भोपाल/जबलपुर। मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र समाप्त होते-होते रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय (RDVV), जबलपुर के कुलपति (VC) की नियुक्ति का मामला एक बड़े विवाद के रूप में सामने आया, जिसने न केवल उच्च शिक्षा विभाग बल्कि राजभवन की कार्यप्रणाली पर भी सीधे सवाल खड़े कर दिए। सदन के आखिरी दिन विपक्ष ने इस नियुक्ति को लेकर प्रक्रियागत अनियमितताओं और नियमों के घोर उल्लंघन का आरोप लगाते हुए जमकर हंगामा किया, जिससे शिक्षा के सबसे बड़े पद पर विराजमान व्यक्ति की वैधानिकता पर गहरा प्रश्नचिह्न लग गया है।
दरअसल, यह विवाद कुलपति की नियुक्ति के साथ ही शुरू हो गया था, जब प्रोफेसर राजेश कुमार वर्मा को राज्यपाल द्वारा इस पद पर नियुक्त किया गया था। शुरुआत से ही इस नियुक्ति पर छात्र संगठनों और विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाए थे, जिनमें योग्यता के मानदंडों को लेकर असंतोष था। उनका आरोप था कि कुलपति पद के लिए आवश्यक शैक्षणिक और प्रशासनिक अनुभव के मानकों को दरकिनार किया गया और चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव रहा। विधानसभा में विधायकों ने इस बात पर जोर दिया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और राज्य के विश्वविद्यालय अधिनियमों के तहत निर्धारित सर्च कमेटी (Search Committee) के गठन और उसकी कार्यप्रणाली की गहन समीक्षा की जानी चाहिए। जनता के बीच यह सवाल ज़ोर पकड़ रहा है कि आखिर क्या वजह है कि एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के सर्वोच्च पद पर हुई नियुक्ति को लेकर इतने लंबे समय से विवाद बना हुआ है और क्या राजनीतिक हस्तक्षेप ने उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को दांव पर लगा दिया है।
विधानसभा में हुए हंगामे के केंद्र में हाल ही में सामने आए यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप भी थे, जिसने इस पूरे मामले को एक नया और संवेदनशील मोड़ दे दिया। एक महिला कर्मचारी द्वारा वर्तमान कुलपति के विरुद्ध लगाए गए गंभीर आरोपों ने विश्वविद्यालय के अकादमिक और प्रशासनिक माहौल पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। यह बात सदन में प्रमुखता से उठाई गई कि जब पद पर बैठे व्यक्ति पर इस तरह के चरित्रगत आरोप लगे हों, तो उनकी नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर उठाए गए सवालों को और अधिक गंभीरता से लिया जाना चाहिए। जनता के मन में यह जिज्ञासा है कि सरकार इन नैतिक और कानूनी आरोपों को किस तरह देख रही है और क्या इन आरोपों के चलते उनकी नियुक्ति पर कोई आंच आएगी।
इस मामले की गंभीरता तब और बढ़ गई जब जबलपुर उच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का आदेश दिया, जिसमें एक महिला अधिकारी का होना अनिवार्य किया गया। कोर्ट ने राज्य के डीजीपी को यह एसआईटी तीन दिनों के भीतर गठित करने का निर्देश दिया था। एसआईटी की यह जांच रिपोर्ट सीधे उच्च न्यायालय में पेश की जानी है, जिसके आधार पर कुलपति का भविष्य तय होगा। विधानसभा में सवाल उठाने वाले विधायकों ने तर्क दिया कि जिस कुलपति का भविष्य अब न्यायालय द्वारा नियुक्त पुलिस जांच दल की रिपोर्ट पर निर्भर हो, उनकी नियुक्ति को लेकर उठे प्रक्रियागत और योग्यता संबंधी संदेहों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कुलपति के पद पर बैठा व्यक्ति केवल प्रशासक नहीं होता, बल्कि वह हजारों छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए एक शैक्षणिक आदर्श भी होता है। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश का एक प्रमुख शिक्षण संस्थान है, और इस तरह के विवादों से न केवल इसकी अकादमिक प्रतिष्ठा धूमिल होती है, बल्कि छात्र-छात्राओं के बीच भी अविश्वास और अनिश्चितता का माहौल बनता है। विधानसभा में विपक्षी सदस्यों ने मांग की है कि विश्वविद्यालय की साख और छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए, सरकार को इस विवादित नियुक्ति के संबंध में सफेद पत्र (White Paper) जारी करना चाहिए, ताकि जनता को पता चले कि कुलपति पद पर चयन के क्या वास्तविक मापदंड अपनाए गए थे और क्या किसी खास व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में ढील दी गई थी।
इस पूरे घटनाक्रम ने उच्च शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता की आवश्यकता को रेखांकित किया है। अब सबकी निगाहें राज्य सरकार के आगामी कदमों पर टिकी हैं कि क्या वह न्यायिक जांच के परिणामों की प्रतीक्षा करती है, या विधानसभा में उठे गंभीर सवालों के दबाव में आकर इस विवादित नियुक्ति पर कोई बड़ा प्रशासनिक निर्णय लेती है। यह मामला एक मिसाल कायम करेगा कि क्या मध्य प्रदेश में शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति मेरिट और नियमों के आधार पर होती है, या राजनीतिक सिफारिशों के आगे नियमों को ताक पर रख दिया जाता है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

