उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता का सुप्रीम कोर्ट जाने का ऐलान, कुलदीप सेंगर की जमानत पर गहराता आक्रोश

उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता का सुप्रीम कोर्ट जाने का ऐलान, कुलदीप सेंगर की जमानत पर गहराता आक्रोश

प्रेषित समय :20:05:15 PM / Wed, Dec 24th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

लखनऊ.उत्तर प्रदेश के चर्चित उन्नाव दुष्कर्म मामले ने आज एक बार फिर पूरे देश के न्याय तंत्र और आम जनता की चेतना को झकझोर कर रख दिया है। साल 2017 की वह काली रात जिसने एक मासूम की दुनिया उजाड़ दी थी, आज साल 2025 की कड़कड़ाती ठंड में दिल्ली की सड़कों पर विरोध की चिंगारी बनकर फूट पड़ी है। दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पूर्व भाजपा नेता और उम्रकैद की सजा काट रहे कुलदीप सिंह सेंगर की सजा निलंबित करने और उसे जमानत देने के फैसले ने पीड़िता और उसके परिवार को गहरे सदमे में डाल दिया है। बुधवार यानी 24 दिसंबर 2025 को पीड़िता ने इस अदालती फैसले को अपने और अपने परिवार के लिए 'काल' के समान बताते हुए घोषणा की है कि वह न्याय की अंतिम उम्मीद लेकर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगी। यह मामला केवल एक अदालती प्रक्रिया नहीं रह गया है, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा और रसूखदारों के खिलाफ न्याय की लड़ाई का एक बड़ा प्रतीक बन चुका है, जिसे लेकर सोशल मीडिया से लेकर दिल्ली की सड़कों तक भारी जिज्ञासा और चिंता का माहौल बना हुआ है।

दिसंबर 2019 में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद जेल की सलाखों के पीछे गए कुलदीप सेंगर को मिली इस राहत ने कानूनी और सामाजिक हलकों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को सेंगर की सजा निलंबित करते हुए उसे सशर्त जमानत देने का आदेश जारी किया था, जिसमें यह शर्त रखी गई है कि वह पीड़िता के घर के पांच किलोमीटर के दायरे में नहीं आएगा और न ही परिवार या गवाहों को डराएगा। हालांकि, तकनीकी रूप से सेंगर अभी भी जेल से बाहर नहीं आ सकेगा क्योंकि वह पीड़िता के पिता की हिरासत में हुई मौत के मामले में 10 साल की सजा अलग से काट रहा है और उस मामले में उसे फिलहाल कोई राहत नहीं मिली है। बावजूद इसके, दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध में उसकी सजा का निलंबित होना पीड़िता के लिए किसी दुःस्वप्न से कम नहीं है। पीड़िता ने सिसकते हुए मीडिया से कहा कि जो लोग ताकतवर और अमीर हैं, वे जीत रहे हैं और जो गरीब हैं, वे हार रहे हैं। उसकी बातों में छिपी यह हताशा आज उन हजारों लोगों की जिज्ञासा का विषय है जो यह समझना चाहते हैं कि क्या वाकई न्याय की देवी अब रसूखदारों के पक्ष में झुक रही है।

पीड़िता का दर्द और उसकी असुरक्षा की भावना तब और अधिक स्पष्ट हो गई जब उसने खुलासा किया कि उसके परिवार, वकीलों और गवाहों को मिली सुरक्षा पहले ही वापस ली जा चुकी है। दिल्ली की सड़कों पर अपनी मां के साथ मंडी हाउस और इंडिया गेट के आसपास विरोध प्रदर्शन करने निकली पीड़िता ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि अगर इस तरह के मामलों में दोषियों को जमानत मिलने लगी, तो देश की बेटियां कैसे सुरक्षित रहेंगी। मंगलवार की शाम को जब उसकी मां को विरोध जताते समय दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया, तो उस दृश्य के वीडियो सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल गए। लोग इस बात को लेकर उत्सुक हैं कि आखिर सुरक्षा वापस क्यों ली गई और जिस आरोपी ने एक पूरे परिवार को उजाड़ने की कोशिश की, उसे जेल से बाहर आने का मौका कैसे मिल रहा है। पीड़िता का कहना है कि सेंगर की रिहाई का मतलब उसके परिवार के लिए मौत के वारंट जैसा है, क्योंकि उसका प्रभाव अभी भी क्षेत्र में कम नहीं हुआ है।

सार्वजनिक चर्चाओं में इस बात को लेकर भी भारी उत्सुकता है कि अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाएगा। याद रहे कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने ही स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले को उत्तर प्रदेश से दिल्ली स्थानांतरित किया था ताकि निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित हो सके। पीड़िता ने स्पष्ट किया है कि वह हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती देने के लिए पूरी ताकत झोंक देगी। लोग यह जानने को बेताब हैं कि क्या दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई 'पांच किलोमीटर की दूरी' और 'गवाहों को न डराने' की शर्तें व्यावहारिक रूप से कारगर साबित होंगी, या फिर यह आरोपी को फिर से सक्रिय होने का मौका देंगी। कानूनी जानकारों के बीच भी इस फैसले के कानूनी आधारों को लेकर लंबी बहस छिड़ गई है, जो आम जनता की जिज्ञासा को और बढ़ा रही है।

