भारतीय क्रिकेट के गलियारों में इस समय एक ऐसी चर्चा ने जोर पकड़ लिया है जिसने हर क्रिकेट प्रेमी को हैरान और परेशान कर दिया है. यह चर्चा किसी हार या जीत की नहीं, बल्कि देश के सबसे होनहार और मैच जिताऊ बल्लेबाज यशस्वी जायसवाल के साथ हो रहे कथित 'अन्याय' की है. उत्तर प्रदेश के भदोही की गलियों से निकलकर मुंबई के आजाद मैदान में टेंट में रहने वाले और संघर्षों की आग में तपकर कुंदन बने यशस्वी जायसवाल आज उस मोड़ पर खड़े हैं, जहां उनके बल्ले से निकले रन तो चीख-चीखकर उनकी काबिलियत की गवाही दे रहे हैं, लेकिन टीम इंडिया के चयनकर्ताओं के बंद कान उन आवाजों को सुनने को तैयार नहीं दिख रहे. 23 साल के इस युवा खिलाड़ी को लेकर खेल जगत में एक ही सवाल गूंज रहा है कि आखिर हर फॉर्मेट में लगातार शानदार प्रदर्शन करने वाले एक मैच विनर खिलाड़ी को बार-बार नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है? सफेद गेंद की क्रिकेट में यशस्वी की अनदेखी ने अब एक बड़े विवाद का रूप ले लिया है, जिससे प्रशंसकों के बीच गहरी जिज्ञासा और आक्रोश की स्थिति पैदा हो गई है.
यशस्वी जायसवाल के लिए साल 2025 खुशियों से ज्यादा चुनौतियों और कड़वे अनुभवों वाला साबित हो रहा है. जिस खिलाड़ी को भविष्य का 'ऑल फॉर्मेट स्टार' माना जा रहा था, उसे अचानक 'सिंगल फॉर्मेट स्पेशलिस्ट' यानी केवल टेस्ट क्रिकेट का खिलाड़ी बताकर सीमित ओवरों की क्रिकेट से दूर किया जा रहा है. आंकड़ों पर नजर डालें तो यशस्वी की प्रतिभा पर शक करने की कोई गुंजाइश नहीं बचती, लेकिन चयन के उतार-चढ़ाव ने उनकी राह मुश्किल कर दी है. साल 2024 में जब टी-20 विश्व कप के लिए अनुभव को तरजीह देते हुए विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे दिग्गजों को मौका दिया गया, तब यशस्वी को बेंच पर बैठकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ा. प्रशंसकों को उम्मीद थी कि विश्व कप के बाद यशस्वी टीम का अभिन्न हिस्सा होंगे, लेकिन 50 ओवर के फॉर्मेट यानी वनडे क्रिकेट में भी उनके साथ वही दोहराया गया. चैंपियंस ट्रॉफी के लिए घोषित 15 सदस्यीय टीम में पहले उन्हें जगह दी गई, लेकिन कोच गौतम गंभीर की 'चौथे स्पिनर' की रणनीति ने यशस्वी को एक बार फिर टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया. यह खबर फैलते ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई कि क्या एक अतिरिक्त स्पिनर की खातिर इतने फॉर्म में चल रहे बल्लेबाज की बलि देना सही फैसला है?
चयन का यह चक्रव्यूह यहीं खत्म नहीं होता. जब टीम इंडिया के भविष्य के कप्तान माने जाने वाले शुभमन गिल को टी-20 फॉर्मेट से आराम दिया गया, तब यशस्वी की जगह ईशान किशन को वापस लाया गया. हाल ही में सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के फाइनल में ईशान किशन ने 49 गेंदों में शतक जड़कर सुर्खियां बटोरीं, लेकिन लोग यह भूल गए कि इसी टूर्नामेंट में कुछ दिन पहले यशस्वी जायसवाल ने भी इसी विपक्षी टीम के खिलाफ महज 50 गेंदों में तूफानी शतक जड़ा था. यह तुलना दर्शाती है कि यशस्वी हर मौके पर खुद को साबित कर रहे हैं, फिर भी उन्हें वह पहचान और निरंतरता नहीं मिल पा रही जिसके वे हकदार हैं. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पिछले मैच में शतक जड़ने के बावजूद यह लगभग तय माना जा रहा है कि 11 जनवरी को नियमित कप्तान शुभमन गिल की वापसी होते ही यशस्वी को एक बार फिर प्लेइंग इलेवन से बाहर होना पड़ेगा. अपने 24वें जन्मदिन की दहलीज पर खड़ा यह सितारा आज सिस्टम की बेरुखी का सामना कर रहा है.
