नई दिल्ली. अमेरिका की डेलावेयर बैंकरप्सी कोर्ट ने बायजू रवींद्रन को बड़ी राहत देते हुए वह 1 अरब डॉलर का डिफॉल्ट जुर्माना आदेश वापस ले लिया है, जिसने बीते कई महीनों से भारतीय एडटेक दिग्गज के संस्थापक पर भारी दबाव बना रखा था। यह फैसला उन ताज़ा प्रस्तुतियों के बाद आया, जिनमें रवींद्रन की कानूनी टीम ने दलील दी कि 20 नवंबर को जारी निर्णय में उन्हें वह 30 दिन तक का समय ही नहीं दिया गया, जिसकी मांग उन्होंने अमेरिकी अटॉर्नी नियुक्त करने के लिए की थी। अदालत ने इन आपत्तियों को स्वीकार करते हुए नुकसान की गणना से जुड़े हिस्से को आदेश से हटा दिया और जनवरी 2026 की शुरुआत में एक नया चरण शुरू करने के निर्देश दिए, जिसमें यह तय होगा कि वास्तविक नुकसान कितना है और क्या रवींद्रन व्यक्तिगत रूप से उसके लिए ज़िम्मेदार हैं।
डेलावेयर कोर्ट ने 8 दिसंबर को जारी आदेश में साफ कहा कि पिछले डिफॉल्ट जजमेंट में “डैमेजेज तय ही नहीं हुए थे” और इस कारण वह अपने पूर्व आदेश के उन हिस्सों को संशोधित कर रही है, जिनमें एक अरब डॉलर का आकलन शामिल था। अदालत ने 7 जनवरी को दोनों पक्षों को नुकसान से संबंधित अपनी-अपनी दलीलें पेश करने के लिए बुलाया है। इसके बाद अदालत एक अंतिम आदेश पारित करेगी, जो इस बहुचर्चित मुकदमे की अगली दिशा तय करेगा।
बीते एक वर्ष में यह विवाद लगातार गहराता चला गया है। ग्लास ट्रस्ट (GLAS Trust) के नेतृत्व में कर्जदाताओं के समूह ने रवींद्रन, उनकी सह-संस्थापक पत्नी दिव्या गोखुलनाथ और शीर्ष कार्यकारी अनीता किशोर पर आरोप लगाया था कि उन्होंने 2021 में उठाए गए 1.2 बिलियन डॉलर के टर्म लोन का बड़ा हिस्सा छिपा दिया और 533 मिलियन डॉलर की राशि को कथित रूप से “साइफ़न ऑफ़” कर निजी लाभ के लिए इस्तेमाल किया। इस आरोप ने भारतीय स्टार्टअप जगत में हलचल मचा दी थी, जो पहले ही बायजू’s की गिरती स्थिति, कर्मचारियों की छंटनी और बढ़ते घाटों के कारण चिंता में था।
संस्थापकों ने इन आरोपों को शुरू से नकारा और कहा कि पैसा विभिन्न रणनीतिक अधिग्रहणों में लगाया गया, जिनकी कुल कीमत लगभग 3 बिलियन डॉलर रही। नए बयान में संस्थापकों ने कर्जदाताओं पर और तीखा हमला बोलते हुए कहा कि ग्लास ट्रस्ट ने अदालतों और जनता को “भ्रमित” किया, महत्वपूर्ण सूचनाओं को छिपाया, और इस गलत प्रचार ने कंपनी की सेहत को तेजी से गिराया। उनके अनुसार, इसी गलतनीयता ने लगभग 85,000 नौकरियों को प्रभावित किया, 250 मिलियन छात्रों की शिक्षा यात्रा को बाधित किया और कई अरब डॉलर की वैल्यू मिटा दी।
