, बल्कि संवेदना, करुणा और समाज में विश्वास की कहानी बन गई है।
मामला जबलपुर के घमापुर क्षेत्र का है, जहां रहने वाली संजू वंशकार नामक महिला की 11 वर्षीय बेटी निधि वंशकार पिछले कई महीनों से गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। अचानक उसके गले में एक छोटी सी गांठ उभर आई थी, जो धीरे-धीरे बढ़ने लगी। कुछ ही दिनों में उस गांठ ने उसके चेहरे पर सूजन फैला दी, और हालात इतने बिगड़ गए कि मासूम का मुंह तक खुलना बंद हो गया। परिवार ने कई जगह दिखाया, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण इलाज अधूरा रह गया। निराश मां संजू को लगने लगा था कि अब बेटी की जिंदगी मुश्किल में है। इसी दौरान उन्हें घमापुर स्थित डॉक्टर दीप्ति दुबे के बारे में जानकारी मिली। डॉक्टर दुबे शहर की जानी-मानी दंत एवं मुख रोग विशेषज्ञ हैं और सामाजिक सरोकारों के लिए भी जानी जाती हैं। जब संजू वंशकार अपनी बेटी को लेकर उनके क्लिनिक पहुंचीं, तो डॉक्टर ने बिना किसी फीस के जांच शुरू की। प्रारंभिक जांच में यह पाया गया कि मासूम के गले और चेहरे की सूजन कैंसर के शुरुआती लक्षण हैं। डॉक्टर दुबे ने तुरंत उपचार की रूपरेखा बनाई और आवश्यक दवाइयों व थेरेपी का प्रबंध स्वयं किया। डॉक्टर दीप्ति दुबे ने बताया कि निधि के चेहरे की सूजन लगातार बढ़ रही थी और स्थिति नाजुक हो चुकी थी। समय पर इलाज न होता तो बच्ची का खाना-पीना तक बंद हो सकता था। उन्होंने कहा, “मुझे यह देखकर बहुत दुख हुआ कि एक मासूम बच्ची सिर्फ पैसों की कमी के कारण अपना इलाज नहीं करा पा रही थी। मैंने तय किया कि उसकी पूरी चिकित्सा मैं खुद कराऊंगी, चाहे जितना भी समय या संसाधन क्यों न लगे। लगातार कई हफ्तों तक चले इलाज और विशेष देखभाल के बाद निधि की हालत में सुधार आने लगा। चेहरे की सूजन घट गई और बच्ची का मुंह फिर से खुलने लगा। अब वह सामान्य रूप से बोल और खा सकती है। डॉक्टर के प्रयासों से न केवल उसकी शारीरिक तकलीफ दूर हुई, बल्कि परिवार में उम्मीद की किरण भी लौट आई। मां संजू वंशकार ने भावुक होकर कहा, “हम तो हार चुके थे। कोई भी अस्पताल बिना पैसे इलाज करने को तैयार नहीं था। डॉक्टर दीप्ति हमारे लिए भगवान बनकर आईं। उन्होंने न केवल इलाज किया बल्कि हमें मानसिक सहारा भी दिया। स्थानीय लोगों ने डॉक्टर दीप्ति दुबे की इस सेवा भावना की खुलकर सराहना की है। सोशल मीडिया पर भी उनकी इस पहल की चर्चा हो रही है। कई लोग उन्हें ‘जबलपुर की करुणामयी डॉक्टर’ कह रहे हैं। लोगों ने लिखा कि ऐसे उदाहरण समाज में विश्वास और दया की भावना को जिंदा रखते हैं।
डॉक्टर दुबे ने कहा कि चिकित्सा सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि सेवा है। “हर डॉक्टर का दायित्व है कि वह जरूरतमंद के इलाज में आर्थिक स्थिति को बाधा न बनने दे। अगर हम एक जिंदगी भी बचा पाएं, तो वही सच्ची सफलता है,” उन्होंने कहा। इस घटना ने शहर में एक सकारात्मक संदेश दिया है कि मानवता अभी जिंदा है और संवेदनशील डॉक्टर अब भी समाज की नींव हैं। निधि अब पूरी तरह स्वस्थ हो रही है और स्कूल जाने की तैयारी में है। डॉक्टर दीप्ति दुबे का यह कदम न केवल एक बच्ची की जिंदगी बचाने का प्रतीक है, बल्कि इस बात का सबूत भी कि सेवा की भावना आज भी चिकित्सा जगत में जीवित है। जबलपुर जैसे शहर से उठी यह कहानी हमें याद दिलाती है कि सच्ची चिकित्सा वही है, जो दवा के साथ दया भी दे सके।
महिला डॉक्टर ने दिखाया मानवता का उदाहरण, कैंसर पीड़ित 11 वर्षीय बच्ची का किया निशुल्क इलाज और लौटाई मुस्कान
प्रेषित समय :20:30:36 PM / Mon, Nov 10th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर