नई दिल्ली. भारत में शेयर बाजार और सोशल मीडिया का रिश्ता जितना गहरा हो रहा है, उतनी ही तेजी से गलत सलाह, झूठे दावे और ‘गैर-पेशेवर वित्तीय गुरुओं’ की भीड़ बढ़ रही है। इस बढ़ती अव्यवस्था पर रोक लगाने के लिए सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) को सीधे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कार्रवाई करने का अधिकार दे दिया है। 8 दिसंबर की अधिसूचना के साथ वित्त मंत्रालय ने SEBI को सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के तहत वह शक्तियां प्रदान की हैं, जिनकी मांग बाजार नियामक लंबे समय से करता आ रहा था। अब कोई भी भ्रामक पोस्ट, वीडियो, रील या संदेश जो शेयर बाजार से जुड़ी गलत जानकारी फैलाता हो, उसे हटाने के लिए SEBI सीधे आदेश दे सकेगा—बिना किसी लंबी नौकरशाही प्रक्रिया, मध्यस्थ विभाग या विलंबित अनुमतियों के।
निवेश के क्षेत्र में सोशल मीडिया का प्रभाव अब इतना व्यापक हो चुका है कि लाखों युवा निवेशक यूट्यूब, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम और X पर उपलब्ध कंटेंट के आधार पर फैसले लेने लगे हैं। पिछले वर्षों में कई ऐसे मामले सामने आए जहां बिना SEBI पंजीकरण वाले फिनफ्लुएंसर्स ने ‘असली रहस्य’, ‘इनसाइडर टारगेट’, ‘100% रिटर्न’ या ‘शॉर्ट-टर्म मल्टीबैगर’ जैसे दावों से निवेशकों को आकर्षित किया। कुछ मामलों में पंप-एंड-डंप जैसे धोखे भी दर्ज हुए, जहां किसी छोटे शेयर में कृत्रिम खरीदारी कराई गई, मूल्य बढ़ने के बाद इन्फ्लुएंसर्स ने अपने लाभ पर शेयर बेच दिए और हजारों सामान्य निवेशक ऊंची कीमत पर फंस गए। बाज़ार नियामक की हालिया रिपोर्टों ने भी यह पुष्ट किया कि सोशल मीडिया आधारित गलत सूचनाएं भारतीय पूंजी बाजार में ‘सिस्टमिक रिस्क’ में बदलती जा रही थीं और खुदरा निवेशक उसके सबसे आसान शिकार बन रहे थे।
नई अधिसूचना के बाद से SEBI की भूमिका सिर्फ चेतावनी जारी करने तक सीमित नहीं रहेगी। अब वह प्लेटफॉर्म्स से सीधे भ्रामक कंटेंट हटाने की मांग कर सकेगा और ऐसा कंटेंट हटाना सोशल मीडिया कंपनियों के लिए वैकल्पिक नहीं बल्कि अनिवार्य जैसा होगा। यदि किसी पोस्ट या वीडियो में शेयर के अवास्तविक गुण गिनाए गए हों, नकली रिसर्च दिखाई जाए, रेगुलेशन की गलत व्याख्या की गई हो या किसी भुगतान किए गए प्रमोशन को डिस्क्लोजर के बिना प्रचारित किया जा रहा हो, तो कार्रवाई तत्काल संभव होगी। इससे उन फिनफ्लुएंसर्स पर बड़ा असर पड़ने की संभावना है, जो अब तक बिना किसी नियामकीय डर के ‘मार्केट गुरु’ की भूमिका निभाते आए हैं।
यह बदलाव सिर्फ कंटेंट क्रिएटर्स तक सीमित नहीं रहेगा; इसका सीधा प्रभाव निवेशकों पर भी पड़ेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम एक “नियामकीय सुरक्षा कवच” की तरह काम करेगा, जो खुदरा निवेशकों—खासकर नए युवाओं—को झूठे दावों, अवास्तविक रणनीतियों और गारंटीड रिटर्न जैसे खतरनाक वादों से बचा सकेगा। मार्केट में हाल के वर्षों में यह प्रवृत्ति व्यापक हो गई थी कि लोग सोशल मीडिया कॉल्स को लगभग ‘अंतिम फैसला’ मान लेते थे और यह सोचकर निवेश करते थे कि इन्फ्लुएंसर का दावा जरूर सही होगा। कई मामलों में नुकसान होने पर पीड़ितों को समझ आया कि सलाह देने वाला न तो पंजीकृत था, न उत्तरदायी। SEBI की नई शक्तियों से इस जोखिम में कुछ कमी आएगी, क्योंकि कंटेंट निर्माताओं को अब और अधिक पारदर्शिता, डिस्क्लोजर और नियमों का पालन करना होगा—अन्यथा सीधा हस्तक्षेप और दंड की संभावना बढ़ जाएगी।