यशस्वी के साथ हो रहे इस व्यवहार पर पूर्व भारतीय कप्तान और दिग्गज चयनकर्ता दिलीप वेंगसरकर ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की है. वेंगसरकर ने साफ शब्दों में कहा है कि बिना किसी गलती के यशस्वी जैसे खिलाड़ी को बाहर बैठाना दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने तर्क दिया कि टी-20 क्रिकेट पूरी तरह से आत्मविश्वास और लय का खेल है, और जब एक खिलाड़ी 200 के स्ट्राइक रेट से रन बना रहा हो, तो उसे बाहर करने का कोई तर्क समझ से परे है. वेंगसरकर का मानना है कि इस तरह के फैसलों से खिलाड़ी का मनोबल टूटता है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर उन्हें चयन करने का मौका मिलता, तो वे मौजूदा फॉर्म के आधार पर शुभमन गिल की जगह यशस्वी जायसवाल को चुनते क्योंकि टीम को आज जिस आक्रामक शुरुआत की जरूरत है, वह यशस्वी बखूबी दे रहे हैं. खेल विशेषज्ञों का मानना है कि टी-20 जैसे फॉर्मेट में खिलाड़ी का लगातार नजरों के सामने रहना जरूरी है, लेकिन यशस्वी को केवल टेस्ट क्रिकेट तक सीमित रखकर उन्हें सफेद गेंद की चमक से दूर किया जा रहा है.
पूर्व भारतीय सलामी बल्लेबाज और कोच डब्ल्यूवी रमन ने हालांकि यशस्वी को धैर्य रखने की सलाह दी है. उनका कहना है कि विश्व कप की टीम का चयन हो चुका है और अब उसमें बदलाव संभव नहीं है, लेकिन यशस्वी की प्रतिभा ऐसी है कि वे आने वाले समय में कई विश्व कप खेलेंगे. मगर सवाल यह उठता है कि क्या केवल भविष्य के भरोसे एक वर्तमान के मैच विनर को बर्बाद करना सही है? जनता के बीच यह जिज्ञासा बनी हुई है कि क्या इसके पीछे कोई अंदरूनी राजनीति है या फिर टीम मैनेजमेंट की कोई ऐसी गुप्त रणनीति है जिसे आम इंसान समझ नहीं पा रहा है. यशस्वी के पिछले पांच टी-20 मैचों के स्कोर 93, 12, 40, 30 और 10 रहे हैं, जो उनकी काबिलियत को दर्शाते हैं. इसके बावजूद उन्हें नजरअंदाज करना भारतीय क्रिकेट की चयन प्रक्रिया पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाता है.
आज यशस्वी जायसवाल का संघर्ष केवल पिच पर गेंदबाजों के खिलाफ नहीं है, बल्कि उन बंद कमरों में लिए जाने वाले फैसलों के खिलाफ भी है जो किसी खिलाड़ी के करियर की दिशा तय करते हैं. प्रशंसकों की सहानुभूति और दिग्गजों का समर्थन यशस्वी के साथ है, लेकिन क्या यह समर्थन उन्हें टीम की जर्सी वापस दिला पाएगा? यशस्वी की यह कहानी उन सभी खिलाड़ियों के लिए एक सबक है जो सोचते हैं कि केवल रन बनाना ही टीम में बने रहने की गारंटी है. भारतीय क्रिकेट के इस जटिल दौर में यशस्वी जायसवाल एक ऐसा नाम बन गए हैं जो अपनी मेहनत से हर दीवार को ढहाने का दम रखते हैं. अब देखना यह होगा कि आने वाले मैचों में चयनकर्ता अपनी गलती सुधारते हैं या फिर एक और मैच विनर खिलाड़ी को सिस्टम की भेंट चढ़ा दिया जाता है. इस पूरे प्रकरण ने भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को दो गुटों में बांट दिया है और हर कोई आने वाली 11 जनवरी का इंतजार कर रहा है ताकि यह साफ हो सके कि प्रतिभा और पसंद की इस जंग में जीत किसकी होती है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

