“ग्रोवल” टिप्पणी पर बवाल बढ़ा, दक्षिण अफ्रीका कोच शुक्री कॉनराड के बयान ने क्रिकेट इतिहास के पुराने जख्म ताजा कर दिए

“ग्रोवल” टिप्पणी पर बवाल बढ़ा, दक्षिण अफ्रीका कोच शुक्री कॉनराड के बयान ने क्रिकेट इतिहास के पुराने जख्म ताजा कर दिए

प्रेषित समय :20:54:34 PM / Tue, Nov 25th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट टीम के मुख्य कोच शुक्री कॉनराड द्वारा मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस्तेमाल किए गए शब्द ‘ग्रोवल’ ने क्रिकेट जगत में विवाद खड़ा कर दिया है। यह शब्द केवल एक सामान्य क्रिकेटिंग टिप्पणी नहीं था, बल्कि इतिहास के उस अध्याय की संवेदनशील याद दिलाता है, जब 1976 में इंग्लैंड के कप्तान टोनी ग्रिग के इसी शब्द ने वेस्टइंडीज खिलाड़ियों के सम्मान, नस्ली संदर्भ और अपमान से जुड़ी बहस को भड़का दिया था। कॉनराड के बयान ने भारत—दक्षिण अफ्रीका टेस्ट सीरीज़ के बीच अचानक ही सोशल मीडिया, खेल पत्रकारिता और दिग्गज खिलाड़ियों की बहस का केंद्र अपने ऊपर खींच लिया है।

दक्षिण अफ्रीका की टेस्ट टीम के कोच के रूप में कॉनराड पिछले दो वर्षों से शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। 2023 में पद संभालने के बाद उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को WTC खिताब दिलाया और अब भारत में वर्ष 2000 के बाद पहली बार सीरीज़ जीत की दहलीज़ पर खड़ा किया। शांत स्वभाव, संतुलित भाषा और प्रोफेशनल रवैये के लिए पहचाने जाने वाले कॉनराड आम तौर पर विवादित बयान नहीं देते। यही कारण है कि उनके मुंह से यह शब्द निकलना क्रिकेट जगत के लिए हैरत की बात बन गया।

घटना गुवाहाटी टेस्ट के चौथे दिन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में हुई, जब उनसे दक्षिण अफ्रीका के देर से घोषित किए गए डिक्लेरेशन के फैसले पर सवाल पूछा गया। कॉनराड ने पहले रणनीतिक कारण बताते हुए कहा कि शाम के समय पिच पर पड़ने वाली परछाइयों से तेज गेंदबाजों को मदद मिल सकती थी, इसलिए टीम ने जल्दी डिक्लेयर नहीं किया। बातचीत सामान्य ढंग से आगे बढ़ रही थी, लेकिन अगले ही पल कॉनराड ने वह शब्द बोल दिया जिसकी खनक आज भी क्रिकेट इतिहास के गलियारों में सुनी जाती है।

उन्होंने कहा—“हम चाहते थे कि भारतीय टीम मैदान में ज्यादा से ज्यादा समय खड़ी रहे। हम चाहते थे कि वे सचमुच ग्रोवल करें—यह शब्द उधार लेते हुए कहूं—हम उन्हें पूरी तरह खेल से बाहर करना चाहते थे।” यह कहते समय कॉनराड के चेहरे पर हल्की मुस्कान भी दिखाई दी, जिसे भारतीय दर्शकों ने कई तरह से लिया।

कॉनराड की मंशा चाहे जो भी रही हो, लेकिन यह ‘ग्रोवल’ शब्द अपने साथ 1976 का पूरा इतिहास लेकर आता है। उस समय इंग्लैंड के कप्तान टोनी ग्रिग ने वेस्टइंडीज टीम के बारे में कहा था कि “अगर वे दबाव में आते हैं तो ग्रोवल करते हैं, और मैं उन्हें ग्रोवल करवाऊंगा।” यह बयान नस्ली और औपनिवेशिक मानसिकता से भरा माना गया था, जिसने वेस्टइंडीज खिलाड़ियों को उत्तेजित कर दिया। वेस्टइंडीज के महान कप्तान क्लाइव लॉयड ने कहा था—“यह शब्द किसी भी काले खिलाड़ी का खून खौला देने के लिए काफी है।” उस सीरीज़ में कैरिबियाई टीम ने इंग्लैंड को 3-0 से धूल चटाई थी, और ग्रिग को बाद में कप्तानी से भी हाथ धोना पड़ा था।

