जबलपुर की ठहरी रफ्तार पर भड़का सोशल मीडिया: विकास यात्रा में बराबरी का हक, ‘बीच का शहर’ कहना अब स्वीकार्य नहीं

जबलपुर की ठहरी रफ्तार पर भड़का सोशल मीडिया: विकास यात्रा में बराबरी का हक, ‘बीच का शहर’ कहना अब स्वीकार्य नहीं

प्रेषित समय :18:17:54 PM / Sun, Nov 16th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर.सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आज जबलपुर और मध्य प्रदेश से जुड़ी जिस बहस ने सबसे ज्यादा ताप पैदा किया, वह थी विकास और रोजगार की धीमी रफ्तार को लेकर बढ़ती जन-नाराज़गी. इंस्टाग्राम, ट्विटर (एक्स), फेसबुक से लेकर Reddit के लोकल फोरम तक, हर जगह लोगों ने अपनी आवाज़ बुलंद की. "2025-उद्योग और रोजगार का साल" घोषित होने के बाद जनता को उम्मीद थी कि शहर का चेहरा बदलेगा, रोजगार के नए अवसर आएंगे और जबलपुर को भी प्रदेश के बड़े शहरों की तरह रफ्तार मिलेगी. लेकिन जैसी प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं, वे सरकार के दावों और ज़मीनी हालातों के बीच गहरी खाई का संकेत देती हैं.

रेडिट के /r/Jabalpur समुदाय पर आज चर्चाओं की बाढ़ रही. कई यूजर्स का कहना है कि सरकार की घोषणाएं अखबारों तक सीमित हैं, जबकि शहर में रोजगार की स्थिति पहले जितनी ही चुनौतीपूर्ण बनी हुई है. कुछ तीखी टिप्पणियों में कहा गया कि “2025 एमपी का साल हो सकता है, लेकिन जबलपुर का नहीं.” एक यूजर ने लिखा, “Only the state, not Jabalpur… Jabalpur has become nothing but the middle child.” यह टिप्पणी आज सोशल मीडिया पर सबसे अधिक शेयर और रीपोस्ट की जाने वाली पंक्तियों में शामिल रही, जिसने स्थानीय शासन और विकास एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए.

ई-रिक्शा ड्राइवरों से लेकर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स तक, कई लोग अपनी बेरोजगारी और अवसरों की कमी का दुख प्रकट करते दिखाई दिए. बढ़ती आबादी और सीमित रोज़गार संभावनाओं के चलते युवाओं में हताशा साफ झलकती है. शहर में नए उद्योगों की स्थापना या निवेश से जुड़ी बड़ी घोषणाएँ अब तक कागज़ों में ही सीमित हैं, जिससे शहर का ‘आर्थिक ठहराव’ सोशल मीडिया चर्चा का मुख्य बिंदु बन गया है. युवाओं का कहना है कि वे रोज़ अरबों के निवेश की खबरें पढ़ते हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि औद्योगिक क्षेत्रों में कोई उल्लेखनीय हलचल नहीं है.

इसके अलावा, राज्य में कुल आरक्षण बढ़कर 73% होने की खबर भी सोशल मीडिया पर बड़े विवाद का विषय बनी हुई है. एक ओर आरक्षण का विस्तार सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ यूजर्स इसे “कास्टिज़्म बढ़ाने वाला निर्णय” करार देते हुए इसकी आलोचना कर रहे हैं. इस मुद्दे पर मध्य प्रदेश के कई जिलों में पहले से ही बहस जारी है, लेकिन जबलपुर के सोशल मीडिया यूजर्स ने आज इसे नई तीव्रता के साथ उठाया. कुछ लोगों ने लिखा कि इस बढ़ते आरक्षण से प्रतिभा पर असर पड़ेगा, जबकि समर्थकों ने इसका बचाव करते हुए कहा कि समाज के पिछड़े वर्गों को अवसर देना ही वास्तविक प्रगति का पैमाना है.

