हिमाचल में 108 और 102 एंबुलेंस सेवाओं के कर्मचारी दो दिवसीय हड़ताल पर, प्रदेशभर में आपात सेवाएं ठप

हिमाचल में 108 और 102 एंबुलेंस सेवाओं के कर्मचारी दो दिवसीय हड़ताल पर, प्रदेशभर में आपात सेवाएं ठप

प्रेषित समय :21:56:57 PM / Thu, Dec 25th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

शिमला.हिमाचल प्रदेश में आपात स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ मानी जाने वाली 108 और 102 एंबुलेंस सेवाएं इन दिनों गंभीर संकट से गुजर रही हैं। प्रदेशभर में इन सेवाओं से जुड़े सैकड़ों कर्मचारी दो दिन की राज्यव्यापी हड़ताल पर चले गए हैं, जिससे आम जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यह हड़ताल 27 दिसंबर की शाम तक जारी रहने की घोषणा की गई है। कर्मचारियों का आरोप है कि उनसे जुड़े बुनियादी श्रम अधिकारों का वर्षों से उल्लंघन हो रहा है, लेकिन न तो सरकार और न ही सेवा संचालित करने वाली एजेंसी उनकी समस्याओं को गंभीरता से ले रही है।

यह हड़ताल सीटू से संबद्ध 108 और 102 एंबुलेंस कर्मचारी यूनियन के बैनर तले की जा रही है। यूनियन नेताओं का कहना है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत संचालित इन एंबुलेंस सेवाओं में काम करने वाले ड्राइवर, पायलट, कैप्टन और इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन दिन-रात लोगों की जान बचाने में लगे रहते हैं, लेकिन उन्हें न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जा रहा। आरोप है कि कर्मचारियों से 12-12 घंटे की ड्यूटी ली जाती है, लेकिन ओवरटाइम का भुगतान नहीं किया जाता, जिससे शोषण की स्थिति और गंभीर हो जाती है।

यूनियन के मुताबिक, इस 48 घंटे की हड़ताल के दौरान प्रदेश के सभी जिलों में एंबुलेंस सेवाएं पूरी तरह बाधित रहेंगी। कर्मचारियों ने जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन करने के साथ-साथ शिमला में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के प्रबंध निदेशक कार्यालय और सोलन जिले के धर्मपुर स्थित मेडस्वान फाउंडेशन के मुख्यालय के बाहर बड़े विरोध-प्रदर्शन का ऐलान किया है। इन प्रदर्शनों में सैकड़ों कर्मचारियों के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है, जिससे राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग पर दबाव बढ़ना तय माना जा रहा है।

सीटू के प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, महासचिव प्रेम गौतम, यूनियन अध्यक्ष सुनील कुमार और महासचिव बलाक राम ने संयुक्त रूप से आरोप लगाया है कि मेडस्वान फाउंडेशन, जो वर्तमान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 108 और 102 एंबुलेंस सेवाओं का संचालन कर रही है, कर्मचारियों के साथ लगातार अन्याय कर रही है। उनका कहना है कि सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा और कर्मचारियों को लंबे समय तक बिना किसी अतिरिक्त पारिश्रमिक के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।

यूनियन नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि यह कोई नया मामला नहीं है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट, लेबर कोर्ट, शिमला के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत और श्रम विभाग की ओर से कई बार कर्मचारियों के पक्ष में आदेश दिए जा चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद नियमों का उल्लंघन जारी है। कर्मचारियों का कहना है कि अदालतों और विभागों के आदेश कागजों तक सीमित रह गए हैं और जमीनी स्तर पर हालात जस के तस बने हुए हैं।

हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों का यह भी आरोप है कि जो लोग यूनियन गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं, उन्हें खासतौर पर निशाना बनाया जाता है। कई कर्मचारियों का तबादला दूर-दराज के इलाकों में कर दिया गया, कुछ को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, तो कुछ से जबरन इस्तीफा दिलवाने का प्रयास किया गया। इसके अलावा, कई कर्मचारियों को महीनों तक बिना किसी ठोस कारण के ड्यूटी से बाहर रखा गया, जिससे उनके परिवारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया।

कर्मचारियों ने ईपीएफ और ईएसआई को लेकर भी गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि नियमों के विपरीत, कर्मचारियों के वेतन से दोनों ईपीएफ अंशदान काटे जा रहे हैं, जिससे हर कर्मचारी को हर महीने करीब दो हजार रुपये का नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही, वेतन की मूल राशि को जानबूझकर बहुत कम दिखाया जाता है, ताकि भविष्य में मिलने वाले लाभ भी सीमित रह जाएं। यूनियन का दावा है कि यह सीधे तौर पर श्रम कानूनों का उल्लंघन है।

मामला यहीं तक सीमित नहीं है। कर्मचारियों का कहना है कि जब एंबुलेंस सेवाएं पहले जीवीके ईएमआरआई के अधीन संचालित होती थीं, उस दौरान के कई बकाया भुगतान आज तक नहीं किए गए हैं। इनमें रिट्रेंचमेंट मुआवजा, ग्रेच्युटी, नोटिस पे और बकाया वेतन शामिल हैं। कर्मचारियों का आरोप है कि एजेंसी बदलने के बाद इन मुद्दों को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया और अब कर्मचारी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं।

इस हड़ताल का सबसे बड़ा असर आम लोगों पर पड़ रहा है। हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में, जहां दूर-दराज के इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं, वहां 108 और 102 एंबुलेंस सेवाएं जीवनरेखा मानी जाती हैं। दुर्घटना, प्रसव, गंभीर बीमारी और आपात स्थितियों में यही सेवाएं लोगों को समय पर अस्पताल तक पहुंचाने का काम करती हैं। ऐसे में इन सेवाओं के ठप होने से मरीजों और उनके परिजनों की चिंता बढ़ गई है।

हालांकि, कर्मचारियों का कहना है कि वे मजबूरी में यह कदम उठा रहे हैं। उनका तर्क है कि वर्षों तक शांतिपूर्ण तरीके से मांगें रखने के बावजूद जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो हड़ताल के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। यूनियन नेताओं ने साफ चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर जल्द सकारात्मक कार्रवाई नहीं की गई और उत्पीड़न बंद नहीं हुआ, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा और इसे बड़े स्तर पर निर्णायक संघर्ष में बदला जाएगा।

सरकार और स्वास्थ्य विभाग की ओर से अभी तक इस हड़ताल पर कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। हालांकि, स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ रहे असर को देखते हुए माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में प्रशासन और यूनियन के बीच बातचीत की संभावना बन सकती है। फिलहाल, प्रदेश के लोगों की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या सरकार और संबंधित एजेंसी कर्मचारियों की मांगों पर गंभीरता से विचार करेगी या यह विवाद और गहराता जाएगा। 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-