तिरुवनंतपुरम. केरल की राजनीति में शनिवार को एक ऐसा घटनाक्रम सामने आया, जिसने राज्य के सियासी समीकरणों को झकझोर कर रख दिया। दशकों से वामपंथ का मजबूत गढ़ माने जाने वाले तिरुवनंतपुरम नगर निगम में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया। इस जीत के साथ ही 45 वर्षों से चला आ रहा वाम लोकतांत्रिक मोर्चा का शासन समाप्त हो गया और राजधानी की स्थानीय सत्ता में पहली बार बीजेपी-एनडीए का परचम लहराया। इस नतीजे को केवल एक नगर निगम चुनाव की जीत नहीं, बल्कि केरल की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत माना जा रहा है। एक ओर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने निर्णायक बढ़त हासिल कर राज्य की सियासत में अपनी मजबूती का ऐलान किया, वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने तिरुवनंतपुरम नगर निगम जीतकर इतिहास रच दिया। इन नतीजों को केवल स्थानीय निकाय चुनाव तक सीमित नहीं देखा जा रहा, बल्कि 2026 के विधानसभा चुनावों की भूमिका के तौर पर भी इनका व्यापक राजनीतिक अर्थ निकाला जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऐतिहासिक जीत पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए इसे केरल की राजनीति के लिए एक निर्णायक क्षण बताया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उन्होंने तिरुवनंतपुरम के मतदाताओं का आभार जताया और कहा कि बीजेपी-एनडीए को मिला यह जनादेश केवल एक चुनावी सफलता नहीं, बल्कि वर्षों की मेहनत और विश्वास का परिणाम है। प्रधानमंत्री ने लिखा कि तिरुवनंतपुरम कॉर्पोरेशन में बीजेपी-एनडीए की जीत राज्य की राजनीति में एक नया अध्याय खोलती है और यह उन लाखों कार्यकर्ताओं की तपस्या का फल है, जिन्होंने पीढ़ियों तक जमीन पर संघर्ष किया।
तिरुवनंतपुरम नगर निगम, जिसे लंबे समय से वामपंथ की अभेद्य दीवार माना जाता था, वहां बीजेपी का इस तरह उभरना कई सवालों और संभावनाओं को जन्म देता है। 101 सदस्यीय निगम में बीजेपी ने 50 वार्डों में जीत दर्ज की, जबकि सीपीआई(एम) के नेतृत्व वाले एलडीएफ को 29 सीटों पर संतोष करना पड़ा। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को 19 सीटें मिलीं और दो वार्डों में निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे। इस तरह बीजेपी पूर्ण बहुमत से महज एक सीट दूर रह गई, लेकिन राजनीतिक रूप से यह बढ़त अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह जीत अचानक नहीं आई है। बीते कुछ वर्षों में बीजेपी ने केरल में अपनी संगठनात्मक पकड़ को लगातार मजबूत किया है। बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता, स्थानीय मुद्दों को उठाने की रणनीति और केंद्र सरकार की योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाने का प्रयास इस सफलता के पीछे अहम कारण माने जा रहे हैं। खासतौर पर तिरुवनंतपुरम जैसे शहरी क्षेत्र में विकास, पारदर्शिता और सुशासन जैसे मुद्दों ने मतदाताओं को प्रभावित किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संदेश में पार्टी कार्यकर्ताओं की भूमिका को विशेष रूप से रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह जीत उन कार्यकर्ताओं की है, जिन्होंने हर परिस्थिति में पार्टी का झंडा थामे रखा और जनता के बीच रहकर काम किया। पीएम मोदी ने लिखा कि आज उन कार्यकर्ताओं के संघर्ष और समर्पण को याद करने का दिन है, जो पीढ़ियों से केरल में बीजेपी को मजबूत करने के लिए जुटे हुए थे। उन्होंने यह भी कहा कि कार्यकर्ता ही पार्टी की असली ताकत होते हैं और इस परिणाम ने इसे फिर से साबित कर दिया है।
तिरुवनंतपुरम के अलावा राज्य के अन्य हिस्सों में भी एनडीए ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है। कड़े मुकाबले के बाद एनडीए ने पलक्कड़ नगर पालिका में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ के खिलाफ अपना कब्जा बरकरार रखा। वहीं थ्रिप्पुनिथुरा नगर पालिका को कांग्रेस से छीनकर एनडीए ने एक और बड़ी राजनीतिक सफलता हासिल की। इन नतीजों से यह साफ हो गया है कि केरल के शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में बीजेपी का आधार धीरे-धीरे मजबूत हो रहा है।
कुल नतीजों पर नजर डालें तो यूडीएफ ने चार नगर निगमों में बहुमत हासिल कर स्पष्ट रूप से बढ़त बना ली, जबकि वाम लोकतांत्रिक मोर्चा और एनडीए को एक-एक निगम से संतोष करना पड़ा। यह तस्वीर अपने आप में केरल की बदलती राजनीतिक धुरी को दिखाती है। दशकों से राज्य की राजनीति मुख्य रूप से वामपंथ और कांग्रेस के बीच घूमती रही है, लेकिन इस बार बीजेपी-एनडीए की मौजूदगी और राजधानी में मिली जीत ने त्रिकोणीय राजनीति को और गहराई दे दी है।
वामपंथी दलों के लिए यह परिणाम एक बड़ा झटका माना जा रहा है। तिरुवनंतपुरम जैसे इलाके में, जहां लंबे समय से वामपंथ का प्रभुत्व रहा है, वहां सत्ता का हाथ से निकलना आत्ममंथन की मांग करता है। एलडीएफ के सामने अब यह चुनौती है कि वह जनता के बदलते मूड को कैसे समझे और भविष्य की रणनीति क्या हो। वहीं कांग्रेस के लिए भी यह नतीजा चेतावनी की तरह है, क्योंकि परंपरागत रूप से वाम और कांग्रेस के बीच बंटी रही राजनीति में बीजेपी तीसरे बड़े विकल्प के रूप में उभरती दिख रही है।
तिरुवनंतपुरम नगर निगम का नतीजा सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। 101 सदस्यीय निगम में एनडीए ने पहली बार जीत दर्ज करते हुए सीपीआई(एम) के नेतृत्व वाले एलडीएफ से सत्ता छीन ली। 45 वर्षों से चले आ रहे वामपंथी प्रभुत्व का इस तरह टूटना केरल की राजनीति में एक प्रतीकात्मक बदलाव माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत को ऐतिहासिक पल बताते हुए तिरुवनंतपुरम के मतदाताओं का आभार जताया और कहा कि यह परिणाम वर्षों की मेहनत और जमीनी संघर्ष का नतीजा है। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि बीजेपी-एनडीए को मिला यह जनादेश केरल की राजनीति में नया अध्याय है और यह पार्टी कार्यकर्ताओं के समर्पण का प्रमाण है।
दूसरी ओर, राज्यभर के नतीजों ने यूडीएफ के चेहरे पर सबसे बड़ी मुस्कान ला दी। कांग्रेस के नेतृत्व वाले इस मोर्चे ने कई महत्वपूर्ण निगमों और नगरपालिकाओं में बढ़त बनाकर यह संकेत दे दिया कि वह 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए मजबूत स्थिति में पहुंच रहा है। खासकर कन्नूर नगर निगम में बहुमत हासिल करना एलडीएफ के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि यह इलाका वामपंथ का पारंपरिक गढ़ रहा है। विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन ने नतीजों के बाद कहा कि स्थानीय निकाय चुनावों में यूडीएफ का मजबूत प्रदर्शन विधानसभा चुनावों के रास्ते को और चौड़ा करता है।
चुनाव नतीजों ने यह भी दिखाया कि एलडीएफ की ओर से आखिरी समय में शुरू की गई कल्याणकारी योजनाएं मतदाताओं को अपेक्षित रूप से आकर्षित नहीं कर पाईं। वाम मोर्चा, जो लंबे समय से केरल में अपनी संगठनात्मक ताकत और जनाधार के लिए जाना जाता रहा है, इस बार कई शहरी क्षेत्रों में रक्षात्मक नजर आया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि महंगाई, बेरोजगारी और शहरी प्रशासन से जुड़े मुद्दों पर मतदाताओं की नाराजगी ने एलडीएफ को नुकसान पहुंचाया।
मतगणना केंद्रों के बाहर का माहौल भी इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य को साफ दिखा रहा था। त्रिशूर के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज सहित कई काउंटिंग सेंटर्स के बाहर पार्टी कार्यकर्ताओं की भीड़, नारेबाजी और जश्न ने यह स्पष्ट कर दिया कि नतीजों को लेकर कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है। कहीं यूडीएफ के झंडे लहराते दिखे तो कहीं एनडीए समर्थक पहली बार मिली जीत का जश्न मनाते नजर आए।
