नई दिल्ली.उत्तर भारत इस समय प्रकृति के एक कठोर आवरण, घने कोहरे, की चपेट में है, जिसका सीधा और गंभीर असर देश की जीवनरेखा, भारतीय रेल, पर पड़ रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से बिहार की राजधानी पटना तक और इससे जुड़े अन्य प्रमुख मार्गों पर, रेलगाड़ियों की रफ्तार पूरी तरह से थम गई है। दृश्यता (विजिबिलिटी) इतनी खराब हो चुकी है कि रेलगाड़ियाँ अपने निर्धारित समय से घंटों विलंब से चल रही हैं, जिससे स्टेशनों और रेलगाड़ियों के भीतर यात्रियों की बेचैनी लगातार बढ़ती जा रही है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस समय रेल यात्रियों के 'लाइव अपडेट्स' और निराशा भरे संदेशों से पटे पड़े हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह स्थिति महज एक मौसम संबंधी बाधा नहीं, बल्कि एक व्यापक यात्रा संकट बन चुकी है।
यह संकट विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की ओर जाने वाले यात्रियों के लिए गहरा है, क्योंकि यह वह समय है जब लाखों लोग आवश्यक कार्यों या छुट्टियों के बाद अपने गंतव्यों की ओर लौट रहे होते हैं। सुबह जल्दी शुरू होने वाला सफर अब अनिश्चितकाल तक खिंचता जा रहा है, जिससे न केवल व्यक्तिगत योजनाएँ बाधित हो रही हैं, बल्कि व्यावसायिक और आधिकारिक कार्यों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। रेलगाड़ी के इंतजार में ठिठुरते लोग, जिनमें बुजुर्ग, बच्चे और बीमार व्यक्ति शामिल हैं, स्टेशन के प्लेटफार्मों पर कंबल ओढ़े या अलाव के पास खड़े होकर लगातार डिस्प्ले बोर्ड पर टकटकी लगाए हुए हैं, यह उम्मीद करते हुए कि उनकी रेलगाड़ी का विलंब समय कम हो जाए।
दिल्ली से हावड़ा, सियालदह, पटना, और भुवनेश्वर जाने वाली प्रमुख एक्सप्रेस रेलगाड़ियाँ—जैसे कि संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस, मगध एक्सप्रेस, और पूर्वा एक्सप्रेस—अपने निर्धारित समय से सात से बारह घंटे तक की देरी से चल रही हैं। इस देरी के कारण एक चेन प्रतिक्रिया शुरू हो गई है; एक रेलगाड़ी की देरी का असर उससे जुड़े अन्य रूटों पर भी पड़ रहा है, जिससे पूरे उत्तर रेलवे क्षेत्र का समय-सारणी बुरी तरह से चरमरा गया है। रेलगाड़ी के भीतर के हालात भी चुनौतीपूर्ण हैं। आरक्षित डिब्बों में भी खाने-पीने की वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित हुई है, और शौचालयों के उपयोग तथा साफ-सफाई की व्यवस्था पर दबाव बढ़ गया है। यात्रियों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि उन्हें यात्रा के दौरान विश्वसनीय जानकारी नहीं मिल पा रही है। यद्यपि रेलवे पूछताछ सेवाओं और ऐप पर अद्यतन (अपडेट) देने का प्रयास कर रहा है, लेकिन कोहरे के कारण बार-बार परिचालन स्थिति बदलने से सूचना की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग गया है।
सोशल मीडिया इस समय यात्रियों के लिए एक अनौपचारिक सहायता केंद्र बन गया है। यात्री ट्विटर और फेसबुक जैसे मंचों पर अपनी रेलगाड़ी संख्या और वर्तमान स्थान साझा कर रहे हैं, ताकि अन्य यात्री या रेल अधिकारी उनकी मदद कर सकें। कई यात्री रेलगाड़ी के भीतर से ही वीडियो और तस्वीरें साझा कर रहे हैं, जिसमें कोहरे की चादर में लिपटे धीमी गति से रेंगते रेलगाड़ी के दृश्य दिखाई दे रहे हैं, और साथ ही अपनी निराशा भी व्यक्त कर रहे हैं। कई लोग तो अपनी यात्रा को बीच में ही रद्द करने या वैकल्पिक साधनों की तलाश करने के बारे में भी सोच रहे हैं, लेकिन टिकट रद्द करने की जटिल प्रक्रिया और हवाई यात्रा के उच्च किराए ने उनकी कठिनाई को और बढ़ा दिया है।
रेलवे के परिचालन विभाग के अधिकारी इस चुनौती का सामना करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। दृश्यता अत्यंत कम होने पर रेलगाड़ी चालकों को सुरक्षा मानदंडों का पालन करते हुए रेलगाड़ियों को बहुत धीमी गति से चलाने के निर्देश दिए गए हैं। यह धीमी गति ही विलंब का मुख्य कारण बन रही है। विभिन्न स्टेशनों पर यात्रियों के लिए अतिरिक्त सहायता काउंटर खोले गए हैं, और रेलगाड़ी में भोजन और पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय विक्रेताओं के साथ समन्वय स्थापित किया जा रहा है। अधिकारियों का कहना है कि वे स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं और जैसे ही मौसम में सुधार होगा, रेलगाड़ियों की गति को बढ़ाकर समय की भरपाई करने का प्रयास किया जाएगा।
इस बीच, यात्री अब केवल मौसम के साफ होने की प्रार्थना कर रहे हैं। यह स्थिति एक बार फिर भारतीय रेल के लिए मौसमी चुनौतियों से निपटने और परिचालन में सुधार लाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है, ताकि देश की अर्थव्यवस्था और आम जनता की यात्रा योजनाओं पर कोहरे का यह घातक प्रभाव कम किया जा सके। विलंबित रेलगाड़ियों के इंतजार में बीता हर पल, हर यात्री के धैर्य की परीक्षा ले रहा है, और सोशल मीडिया पर साझा किया गया हर अपडेट इस व्यापक समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