बायजू रवींद्रन की टीम अब प्रतिआक्रमण की तैयारी में दिखाई देती है। रवींद्रन पहले ही 2.5 बिलियन डॉलर के मुकदमे का संकेत दे चुके हैं और अब कहा जा रहा है कि यह दावा वर्ष समाप्त होने से पहले अमेरिकी अदालत में दाखिल कर दिया जाएगा। उनके मुकदमेबाजी सलाहकार माइकल मैकनट ने कहा कि “आज तक अदालत ने रवींद्रन को एक भी डॉलर का नुकसान भरपाई देने का दोषी नहीं पाया है” और आने वाली सुनवाई केवल नुकसान के मसले पर केंद्रित होगी। उनका दावा है कि कर्जदाता यह साबित नहीं कर पाएंगे कि उन्हें कोई नुकसान हुआ है, बल्कि रवींद्रन की टीम अदालत में यह दिखाने जा रही है कि कर्जदाताओं ने ही कई चरणों में अदालतों को गुमराह किया, भारत समेत कई न्यायालयों में झूठे दावे पेश किए और इस रणनीति से रवींद्रन व अन्य संस्थापकों को बदनाम किया।
सबसे गंभीर आरोप अल्फ़ा फंड्स मामले से जुड़े हैं, जिनमें कर्जदाताओं का कहना था कि 533 मिलियन डॉलर का उपयोग उद्देश्यों से अलग किया गया। लेकिन रवींद्रन की ओर से जारी बयान में कहा गया कि ग्लास ट्रस्ट ने अदालतों को यह कहकर भ्रमित किया कि उन्हें नहीं पता धन कहां गया, जबकि अप्रैल 2025 से ही उनके पास वे दस्तावेज़ थे, जो दिखाते हैं कि संबंधित राशि थिंक एंड लर्न (T&L) में भारतीय नियमों के अनुरूप निवेश की गई थी। रवींद्रन की टीम का कहना है कि कर्जदाताओं के अपने वकीलों ने अलग मुकदमों के दौरान यह जानकारियां इकट्ठी कीं, जो बाद में रवींद्रन तक भी पहुंचीं, और वे साफ बताती हैं कि पैसा संस्थापकों द्वारा निजी उपयोग में नहीं लिया गया। इसके अतिरिक्त, थिंक एंड लर्न के सार्वजनिक वित्तीय अभिलेख बताते हैं कि रवींद्रन और उनसे संबद्ध संस्थाओं ने उसी अवधि में 475 मिलियन डॉलर से अधिक राशि अपनी निजी हिस्सेदारी खरीदने में लगाई।
इन सारे दस्तावेज़ों और साक्ष्यों को अब आने वाली अपील में और 2.5 बिलियन डॉलर के मुकदमे में मुख्य आधार बनाया जाएगा। संस्थापकों की योजना इन्हें भारतीय अदालतों में भी पेश करने की है, जहां कई संबंधित मुकदमे पहले से लंबित हैं। अभी तक का घटनाक्रम यह संकेत देता है कि बायजू’s का विवाद सिर्फ एक कारोबारी लड़ाई नहीं रहा, बल्कि यह अब अंतरराष्ट्रीय कानूनी, वित्तीय और प्रतिष्ठागत संघर्ष में तब्दील हो चुका है, जिसमें दोनों पक्ष अपने-अपने दावों को लेकर अडिग हैं और एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं।
जनवरी 2026 में शुरू होने वाला नुकसान निर्धारण चरण अब इस पूरे विवाद का निर्णायक मोड़ बन सकता है। यदि अदालत यह स्वीकार करती है कि कर्जदाता कोई वास्तविक नुकसान नहीं दिखा पा रहे, तो रवींद्रन को मिले अंतरिम राहत को स्थायी मजबूती मिल सकती है। दूसरी ओर, यदि अदालत किसी स्तर पर कर्जदाताओं की बात मान लेती है, तो यह मामला नए मुकदमों और लंबी कानूनी कार्रवाई की ओर मुड़ सकता है। फिलहाल अमेरिकी अदालत के नवीनतम निर्णय ने बायजू रवींद्रन को सांस लेने का मौका दिया है, लेकिन यह संघर्ष अभी खत्म होने से काफी दूर दिखाई देता है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

