अनिल मिश्र/रांची
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित ऐतिहासिक रामगढ़ छावनी बुधवार की सुबह एक बार फिर भारतीय सेना के गौरव, अनुशासन और परंपरा का साक्षी बनी। पंजाब रेजिमेंटल सेंटर के विशाल परेड ग्राउंड पर ध्वनि-विहीन गंभीरता और सैन्य ताल के बीच भव्य पासिंग आउट परेड का आयोजन किया गया, जिसमें कुल 962 अग्निवीर रिकूट्स ने 31 सप्ताह के कठिन प्रशिक्षण को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद शपथ ग्रहण की। हर साल की तरह इस बार के समारोह ने भी साबित किया कि सैनिक का निर्माण केवल शारीरिक परिश्रम से नहीं होता, बल्कि मानसिक दृढ़ता, नैतिकता, मूल्यबोध और राष्ट्रीय भावना का समन्वय ही उसे एक संपूर्ण रक्षक बनाता है।
सुबह का पहला उजाला परेड ग्राउंड पर उतरते ही अनुशासन, गौरव और उत्साह का वातावरण गाढ़ा होने लगा। हजारों की संख्या में पहुंचे अभिभावक, अधिकारी, पूर्व सैनिक और स्थानीय नागरिक नये जवानों की इस ऐतिहासिक घड़ी के साक्षी बने। रिकेट्स के कदमों की समान गति, बैरकवाद्य की संगति और ध्वज स्तंभ के सामने होने वाले हर क्रियाकलाप ने भारतीय सेना की उन परंपराओं को पुनर्परिभाषित किया जिनसे राष्ट्र का गौरव बंधा है। समारोह का प्रत्येक क्षण, सैनिक बनने की उनकी लंबी प्रक्रिया का सार समेटे हुए प्रतीत हुआ।
इस परेड की समीक्षा पंजाब रेजिमेंटल सेंटर के कार्यवाहक कमांडेंट कर्नल मानवेंद्र सिवाच, विशिष्ट सेवा मेडल, ने की। सैन्य पंक्ति का निरीक्षण करते हुए उन्होंने रिकूट्स की सधे हुए कदमों की धुन, उनके अनुशासित हावभाव और प्रशिक्षण के दौरान अर्जित शारीरिक-मानसिक दक्षता को बारीकी से परखा। अपने संबोधन में कर्नल सिवाच ने कहा कि अग्निवीर योजना के तहत तैयार किए जा रहे सैनिक आधुनिक युद्ध और सुरक्षा चुनौतियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने इन युवाओं की मेहनत और लगन को सलाम करते हुए कहा कि समाज के हर वर्ग से आए ये नवसैनिक देश की सामूहिक सुरक्षा भावना का प्रतीक हैं।
उन्होंने प्रशिक्षण देने वाले स्टाफ, इंस्ट्रक्टर्स और अधिकारियों की भी खुलकर सराहना की। उनका कहना था कि किसी भी परेड की चमक सिर्फ जवानों की अनुशासित ताल में नहीं, बल्कि उन प्रशिक्षकों के अथक प्रयासों में भी होती है, जिन्होंने दिन-रात इनके साथ रहकर इन्हें एक सशक्त योद्धा बनाया। प्रशिक्षण के दौरान शारीरिक मजबूती, शस्त्र संचालन, युद्ध-नीति, फील्ड क्राफ्ट, ड्रिल, फायरिंग, आचरण, साथ ही मानसिक दृढ़ता—इन सभी पहलुओं को संतुलित ढंग से विकसित किया गया, जिससे अग्निवीर आधुनिक युद्धक्षेत्र की हर चुनौती का सामना करने में सक्षम बनें।
परेड ग्राउंड पर जब युवा अग्निवीरों ने ठसक से कदम मिलाए, तो दर्शकदीर्घा से ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारे स्वतः ही गूंज उठे। कई अभिभावकों की आंखें गर्व और भावुकता से नम थीं। उनके लिए यह दिन सिर्फ उनके बेटे की उपलब्धि नहीं था, बल्कि परिवार और समाज के उस गर्व का क्षण था, जिसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता।
समारोह के अंत में अग्निवीरों द्वारा ली गई शपथ कार्यक्रम का सबसे भावपूर्ण और प्रेरणादायक क्षण बना। युवा सैनिकों ने एक स्वर में संविधान की रक्षा करने, राष्ट्र की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने, वर्दी का सम्मान बनाए रखने और भारतीय सेना की समृद्ध परंपराओं का पालन करने की शपथ ली। उनकी आवाज़ की प्रतिध्वनि परेड ग्राउंड में लंबे समय तक गूंजती रही — मानो आसमान भी उनके इस संकल्प को सुन रहा हो।
इसके बाद ‘गौरव पदक’ वितरण समारोह आयोजित किया गया। यह परंपरागत पदक उन अभिभावकों को प्रदान किया जाता है, जिनके बेटे भारतीय सेना का हिस्सा बनते हैं। इस अवसर पर मंच से जब-जब किसी अभिभावक का नाम पुकारा जाता, पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से भर उठता। पदक प्राप्त करने वाले माता-पिता और परिवारों के चेहरे पर गर्व का उजाला दूर से ही महसूस किया जा सकता था। सेना की इस परंपरा का मकसद केवल सम्मान देना ही नहीं, बल्कि यह संदेश फैलाना है कि किसी भी सैनिक के पीछे उसके परिवार का योगदान सबसे बड़ा आधार होता है।
रामगढ़ छावनी, जो प्राचीन काल से अब तक सेना की तैयारी और प्रशिक्षण का केंद्र रहा है, इस तरह के आयोजनों के लिए विशेष पहचान रखता है। पंजाब रेजिमेंट भारतीय सेना की उन प्रतिष्ठित रेजिमेंट्स में से है, जिसका इतिहास वीरता, बलिदान और अनुशासन से भरा है। अग्निवीर योजना शुरू होने के बाद से रेजिमेंट ने प्रशिक्षण व्यवस्था और संसाधनों को आधुनिक रूप देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है, जिससे अपेक्षाकृत कम समय में युवाओं को उत्कृष्ट सैनिक के रूप में तैयार किया जा सके।
परेड के बाद आयोजित अनौपचारिक वार्तालाप में कई अभिभावकों ने बताया कि उनके बेटे का यह रूप देखकर उनका गर्व कई गुना बढ़ गया है। कुछ ने कहा कि प्रशिक्षण के बाद उनके बच्चे में जिम्मेदारी, समझदारी और अनुशासन स्पष्ट रूप से देखने को मिला है। उनके अनुसार, सेना न केवल एक करियर है, बल्कि जीवन को दिशा देने वाली एक पवित्र संस्था है।
इसके अलावा, परेड के दौरान चिकित्सा सेवा दल, मिलिट्री पुलिस, रेजिमेंटल बैंड, प्रशासनिक यूनिट्स और तकनीकी सहयोग टीमों की भूमिका भी सराहनीय रही। सुरक्षा व्यवस्था से लेकर समारोह की भव्यता तक, हर पहलू का सूक्ष्म समन्वय दिखाई दिया। यह आयोजन अपने आप में दिखाता है कि भारतीय सेना किसी भी कार्य को कितनी सुव्यवस्थित और गरिमापूर्ण ढंग से पूरा करती है।
समारोह के समापन के बाद अग्निवीरों ने अपने साथियों के साथ पारंपरिक फोटोग्राफी सत्र में हिस्सा लिया। कैमरे की हर क्लिक में उनका आत्मविश्वास और गर्व झलक रहा था। कई जवान आगामी तैनाती को लेकर उत्साहित दिखाई दिए। कुछ जवानों ने कहा कि वे जल्द ही देश की सीमाओं या संवेदनशील मोर्चों पर तैनात होकर राष्ट्र की सेवा करने के लिए तैयार हैं।
दिन भर चले इस भव्य आयोजन ने रामगढ़ छावनी को गौरव, परंपरा, इतिहास और आधुनिक सैन्य क्षमता का संगम बना दिया। 962 अग्निवीरों का यह समूह आने वाले वर्षों में भारतीय सेना की रीढ़ बनेगा। यह पासिंग आउट परेड सिर्फ एक सैन्य परंपरा नहीं थी, बल्कि यह उस नए भारत की तस्वीर भी थी, जिसमें युवाओं का संकल्प, राष्ट्र के प्रति समर्पण और सैन्य गौरव साथ-साथ दिखाई देता है।
अंत में, मैदान से बाहर निकलते हुए लोगों के चेहरों पर एक ही बात स्पष्ट दिखाई दे रही थी—एक ऐसे अवसर का हिस्सा बनने की संतुष्टि, जो किसी राष्ट्र की सुरक्षा और गौरव का आधार है। रामगढ़ छावनी में बुधवार का दिन इस रूप में दर्ज हो गया कि यहां से एक बार फिर देश ने अपने 962 नए रक्षकों को विदा किया, जो आने वाले कल में उसकी सुरक्षा और सम्मान की डोर संभालेंगे।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