आज की इस खबर ने न केवल उन्नाव के घावों को हरा कर दिया है, बल्कि यह भी दिखा दिया है कि न्याय की लड़ाई कितनी लंबी और थकाऊ हो सकती है। मंडी हाउस के पास अपनी मां के साथ न्याय की गुहार लगाती पीड़िता की तस्वीरें आज देश के हर संवेदनशील नागरिक को यह सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि क्या वाकई सिस्टम में सुधार हुआ है। जैसे-जैसे यह मामला सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंचेगा, देश भर की निगाहें एक बार फिर से उन ऐतिहासिक आदेशों पर टिकेंगी जो भविष्य में ऐसे रसूखदार अपराधियों के लिए नजीर पेश करेंगे। फिलहाल, दिल्ली की ठंड में न्याय की आस लिए खड़ा यह परिवार पूरे देश की सहानुभूति और जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है, और हर कोई बस यही जानना चाहता है कि क्या इस 'काल' से उन्हें कोई बचा पाएगा।

विशेष अनुमति याचिका के मजबूत कानूनी आधार  

दिल्ली हाईकोर्ट से कुलदीप सिंह सेंगर को मिली जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लेते हुए पीड़िता ने अपनी कानूनी रणनीति को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। जानकारों की मानें तो सुप्रीम कोर्ट में दाखिल होने वाली विशेष अनुमति याचिका यानी SLP (Special Leave Petition) मुख्य रूप से 'गवाहों की सुरक्षा' और 'अपराध की जघन्य प्रकृति' को आधार बनाकर तैयार की जा रही है। जनता के बीच इस बात को लेकर सबसे बड़ी जिज्ञासा है कि आखिर निचली अदालत से उम्रकैद पाने वाले अपराधी को हाईकोर्ट से राहत कैसे मिल गई और अब सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या रुख अपना सकता है। पीड़िता के वकीलों का मुख्य तर्क यह है कि सेंगर का राजनीतिक और सामाजिक रसूख इतना अधिक है कि जेल से बाहर आते ही वह मामले के बचे हुए गवाहों और पीड़िता के परिवार के लिए सीधा खतरा बन जाएगा

विशेष अनुमति याचिका में इस बात को प्रमुखता से उठाया जाएगा कि हाईकोर्ट ने जमानत देते समय अपराध की गंभीरता और पीड़िता के मानसिक आघात को नजरअंदाज किया है। पीड़िता का तर्क है कि जिस व्यक्ति ने एक पूरे परिवार को खत्म करने की साजिश रची हो, उसे 'सजा निलंबन' का लाभ देना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। याचिका में उन पुरानी घटनाओं का भी हवाला दिया जाएगा जिनमें पीड़िता के परिवार के सदस्यों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई थी। इसके साथ ही, सुरक्षा व्यवस्था हटाए जाने के मुद्दे को भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा जाएगा, क्योंकि शीर्ष अदालत ने ही 2019 में पीड़िता और उसके परिवार को पूर्ण सुरक्षा देने का ऐतिहासिक आदेश दिया था।

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान 'विक्टिम इम्पैक्ट असेसमेंट' यानी पीड़िता पर पड़ने वाले प्रभाव पर जोर दिया जाएगा। लोग यह जानने को उत्सुक हैं कि क्या सेंगर वाकई जेल से बाहर आएगा। फिलहाल स्थिति यह है कि भले ही उसे दुष्कर्म मामले में जमानत मिल गई हो, लेकिन पीड़िता के पिता की कस्टोडियल डेथ (हिरासत में मौत) के मामले में उसे मिली 10 साल की सजा अब भी बरकरार है। जब तक उस दूसरे मामले में भी उसे जमानत नहीं मिल जाती, वह जेल की सलाखों के पीछे ही रहेगा। पीड़िता इसी 'तकनीकी समय' का लाभ उठाकर जल्द से जल्द सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे (रोक) लगवाने की कोशिश में है।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल होने वाली इस चुनौती में यह भी तर्क दिया जाएगा कि हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई '5 किलोमीटर की दूरी' की शर्त अपर्याप्त है, क्योंकि आज के डिजिटल और मोबाइल युग में प्रभाव डालने के लिए शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य नहीं है। जनता की जिज्ञासा अब इस मोड़ पर है कि क्या सुप्रीम कोर्ट अपनी पिछली सख्त टिप्पणियों को दोहराते हुए हाईकोर्ट के इस फैसले को पलट देगा। आने वाले कुछ दिन उन्नाव मामले के भविष्य के लिए निर्णायक साबित होंगे, क्योंकि एक तरफ एक ताकतवर अपराधी की वापसी की कोशिश है और दूसरी तरफ एक संघर्षरत बेटी की न्याय के प्रति अंतिम उम्मीद।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-