आदिवासी युवक की मौत की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी गठित की, मंत्री को अंतरिम राहत से राजनीतिक हलचल तेज

आदिवासी युवक की मौत की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी गठित की, मंत्री को अंतरिम राहत से राजनीतिक हलचल तेज

प्रेषित समय :19:34:09 PM / Thu, Dec 11th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. आदिवासी युवक की संदिग्ध मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने मध्यप्रदेश की राजनीति से लेकर प्रशासनिक हलकों तक नई हलचल पैदा कर दी है. सर्वोच्च न्यायालय ने इस संवेदनशील मामले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया है, साथ ही मध्य प्रदेश के मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को अस्थायी सुरक्षा प्रदान की है. अदालत के इस कदम ने न केवल पीड़ित परिवार की उम्मीदों को बल दिया है, बल्कि यह सवाल भी उठाया है कि आखिर इस मामले में अब तक क्या-क्या अनदेखा रह गया था, जिसे सर्वोच्च अदालत को खुद आगे आकर दखल देना पड़ा.

घटना से जुड़े दस्तावेजों और सुनवाई के दौरान प्रस्तुत तर्कों ने अदालत को यह महसूस कराया कि मामला सिर्फ एक सामान्य आपराधिक जांच तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर कई परतें छिपी हो सकती हैं. आदिवासी समुदाय के लोगों ने भी लंबे समय से यह आरोप लगाया था कि युवक की मौत के मामले में गंभीर लापरवाही बरती गई और स्थानीय स्तर की जांच पक्षपातपूर्ण रही. इसी संदर्भ में पीड़ित परिवार ने उच्च स्तर की निष्पक्ष जांच की मांग की थी, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने इस बात पर चिंता जताई कि ऐसे मामलों में स्थानीय पुलिस या प्रशासन कई बार प्रभाव में आ सकता है और सत्य की खोज बाधित हो सकती है. अदालत ने साफ कहा कि जब तक जांच स्वतंत्र और पारदर्शी ढंग से नहीं होगी, तब तक न्याय की प्रक्रिया अधूरी रहेगी. इसी कारण एक विशेष जांच दल बनाने का फैसला लिया गया, जिसमें राज्य के बाहर के वरिष्ठ अधिकारियों को शामिल किया जा सकता है, ताकि कोई राजनीतिक या स्थानीय दबाव जांच को प्रभावित न कर सके. अदालत ने निर्देश दिया कि एसआईटी की कार्यवाही समयबद्ध हो और हर चरण की जानकारी न्यायालय को सौंपी जाए.

इस बीच, मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को दी गई अंतरिम सुरक्षा ने राजनीतिक बहस को और तेज कर दिया है. उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को लेकर विपक्ष लगातार मुखर रहा है और इस फैसले को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आईं. हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि यह राहत स्थायी नहीं है, बल्कि केवल तब तक है जब तक एसआईटी प्रारंभिक रिपोर्ट न्यायालय के सामने प्रस्तुत नहीं कर देती. अदालत ने यह भी कहा कि किसी भी राजनीतिक व्यक्ति के खिलाफ बिना पर्याप्त साक्ष्य कार्रवाई करना न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, इसलिए तथ्यों की पुष्टि होने तक उन्हें गिरफ्तारी या कठोर कदमों से राहत दी जा रही है.

इस फैसले के बाद राज्य सरकार और विपक्ष के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है. विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार ने शुरुआती जांच में पारदर्शिता नहीं बरती, जिसके चलते मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. वहीं, सरकार का कहना है कि न्यायालय के आदेश का स्वागत किया जाएगा और पूरी जांच प्रक्रिया में पूर्ण सहयोग दिया जाएगा. स्वयं गोविंद सिंह राजपूत ने भी मीडिया से कहा कि वे न्याय व्यवस्था का सम्मान करते हैं और एसआईटी से पूरी तरह सहयोग करेंगे ताकि सत्य सामने आ सके.

जनजातीय समाज इस फैसले से विशेष रूप से प्रभावित नजर आया है. उनके लिए यह मामला केवल एक मौत की जांच तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रशासन और न्याय प्रणाली में भरोसे का सवाल भी है. कई सामाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को सराहते हुए कहा कि इससे ऐसे मामलों में पीड़ित समुदायों को आवाज़ मिलने का रास्ता खुलेगा. आदिवासी नेताओं ने कहा कि यदि यह जांच सही दिशा में आगे बढ़ी, तो प्रदेश में जनजातीय समुदाय से जुड़े अन्य विवादित मामलों में भी न्याय की उम्मीद बढ़ेगी.

कानूनी विशेषज्ञ इस फैसले को महत्वपूर्ण मान रहे हैं. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश दिया है कि जब भी जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठेंगे, वह हस्तक्षेप करने में संकोच नहीं करेगा. एसआईटी का गठन यह संकेत भी देता है कि अदालत पुलिस और प्रशासन की सीमाओं को समझती है और आवश्यकता पड़ने पर वैकल्पिक जांच ढांचे को प्राथमिकता देती है.

मामले में अगली सुनवाई से पहले एसआईटी को आवश्यक दस्तावेज, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, गवाहों के बयान और स्थानीय पुलिस की कार्यवाही की पूरी फाइल का अध्ययन करना होगा. यह भी संभावना है कि जांच दल स्थल निरीक्षण और पुनः बयान दर्ज करने जैसे कदम उठाए. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि जांच पूरी तरह निष्पक्ष और बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के होनी चाहिए, और अगर एसआईटी को किसी भी स्तर पर बाधा का सामना करना पड़े, तो वह सीधे न्यायालय को सूचित कर सकती है.

फिलहाल पूरे प्रदेश की निगाहें इस जांच पर टिकी हैं. क्या एसआईटी इस रहस्यमय मौत की सच्चाई सामने ला पाएगी? क्या राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से परे जाकर वास्तविक दोषियों की पहचान होगी? क्या मंत्री को मिली अंतरिम सुरक्षा भविष्य की दिशा तय करेगी?

इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में सामने होंगे, लेकिन इतना तय है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को महज एक घटना की तरह नहीं देखा, बल्कि इसे न्याय, पारदर्शिता और संवैधानिक मूल्यों से जुड़े महत्वपूर्ण मामले के रूप में लिया है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-