कुछ इलाकों में स्थानीय कारकों ने भी अहम भूमिका निभाई। किझक्कंबलम में ट्वेंटी20 आंदोलन ने लगभग सभी वार्डों में बढ़त बनाए रखी, जिससे यह साफ हुआ कि वैकल्पिक राजनीतिक मॉडल भी केरल की राजनीति में अपनी जगह बना रहे हैं। वहीं तिरुवनंतपुरम के सस्थामंगलम वार्ड से बीजेपी उम्मीदवार और पूर्व डीजीपी आर. श्रीलेखा की जीत को भी प्रतीकात्मक माना जा रहा है, जिसने एनडीए की जीत को और मजबूती दी।
त्रिशूर निगम में एनडीए और यूडीएफ को एक-एक सीट मिलना यह दर्शाता है कि कई जगह मुकाबला बेहद कड़ा रहा। यह चुनाव किसी एक ध्रुवीय लहर के बजाय क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों पर आधारित दिखाई दिया। मतदाताओं ने कई जगह पार्टी से ज्यादा उम्मीदवार और उसके कामकाज को प्राथमिकता दी।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इन नतीजों से केरल की राजनीति में तीन स्पष्ट संदेश निकलते हैं। पहला, यूडीएफ एक बार फिर मुख्य विपक्षी शक्ति से आगे बढ़कर संभावित सत्ताधारी विकल्प के रूप में उभर रहा है। दूसरा, एलडीएफ के सामने अब आत्ममंथन की चुनौती है, क्योंकि उसकी पारंपरिक रणनीतियां हर जगह कामयाब नहीं रहीं। और तीसरा, बीजेपी-एनडीए ने यह दिखा दिया है कि वह केवल सीमित वोट प्रतिशत वाली पार्टी नहीं, बल्कि कुछ शहरी केंद्रों में निर्णायक भूमिका निभाने की क्षमता रखती है।
आम मतदाताओं की प्रतिक्रिया भी इस चुनाव में अहम रही। कई मतदाताओं का कहना है कि उन्होंने स्थानीय मुद्दों, बुनियादी सुविधाओं और प्रशासनिक कामकाज को ध्यान में रखकर मतदान किया। उनका मानना है कि नगर निगम स्तर पर विकास और पारदर्शिता सबसे अहम है, और इसी उम्मीद के साथ उन्होंने बदलाव का विकल्प चुना। यह रुझान इस बात की ओर इशारा करता है कि केरल की राजनीति अब केवल वैचारिक खांचों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि विकास और सुशासन जैसे मुद्दे भी निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं।
इस जीत का असर आगामी विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है। 2026 में होने वाले केरल विधानसभा चुनावों से पहले तिरुवनंतपुरम नगर निगम में मिली सफलता ने बीजेपी को नई ऊर्जा दी है। पार्टी के भीतर इसे मनोबल बढ़ाने वाली जीत के रूप में देखा जा रहा है, जो संगठन को आगे की लड़ाई के लिए तैयार करेगी। वहीं विरोधी दलों के लिए यह नतीजा रणनीति पर दोबारा विचार करने का संकेत है।
तिरुवनंतपुरम नगर निगम चुनाव के नतीजे केवल स्थानीय सत्ता परिवर्तन नहीं हैं, बल्कि केरल की राजनीति में गहरे बदलाव की दस्तक हैं। प्रधानमंत्री मोदी की बधाई और इसे ऐतिहासिक पल करार देना इस बात को और रेखांकित करता है कि बीजेपी इस जीत को भविष्य की बड़ी राजनीतिक तस्वीर से जोड़कर देख रही है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बदलाव कितना स्थायी साबित होता है और केरल की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है, लेकिन फिलहाल इतना तय है कि तिरुवनंतपुरम से उठी यह सियासी लहर राज्य की राजनीति में लंबे समय तक गूंजती रहेगी। 2025 के केरल स्थानीय निकाय चुनाव केवल नगर निगमों और नगरपालिकाओं की सत्ता तक सीमित नहीं रहे। इन नतीजों ने राज्य की राजनीति में बदलाव की आहट दे दी है। एक ओर यूडीएफ की निर्णायक जीत ने उसे भविष्य की दौड़ में आगे कर दिया है, तो दूसरी ओर एनडीए की ऐतिहासिक सफलता ने केरल की राजनीति को नई दिशा में सोचने पर मजबूर कर दिया है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये सियासी संकेत किस तरह 2026 के विधानसभा चुनावों की तस्वीर को आकार देते हैं, लेकिन फिलहाल इतना तय है कि केरल की राजनीति अब पुराने ढर्रे पर नहीं चल रही।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