यही नहीं, कई नागरिकों ने शहर के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भी असंतोष जताया है. स्मार्ट सिटी परियोजनाओं की आधी-अधूरी प्रगति, बढ़ता यातायात, पुराने इलाकों में जर्जर सड़कें और पेयजल संकट जैसी समस्याओं का ज़िक्र करते हुए लोगों ने कहा कि जबलपुर “विकास के नक्शे पर एक भूला हुआ शहर” बनता जा रहा है. कुछ यूजर्स का तो यह भी कहना है कि जबलपुर को राज्य स्तर के कार्यक्रमों में पर्याप्त प्राथमिकता ही नहीं मिलती, जबकि इंदौर, भोपाल और ग्वालियर जैसे शहर लगातार आगे बढ़ रहे हैं. सरकार का ध्यान बड़े शहरों और राजधानी पर केंद्रित होने से मध्य-पूर्वी एमपी के शहर विकास प्रतियोगिता में पीछे छूटते जा रहे हैं.

लोकल स्टार्टअप्स से जुड़े कुछ युवाओं ने भी चिंता जताई कि शहर में न तो पर्याप्त फंडिंग के अवसर मिलते हैं और न ही वेंचर कैपिटलिस्ट्स का ध्यान. आईटी पार्क की बात लंबे समय से हो रही है लेकिन वर्कस्पेस और टेक कंपनियों की उपस्थिति बेहद सीमित है. इस कारण प्रतिभाशाली युवा जबलपुर छोड़कर अन्य महानगरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं. यही शहर के “ब्रेन ड्रेन” का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है.

इधर, सोशल मीडिया के एक हिस्से में यह भी चर्चा सामने आई कि जबलपुर में लगातार वायरल होने वाली घटनाएँ-कभी कोई खतरनाक स्टंट, तो कभी किसी विवादित मामले का वीडियो—शहर की गंभीर छवि को नुकसान पहुंचाते हैं. कई नागरिकों ने इस पर चिंता व्यक्त की कि यदि जबलपुर को निवेश, उद्योग और स्टार्टअप्स के लिए आकर्षक बनाना है, तो शहर की ब्रांडिंग को मजबूत करना होगा और सकारात्मक कवरेज बढ़ानी होगी. कुछ लोगों ने स्थानीय प्रशासन से अपील की कि वे सिर्फ बड़े-बड़े आयोजनों पर नहीं, बल्कि रोजमर्रा की नागरिक समस्याओं पर ध्यान दें, ताकि शहर में वास्तविक बदलाव आ सके.

हालांकि विरोध और आलोचना के बीच कुछ ऐसी आवाज़ें भी थीं जिन्होंने सरकार के प्रयासों की सराहना की. उनका कहना है कि जबलपुर में मेडिकल सुविधाओं, मेट्रो परियोजना और कच्छप घाट-नर्मदा कॉरिडोर जैसे कामों की शुरुआत बताती है कि परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी ज़रूर है, लेकिन शुरू हो चुकी है. फिर भी सोशल मीडिया पर आज की बहस का बहुमत सरकार और प्रशासन के प्रति अविश्वास से भरा रहा, जो यह दर्शाता है कि जनता तेजी से काम चाहती है,वही जो प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों में देखने को मिल रहा है.

कुल मिलाकर, 16 नवंबर 2025 का दिन जबलपुर और मध्य प्रदेश के लिए सोशल मीडिया पर बहस, आक्रोश और सवालों से भरा रहा. यह नाराज़गी सिर्फ डिजिटल प्लेटफॉर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जनभावना अब जमीनी राजनीति और प्रशासनिक फैसलों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है. जनता की मांग स्पष्ट है-जबलपुर को मध्य प्रदेश की विकास यात्रा में बराबरी का स्थान चाहिए, सिर्फ ‘बीच का शहर’ कहकर छोड़ देना अब स्वीकार्य नहीं.