बेदी पर चढ़ता मध्यवर्ग

मध्यम वर्ग का आकार भारत की जनसंख्या में सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी सबसे नकारात्मक नज़रिए का शिकार है इन दिनों. मध्यवर्ग के लगभग 36 करोड़ सरों पर विकास, की ज़िम्मेदारी है जिसका निर्वहन कर भी रहा है मध्यवर्ग पर जब उसके हित की बारी आती है तो ताक में रखने से उसे कोई नहीं चूकता. भारत में इस मध्यवर्ग को केवल इस्तेमाल किया जाता है उसके खिलाफ प्रगतिशील चिंतन तो था ही अब सारे विचारक भी हैं जो आर्थिक सामाजिक सियासी मुद्दों से वास्ता रखते हैं. 
ऐसा क्यों है इसकी पड़ताल करने पर पता लगता है कि शासक वर्ग यानी रोज़गार प्रदाता स्वयंभू सर्वशक्तिशाली होता जा रहा है. उसे राजाश्रय प्राप्त है. पिछले दिनों रेलयात्रा में जब मैंने देखा कि दो बेटियां भोपाल रेलवे स्टेशन पर अपनी जबलपुर तक की सुरक्षित यात्रा के लिए मुझसे सहायता मांगने आईं तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए मुझे लगा कि मध्यवर्ग की ये बेटियाँ जिस परिस्थिति में सहायता मांग रहीं हैं वो केवल एक्स्ट्रा प्रीमियम तत्काल कोटे से टिकट न खरीद पाने से हट कर और कुछ भी नहीं हो सकती. भोपाल कांड के बाद मेरे मन पर गहरा भय है सो उन बेटियों को अपनी बेटी की बर्थ देना मुझे उचित लगा .तत्काल एवम एक्स्ट्रा प्रीमियम तत्काल कोटे से टिकट बेचना रेलवे की व्यापारिक सोच है उनके 70 वेटिंग के टिकट कन्फर्म हो सकते थे अगर प्रबंधन का नज़रिया मानवीय होता तो !
मित्रो देश का मिडिल क्लास जो क्लर्क है चपरासी है या शिक्षक है प्राइवेट कंपनी में 25 हज़ार तक (अधिकतम) कमाता है उसकी 20 से 30 या 31वीं तारीख बेहद कठिन होती है . उसकी ज़िन्दगी सब्सिडाइज नहीं होती . जब देखो तब मिडिल क्लास के लोग ईश्वर से केवल एक ही दुआ माँगतें हैं कि घर में कोई बीमार न हो जाए . 
शिक्षा , स्वास्थ्य , ट्रांसपोर्टेशन , किराया आदि का मंहगा होना , बीमा कंपनीयों के लुभावने ऑफर में फंसने के बाद लाभहीन प्रीमियम, कीमतों में उतार चढ़ाव इस वर्ग सबसे अधिक प्रभावित करता है. 
इस वर्ग के पास अब पूंजी निर्माण के लिए वो सब कुछ मौके नहीं हैं जिनका ज़िक्र मोदी जी ने मेडिसन स्क्वैर में किया था. उनने कहा था कि वे व्यक्तिगत सैक्टर को बढ़ावा देंगें! 
मध्यवर्ग उससे प्रभावित हुआ होगा खुश भी था परन्तु तीव्र आर्थिक विकास के प्रवाह में व्यक्तिगत सैक्टर गुमशुदा है . कम से कम मध्यवर्ग ज़रा सी भी पूंजी जमा न कर पाया . उधर क्रेडिट एक्सपानशन के की मौजूदगी से उसे ऊँची दरों पर ब्याज वाले ऋण लेकर अपनी ज़रूरतें पूरी करनी पड़ती है. 
बैंकों का दुष्प्रबंधन अपने घाटों को पूरा करने अपने इसी वर्ग को शिकार बनातीं नज़र आ रहीं हैं . 
गली गली इंजीनियर 15 से 20 हजार की पगार पर काम करते नज़र आ जाएंगे आपको....साथ ही मौका लगते वे क्लर्क तो क्या प्यून की की पोज़ीशन पर जाने को भी तैयार हैं. 
मध्यवर्ग का युवा वर्ग बेहद कन्फ्यूज है. अगर वो अनारक्षित श्रेणी का है तो फिर केवल मल्टी नेशनल कम्पनी के लिए काम करने के लिए आमादा है. जहां उसे उतना ही मिलेगा जितना उसके पिता को मिला करता था . यानी काम चलाऊ. जी हां सत्य है अमेरिका में भी आपका बेटा या बेटी खुश नहीं है वो आपको खुश होने का एहसास दिलातें है क्योंकि आपकी खुशी इस बात में है कि आपकी संतान एब्रॉड में हैं जो आपके लिए एक स्टेटस सिंबल है पर आप भीतर से कितना सुबकतें हैं अब सभी को पता है. आपकी संतानें #सुंदर_पिचाई  नहीं हैं वहां ये आपको अच्छी तरह से मालूम है . पर आप की मजबूरी है वो भारत में कुछ डॉलर भेजता है जो रुपया बन के आपके हाथ आते है विदेशी मुद्रा आना सरकार के लिए ठीक है पर आपकी आंखों का नम  रहना समाज के लिए दुःखद है.

गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” के अन्य अभिमत

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