देश में कश्मीर से विस्थापित हुए हिन्दुओं के बारे में अगर उसी समय समाधान निकलता तो संभवत: अन्य राज्यों में इसकी पुनरावृति रुक सकती थी, लेकिन समाधान निकालने के किसी भी तरीके पर सरकार की ओर से कोई चिंतन नहीं किया गया. इस कारण यह समस्या आज पूरे देश में तेजी से पैर पसारती जा रही है. इसका मुख्य कारण देश विरोधी कार्यों को अंजाम देने वाली राजनीति को माना जा सकता है. कश्मीर का सबसे जघन्य सच यह है कि वहां से जो हिन्दू धर्म को पूरी तरह से मानते थे, उन्हें ही भगाया गया, बाकी सब मुसलमान बन गए. यह एक प्रकार से धर्मान्तरण का ही खेल था. धर्मांतरण का खेल कौन चला रहा है, यह भी लगभग सभी जानते हैं.
महात्मा गांधी ने धर्मान्तरण के बारे में कहा था कि धर्मांतरण के कारण एक व्यक्ति केवल दूसरे सम्प्रदाय को ही स्वीकार नहीं करता, बल्कि देश का एक और दुश्मन पैदा हो जाता है. इस बात से यह संदेश मिलता है कि ईसाई संस्थाएं और इस्लामिक संस्थाएं अपने विचार को फैलाने के लिए जो कार्यक्रम चलाती हैं, वह भारत के लिए किसी न किसी रुप से ठीक नहीं जा सकती हैं. क्योंकि इन संस्थाओं के विचार पूरी तरह से भारतीय विचार से सामंजस्य नहीं रखते. वास्तव में विश्व के किसी भी देश में सबसे पहले यही शिक्षा दी जाती है कि वह उस देश की संस्कृति से जुड़े रहे. चाहे वह ईसाई देश हो या फिर मुस्लिम देश ही क्यों न हो? सबसे पहली बात यही होती है कि देश भक्त बने, केवल अपने संप्रदाय का भक्त नहीं. लेकिन हमारे देश में क्या हो रहा है. ईसाई और मुस्लिम संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे शिक्षण केन्द्रों में भी भारत की संस्कृति से परिचय नहीं कराया जाता. इसके कारण ही देश में देश विरोधी नारे लगाने वाली जमात पैदा हो रही है.
पूर्वांचल के राज्यों की स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है, वहां लम्बे समय से ईसाई मिशनरियां मतांतरण के कार्यक्रम चलाती रही हैं. इसके कारण कई राज्यों में ईसाई बहुसंख्यक की स्थिति में आ गए हैं और हिन्दू लगातार कम होते जा रहे है. अभी हाल ही में आए एक समाचार ने इस स्थिति को पूरी तरह से उजागर करके रख दिया है. देश के आठ राज्यों में हिन्दू समाज अल्पसंख्यक की स्थिति में आ चुका है. यह उस समय के आंकड़े हैं, जब देश में कांगे्रस नीत संप्रग की सरकार थी. मतलब 2011 की जनगणना के हैं. हम जानते हैं कि कांगे्रस की सरकार के समय ईसाई संस्थाओं को अप्रत्यक्ष संरक्षण मिलता रहा था. इस बात के संकेत दिल्ली के आर्कबिशप अनिल काउटो के पत्र से भी मिल जाते हैं. उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर देश में होने वाले चुनावों के लिए प्रार्थना करके कांगे्रस को समर्थन देने की बात कही है. अगर कांगे्रस को समर्थन देने की बात सही मानी जा सकती है तो यह भी तय है कि उनको हिन्दू समाज को ईसाई बनाने की खुली छूट भी मिल सकती है.
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही हिन्दुओं की संख्या में लगातार कमी होती जा रही है और जहां भी हिन्दू कम हुआ है, वहां समस्याएं बढ़ती जा रही हैं. इसका मतलब यह भी है कि हिन्दू जिस राज्य में भी बहुतायत में होता है वहां शांति का वातावरण होता है, देश का हिन्दू समस्या नहीं समाधान का हिस्सा है, समाधान का हिस्सा हिन्दू समाज की संस्कृति है. आज कई राज्यों में हिन्दुओं की संख्या में बहुत बड़ी कमी देखी जा रही है. इस कारण अभी खबर यह भी आई है कि देश के आठ राज्यों में हिन्दुओं का अल्पसंख्यक का दर्जा मिल सकता है. असके लिए अल्पसंख्यक आयोग 14 जून को एक महत्वपूर्ण बैठक कर रहा है. इस बैठक में इसकी घोषणा हो सकती है. 2011 की जनगणना के अनुसार इन आठ राज्यों में हिन्दू जनसंख्या में बहुत बड़ी कमी आई है. लक्ष्यद्वीप में 2.5, मिजोरम में 2.75, नागालैंड में 8.75, मेघालय में 11.53, जम्मू-कश्मीर में 28.44, अरुणाचल प्रदेश में 29, मणिपुर में 31.39 और पंजाब में 38.40 प्रतिशत हिंदू हैं. इसके अलावा देश के अन्य राज्यों में भी कई जिलों में हिन्दुओं की जनसंख्या में कमी आती जा रही है. इसमें उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और केरल के जिलों के नाम शामिल किए जा सकते हैं. जिन आठ राज्यों में हिन्दुओं की जनसंख्या अन्य समुदाओं से कम है, वहां हिन्दुओं का अल्पसंख्यक का दर्जा मिले इस बात की एक याचिका भाजपा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में लगाई है. याचिका में कहा गया है कि इन आठ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक है, इसलिए उसे अल्पसंख्यक के अधिकार मिलने चाहिए. इस पर विचार करने के लिए अल्पसंख्यक आयोग ने बैठक बुलाई है.
यहां चिंतन की बात यह नहीं है कि इन राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यकों के अधिकार मिलने चाहिए, बल्कि चिंतन इस बात का करना चाहिए कि इन राज्यों में ऐसे कौन से कारण रहे, जिसके चलते हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया. इसका मूल कारण क्या है, इसका उत्तर खोजा जाए तो स्ववाभाविक रुप से ऐसे कारण नजर आएंगे, जो देश के हित में नहीं हैं. कभी इसका कारण मतांतरण मिलेगा तो कहीं भय के कारण हिन्दू पलायन की स्थिति दिखाई देगी. कश्मीर इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, वहां एक समय हिन्दुओं की संख्या प्रभावी थी, लेकिन अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान परस्त व्यक्तियों ने हिन्दुओं पर अत्याचार किए, इसके कारण आज घाटी हिन्दू विहीन हो गई है. पाकिस्तान परस्त मानसिकता वाले कट्टरपंथी मुसलमान आज भी देश के कई हिस्सों में योजनापूर्वक हिन्दुओं को प्रताड़ित करते हैं, जिससे हिन्दू किसी अन्य स्थान पर चले जाएं. उत्तरप्रदेश के कैराना और पश्चिम बंगाल के कई जिलों में ऐसे ही हालात निर्मित हुए हैं. इतना ही नहीं कई स्थानों पर हिन्दू समाज अपने त्यौहार खुलकर मनाने की स्थिति में नहीं हैं. सवाल यह भी है कि भारत देश के कई हिस्सों में हिन्दू भय की स्थिति में जीने को मजबूर हो रहा है. क्या हमारा देश अहिन्दूकरण की ओर कदम बढ़ा रहा है. यह देश के हिन्दुओं को समझना होगा. अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है, जो आज कश्मीर में हो रहा है, वह पूरे देश में दिखाई देगा.