नई दिल्ली.दिल्ली में शीतकालीन सत्र शुरू होने से एक दिन पहले बुलाई गई सर्वदलीय बैठक ने राजनीतिक तापमान को और बढ़ा दिया। रविवार को आयोजित इस बैठक में विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग द्वारा किए जा रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (SIR) को लेकर गहरी आपत्तियां जताई और स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर इस विषय पर संसद में चर्चा नहीं कराई गई, तो दोनों सदनों का सुचारु संचालन प्रभावित हो सकता है। साथ ही, हाल ही में राजधानी दिल्ली में हुए धमाके के बाद विपक्ष ने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भी अहम सवाल खड़े किए और इस मुद्दे पर विस्तृत बहस की मांग की।
बैठक के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए कई विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर उठ रहे सवालों को दबाना चाहती है। उनका कहना था कि SIR के दायरे, उसके समय, उसके औचित्य और कार्यप्रणाली में अनेक विसंगतियाँ हैं, जिनका समाधान केवल संसद में खुले विमर्श के ज़रिये ही संभव है। कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा कि विपक्ष की यह सामूहिक मांग है कि मतदाता सूची जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सरकार अस्पष्ट रुख अपनाना बंद करे और देश को आश्वस्त करे कि चुनावी प्रक्रिया में किसी प्रकार की धांधली या मनमानी की गुंजाइश नहीं छोड़ी जाएगी।
गोगोई ने इस दौरान तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है क्योंकि सरकार लगातार लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है। उन्होंने कहा कि चुनावी सूची में संशोधन की यह प्रक्रिया सामान्य रूटीन का हिस्सा नहीं है, बल्कि समय और प्रकृति—दोनों स्तरों पर असामान्य ढंग से सामने आई है। विपक्ष का आरोप है कि कई राज्यों से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि SIR के नाम पर व्यापक स्तर पर मतदाताओं के नामों को अनुचित ढंग से हटाने का प्रयास किया जा रहा है, और कई क्षेत्रों में बिना लोगों को सही जानकारी दिए उनकी प्रविष्टियों में बदलाव किया गया है। विपक्ष का कहना है कि यदि इस मुद्दे पर संसद को चर्चा की अनुमति नहीं दी जाती, तो यह लोकतांत्रिक परंपराओं के साथ गंभीर खिलवाड़ होगा।
सर्वदलीय बैठक के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा भी केंद्र में रहा। हाल ही में दिल्ली में हुए धमाके ने न केवल सुरक्षा एजेंसियों को चौकन्ना कर दिया है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी चिंता गहरा दी है। विपक्षी दलों ने इस घटना को ‘सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर चूक’ बताते हुए कहा कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि आखिर इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं। उनका कहना था कि संसद देश की सर्वोच्च संस्था है और ऐसे समय में सरकार को सदन के प्रति जवाबदेह रहना चाहिए।
विपक्षी नेताओं के आरोपों में तीखा स्वर भी देखने को मिला। कई दलों ने कहा कि सरकार जानबूझकर राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अहम विषयों पर चर्चा से बचती रही है और वह इस प्रयास में है कि संसद के भीतर असहज प्रश्नों से घिरी न जाए। उन्होंने कहा कि धमाके जैसी घटनाएँ सिर्फ कानून-व्यवस्था की विफलता नहीं हैं, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा रणनीति में मौजूद गंभीर खामियों का इशारा करती हैं। ऐसे में यदि सरकार इन घटनाओं पर खुलकर चर्चा से कतराती है, तो यह लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व से बचने जैसा है।
बैठक में यह भी आरोप लगाया गया कि केंद्र सरकार संसद की पारंपरिक प्रक्रियाओं को दरकिनार कर तेज़ी और मनमर्जी से सत्रों को संचालित करना चाहती है। विपक्ष ने कहा कि बीते कई सत्रों में यह देखा गया है कि महत्वपूर्ण विधेयकों को जल्दबाज़ी में बिना पर्याप्त चर्चा के पारित किया गया और विपक्षी आवाज़ों को अनसुना कर दिया गया। इस बार भी विपक्ष को आशंका है कि सरकार सिर्फ औपचारिक बहस का दिखावा करते हुए अपने एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहेगी। इसलिए SIR और राष्ट्रीय सुरक्षा पर पूर्णकालिक और विस्तृत चर्चा उनकी प्रमुख मांग है।
बैठक में शामिल कई दलों ने टीवी कैमरों के सामने एक स्वर में कहा कि सरकार को यह समझना चाहिए कि संसद सिर्फ विधायी प्रक्रिया का मंच नहीं है, बल्कि देश की जनता की चिंताओं और सवालों का प्रतिनिधि मंच भी है। जब देश के सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक रजिस्टर—मतदाता सूची—के बारे में गंभीर शंकाएँ उठ रही हों और दूसरी ओर राष्ट्रीय राजधानी एक धमाके से दहल गई हो, तो संसद से बेहतर कोई मंच नहीं जहाँ पूरी जानकारी और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
बैठक से यह भी स्पष्ट संकेत मिले कि विपक्ष इस बार संसद के भीतर सरकार पर आक्रामक रुख बनाए रखने के मूड में है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार उनकी मांगों को अनसुना करती है, तो वे लोकतांत्रिक तरीके से विरोध दर्ज कराएंगे और सदन में ज़रूरी विधायी कार्यवाही को सामान्य ढंग से नहीं चलने देंगे। हालांकि, विपक्ष ने यह भी कहा कि उनकी प्राथमिकता संसद को बाधित करना नहीं, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच सरकार की ओर से कोई विस्तृत प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन बैठक से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सरकार ने विपक्ष की मांगों को सुना है और सत्र के दौरान विषयों को सदन के अध्यक्ष और सभापति की अनुमति के अनुसार लिया जाएगा। हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि सरकार फिलहाल SIR पर किसी विशेष बहस के लिए प्रतिबद्ध नहीं दिखती, जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा पर वह संभवतः एक औपचारिक बयान या संक्षिप्त चर्चा के लिए तैयार हो सकती है।
शीतकालीन सत्र के शुरुआती दिनों में ही यह टकराव कितना गहराएगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। लेकिन एक बात तय है—2025 के अंत में संसद का यह सत्र राजनीतिक रूप से बेहद तना हुआ और मुद्दों से भरा रहने वाला है। विपक्ष की रणनीति साफ़ है कि वह SIR और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा करेगा, वहीं सरकार संभवतः अपने विधायी एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश में रहेगी।
लोकतंत्र में संसद की भूमिका सिर्फ कानून बनाने तक सीमित नहीं, बल्कि जनता के सवालों और उनकी सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर खुली, ईमानदार और जवाबदेह चर्चा करना भी है। ऐसे में आने वाले सत्र में सत्ता और विपक्ष की इस खींचतान का असर न सिर्फ राजनीतिक माहौल पर पड़ेगा, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की सेहत को भी परखेगा।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