इतिहास के इसी दर्दनाक संदर्भ के कारण कॉनराड का बयान भारतीय प्रशंसकों की भावनाओं को तुरंत झकझोर गया। सोशल मीडिया पर हजारों पोस्ट दिखाई देने लगे, जिनमें कहा गया कि यह शब्द क्रिकेट के मैदान में नहीं होना चाहिए, चाहे संदर्भ कोई भी हो। कई लोगों ने लिखा कि भारत—दक्षिण अफ्रीका सीरीज़ में दक्षिण अफ्रीका के खेल की जितनी प्रशंसा हो रही थी, उससे विपरीत यह टिप्पणी अनावश्यक और असंवेदनशील प्रतीत होती है।

कई विशेषज्ञों का मानना है कि कॉनराड ने यह शब्द बिना किसी बुरी मंशा के, सिर्फ एक पुरानी कहानी के संदर्भ में हल्के-फुल्के ढंग से कहा होगा, लेकिन यह “लाइट” संदर्भ भी पर्याप्त नहीं है, क्योंकि शब्द खुद नस्ली राजनीति और उपनिवेशवाद की याद दिलाता है। सोशल मीडिया पर क्रिकेट इतिहासकारों ने याद दिलाया कि ग्रिग स्वयं एक श्वेत दक्षिण अफ्रीकी थे और वही ‘ग्रोवल’ वाला बयान काले खिलाड़ियों के लिए आज भी असहज स्मृति माना जाता है। इसलिए कॉनराड का ‘उसी कोट’ को उधार लेकर कहना, उनके लिए बड़ा जोखिम भरा कदम था।

आलोचकों ने यह भी कहा है कि दक्षिण अफ्रीका का यह कोच अब तक काफी संयमित और सम्मानजनक छवि रखता आया है, इसलिए उसके मुंह से ऐसा शब्द सुनना चौंकाने वाला था। भारतीय प्रशंसक इसलिए भी आहत हुए क्योंकि इस सीरीज़ में दक्षिण अफ्रीका ने न केवल उत्कृष्ट खेल दिखाया था बल्कि उनकी विनम्रता और grounded व्यवहार की भी खूब सराहना हुई थी। ऐसे में यह बयान उस इमेज के विपरीत लगा जिसने लोगों को और अधिक चौंका दिया।

कई भारतीय पूर्व खिलाड़ियों ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि रणनीति के संदर्भ में कहा गया वाक्य शायद गलत मंशा से नहीं था, लेकिन शब्द का उपयोग गलती माना जाना चाहिए। कुछ विशेषज्ञों ने इसे “अप्रत्याशित चूक” बताया, जबकि कुछ ने इसे “अनावश्यक उकसावन” कहा।

यह बहस उस सवाल की ओर भी इशारा करती है कि क्या खेल में कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनका कोई भी संदर्भ हों, उपयोग नहीं किया जाना चाहिए? विशेष रूप से वे शब्द जो नस्ली इतिहास और वैश्विक असमानताओं की याद दिलाते हों। क्रिकेट की दुनिया में भाषा के इस्तेमाल पर हमेशा निगरानी रही है, खासकर तब से जब ICC ने आचार संहिता को सख्त बनाया है।

हालांकि कॉनराड के खिलाफ किसी आधिकारिक कार्रवाई की संभावना अभी कम मानी जा रही है, लेकिन भारतीय प्रशंसकों की भावनाएं स्पष्ट हैं—उन्हें लगता है कि शब्द का चयन बेहद असावधानी से किया गया।

इस पूरी घटना ने खिलाड़ियों, कोचों और खेल जगत को एक बार फिर याद दिला दिया है कि खेल केवल मैदान पर नहीं, बल्कि भाषा, इतिहास और संवेदनशीलता के दायरे में भी खेला जाता है। एक शब्द, भले ही मज़ाक में कहा गया हो, अपने भीतर कई परतें समेटे हो सकता है—और कॉनराड का यह बयान उसी की मिसाल बन गया है।

अब देखना यह है कि दक्षिण अफ्रीका की टीम इस विवाद को कैसे संभालती है और क्या कॉनराड इस टिप्पणी पर स्पष्टीकरण देंगे। लेकिन इतना स्पष्ट है कि भारत में उठे इस भावनात्मक तूफान ने क्रिकेट के पुराने घावों को एक बार फिर ताज़ा कर दिया है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-