फिनफ्लुएंसर्स की दुनिया पिछले पांच वर्षों में तेजी से विकसित हुई है। कुछ ने निवेश शिक्षा को सरल भाषा में समझाकर सकारात्मक भूमिका निभाई, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे अकाउंट्स भी उभरे जो मुनाफे के नाम पर लोगों की नासमझी का फायदा उठाते रहे। पेड सिग्नल बेचने, क्लब मेंबरशिप के नाम पर भरोसा जीतने, और एफिलिएट कमिशन आधारित प्रमोशन छिपाकर स्टॉक की ‘हाइप’ बढ़ाने जैसी प्रथाएं आम हो गई थीं। SEBI को लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि ऐसे अकाउंट्स न केवल गलत जानकारी फैलाते हैं बल्कि कुछ मामलों में संगठित गिरोह की तरह काम करते हैं जहां कुछ इन्फ्लुएंसर्स मिलकर किसी छोटे शेयर को ट्रेंडिंग बना देते हैं और फिर उसे अचानक गिरा देते हैं। इस बदलाव के बाद उम्मीद की जा रही है कि ऐसे नेटवर्क्स की पहचान और कार्रवाई काफी तेजी से हो सकेगी।
सोशल मीडिया कंपनियों के लिए यह नया वातावरण चुनौतीपूर्ण तो होगा, लेकिन नियामक दृष्टिकोण साफ है—वित्तीय गलत सूचना को ‘स्वतंत्रता’ के नाम पर छोड़ा नहीं जा सकता। विशेषज्ञों का अनुमान है कि प्लेटफॉर्म्स को अब शेयर बाजार से जुड़ी सामग्री पर उन्नत मॉडरेशन तंत्र विकसित करना पड़ेगा, जिसमें स्वचालित फ़्लैगिंग के साथ-साथ SEBI के नोटिसों का त्वरित पालन भी शामिल होगा। संभव है कि आगे चलकर कुछ प्लेटफॉर्म्स निवेश से जुड़े क्रिएटर्स के लिए अलग से रजिस्ट्रेशन या डिस्क्लोजर लेयर भी जोड़ें, ताकि जिम्मेदारी तय हो सके।
हालाँकि, इस कदम के बीच एक दूसरी चिंता भी उठ रही है—कहीं यह अत्यधिक सेंसरशिप में न बदल जाए। पर विशेषज्ञ कहते हैं कि यह खतरा सीमित है, क्योंकि SEBI केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप करेगा जहां गलत सूचना, मैनिपुलेशन या निवेशकों को नुकसान पहुंचाने का स्पष्ट जोखिम दिखे। सामान्य विश्लेषण, राय या शिक्षा संबंधी सामग्री पर असर पड़ने की संभावना कम है। नियामक का उद्देश्य गलत और भ्रामक प्रचार को रोकना है, न कि चर्चा या विश्लेषण को।
निवेशकों के लिए यह समय अपनी रणनीति दृढ़ करने का है। जानकार लगातार सलाह देते हैं कि सोशल मीडिया कॉल्स को कभी अंतिम मानकर निवेश न करें, बल्कि उन्हें केवल एक ‘रेफरेंस’ की तरह देखें। कोई भी कंटेंट यदि बिना जोखिम बताए केवल लाभ दिखाए या “हर महीने पक्का मुनाफा” जैसे दावे करे, तो सतर्क हो जाना चाहिए। आधिकारिक डेटा, कंपनियों के वित्तीय नतीजे, SEBI-पंजीकृत सलाहकारों की राय और व्यक्तिगत रिसर्च अब पहले से कहीं अधिक जरूरी है। बाजार में सफलता उन्हीं को मिलती है जो विविधता बनाए रखते हैं, जोखिम समझते हैं और उत्साह या डर पर आधारित फैसलों से बचते हैं।
नई अधिसूचना ने यह संकेत दे दिया है कि भारत में फिनफ्लुएंसर अर्थव्यवस्था अब ‘गैर-नियंत्रित’ क्षेत्र नहीं रह पाएगी। आने वाले महीनों में कई नई गाइडलाइंस और सख्त कार्रवाई देखने को मिल सकती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि सरकार और नियामक अब साफ संदेश दे रहे हैं—निवेशकों का भरोसा सर्वोपरि है, और सोशल मीडिया पर गलत जानकारी फैलाना अब पहले की तरह आसान नहीं रहेगा।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

