जयपुर. राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर से एक ऐसी खबर निकलकर सामने आ रही है जिसने न केवल चिकित्सा जगत में हलचल पैदा कर दी है बल्कि आम जनता के बीच भी आधुनिक तकनीक को लेकर एक नई जिज्ञासा जगा दी है। महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी (MGUMST) ने स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे को बदलने के लिए एक बेहद साहसिक और आधुनिक कदम उठाया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने आधिकारिक तौर पर यह घोषणा की है कि वे अब अपनी चिकित्सा और सुरक्षा सेवाओं को ड्रोन तकनीक से जोड़ने जा रहे हैं। यह खबर इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि राजस्थान के विशाल भौगोलिक क्षेत्र में जहाँ दूर-दराज के इलाकों तक समय पर पहुंचना एक बड़ी चुनौती रहा है, वहां अब आसमान के रास्ते जीवन बचाने की नई उम्मीद जगी है। लोग यह जानने को बेहद उत्सुक हैं कि आखिर एक छोटा सा उड़ने वाला यंत्र किस प्रकार अंगों के परिवहन और आपदा राहत जैसे जटिल कार्यों को अंजाम देगा।
इस महत्वाकांक्षी परियोजना को धरातल पर उतारने के लिए विश्वविद्यालय ने राजस्थान की ही अग्रणी ड्रोन निर्माता कंपनी 'मैजिक मायना' के साथ एक रणनीतिक समझौता किया है। इस साझेदारी का सबसे मुख्य आकर्षण 'सेंटर ऑफ एक्सीलेंस' की स्थापना करना है जो पूरी तरह से ड्रोन तकनीक के शोध और विकास के लिए समर्पित होगा। जब हम चिकित्सा सेवाओं में ड्रोन की बात करते हैं, तो यह केवल दवाइयां पहुंचाने तक सीमित नहीं है। इस पहल के तहत सबसे महत्वपूर्ण कार्य होगा मानव अंगों (Cadaver Organs) का परिवहन करना। अक्सर देखा जाता है कि अंग प्रत्यारोपण के मामलों में 'गोल्डन ऑवर' यानी वह शुरुआती समय बहुत कीमती होता है जिसमें अंग को एक शरीर से निकालकर दूसरे तक पहुँचाना होता है। सड़कों पर ट्रैफिक जाम और भारी भीड़ के कारण कई बार कीमती समय बर्बाद हो जाता है, लेकिन अब ड्रोन के जरिए बिना किसी बाधा के अंगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक मिनटों में पहुँचाया जा सकेगा।
जनता के मन में सुरक्षा और निगरानी को लेकर भी कई सवाल हैं जिसका जवाब इस तकनीक में छिपा है। विश्वविद्यालय परिसर की सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के लिए भी इन ड्रोन्स का इस्तेमाल किया जाएगा। मैजिक मायना के निदेशक सुनील सोमन नायर और राज्य प्रतिनिधि घनश्याम ने इस पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि अब तक ड्रोन तकनीक का सफल प्रयोग मुख्य रूप से रक्षा सेवाओं और सीमाओं की चौकसी में देखा गया है, लेकिन चिकित्सा क्षेत्र में इसका इस स्तर पर प्रयोग राजस्थान के लिए पहला और अनूठा उदाहरण होगा। यह ड्रोन न केवल प्रयोगशाला के नमूनों (Samples) को तेजी से लैब तक पहुँचाएंगे बल्कि किसी भी आपातकालीन स्थिति या आपदा के दौरान राहत सामग्री और दवाइयां उन जगहों तक भी पहुंचा सकेंगे जहाँ एम्बुलेंस या इंसानी पहुंच कठिन होती है।
इस तकनीक के आने से स्वास्थ्य सेवाओं की गति में जो बदलाव आएगा, उसे लेकर विशेषज्ञों और आम लोगों के बीच चर्चा का बाजार गर्म है। लोग इस बात को लेकर भी उत्साहित हैं कि क्या भविष्य में यह सुविधा सामान्य मरीजों के लिए भी उपलब्ध होगी। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि मेडिकल अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक सरकारी मंजूरियां प्राप्त करने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। जैसे ही ये औपचारिकताएं पूरी हो जाएंगी, जयपुर के आसमान में स्वास्थ्य सेवाओं की एक नई तस्वीर दिखाई देगी। यह पहल न केवल राजस्थान को देश के तकनीक-प्रेमी राज्यों की श्रेणी में सबसे आगे खड़ा करेगी बल्कि निजी अस्पतालों द्वारा आधुनिक सेवाओं को अपनाने के मामले में एक मिसाल भी पेश करेगी।
तकनीक और सुरक्षा का यह संगम आने वाले समय में कितना प्रभावी होगा, यह तो इसके पूर्ण संचालन के बाद ही पता चलेगा, लेकिन फिलहाल एमजीयूएमएसटी और मैजिक मायना की इस जुगलबंदी ने पूरे प्रदेश की निगाहें अपनी ओर खींच ली हैं। सुरक्षा निगरानी (Surveillance) के क्षेत्र में ड्रोन का उपयोग परिसर को सुरक्षित बनाने के साथ-साथ किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर पैनी नजर रखने में भी मदद करेगा। आपदा राहत कार्यों में ड्रोन की भूमिका किसी वरदान से कम नहीं होगी, जहाँ यह संकट के समय में 'फर्स्ट रिस्पॉन्डर' की भूमिका निभाकर स्थिति का जायजा ले सकेगा और तुरंत जरूरी किट्स पहुंचा सकेगा। जयपुर की यह शुरुआत संकेत है कि भविष्य की चिकित्सा व्यवस्था अब केवल अस्पतालों की इमारतों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि वह तकनीक के पंख लगाकर हर जरूरतमंद तक पहुंचने के लिए तैयार है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

