गोदी मीडिया सिर्फ हमारे देश की बीमारी नहीं इसका एक लम्बा इतिहास है.. हिटलर और गोएबल्स के दौर से लेकर आज तक यह हर दौर में एक नए रूप में ,नए देश में खड़ा नजर आता है.. हर देश में यह नेता के महिमामंडन की प्रक्रिया में वह इस हद तक पंहुच जाता है कि वह ,उस नेता को किसी अवतार के रूप में पेश करने लगता है.. उसके हर काम को वह मास्टर स्ट्रोक जैसी अनेक संज्ञाओं से सराहता रहता है.. इन झूठी सराहनाओं में वह नेता ऐसा बहने लगता है कि कालान्तर में उसका खामियाजा उस देश और वंहा की जनता को उठाना पड़ता है.. दुनिया के कई देश और वंहा की जनता इस बात के उदाहरण है जो अपने इस प्रकार के गढ़े गए नेताओं के निर्णयों से वे त्रस्त भी हुए हैं ! तो क्या हमारे पड़ौसी देश चीन में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है ? चीन में जिस तरह से वंहा के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को लेकर किया जा रहा है ,उसे देखकर तो ऐसा ही लगता है ! शी जिनपिंग को देश के संस्थापक माओत्से तुंग के बराबर का दर्जा दिए जाने के बाद अब उनकी तुलना समाजवाद के जनक कार्ल मार्क्स से की जाने लगी है.. हिटलर के करीब गोएबल्स थे तो जिनपिंग के पास हे यीतिंग हैं.. हे यीतिंग, न तो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं.. और न ही वो इसकी सेंट्रल कमेटी के सदस्य हैं.. हे यीतिंग चीन की सरकार में मंत्री भी नहीं हैं ,लेकिन उन्हें शी जिनपिंग के क़रीबी लोगों में से गिना जाता है.. हे यीतिंग ने .शी जिनपिंग थॉट.को .समकालीन या इक्कीसवीं सदी के मार्क्सवाद.की संज्ञा दे दी है.. यीतिंग के अनुसार, शी जिनपिंग ने नए युग के लिए साम्यवाद को कई नए सिद्धांत दिए हैं.. जैसे चैन सप्लाई ( आपूर्ति श्रृंखला ) में संरचनात्मक सुधार का सिद्धांत, आर्थिक न्यू नॉर्मल थ्योरी, नए युग में एक मज़बूत सेना का सिद्धांत, महाशक्तियो के बीच नए तरह के संबंधों के विचार और मानवता के साझा भविष्य के लिए एक समुदाय का सिद्धांत.. हे यीतिंग के अनुसार शी जिनपिंग के ये सभी विचार, .चीन में मार्क्सवाद के आधुनिकीकरण की दिशा में लंबी छलांग हैं.. और ये इक्कीसवीं सदी में मार्क्सवाद के महत्वपूर्ण चिन्ह भी हैं..वे शी जिनपिंग को कार्ल मार्क्स का असली उत्तराधिकारी बताते हैं तथा कहते हैं कि , मार्क्सवाद-लेनिनवाद, माओ के विचार, देंग शाओपिंग का सिद्धांत, जियांग ज़ेमिन के द थ्री रेप्रेज़ेंट्स और हू जिंताओं के विकास की वैज्ञानिक परिकल्पना, .शी जिनपिंग के थॉट.का ही हिस्सा हैं.. और यह भी कहते हैं कि अपने इन विचारों के चलते शी जिनपिंग आज इन .महानायकों और संतों.के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े हैं.. चीन में यह सबकुछ तब शुरु हुआ जब उन्हें अक्टूबर 2017 में दूसरी बार कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो ने सर्वसम्मति से देश के राष्ट्रपति पद के लिए चुना.. दूसरी बार चुने जाते ही जिनपिंग ने ,उत्तराधिकारी चुने जाने की परंपरा को तोड दिया.. यही नहीं उस समय उनके विचारों को ,जिन्हें .शी जिनपिंग थॉट.कहकर चीन के संविधान में उनके नाम के साथ शामिल किया गया.. इससे पहले तक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चीन के संस्थापक माओ , चीन के इकलौते ऐसे नेता थे जिनके विचारों को थॉट या सिद्धांत.की संज्ञा दी गई थी.. माओ ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया था और एक ऐसी सेना तैयार की थी , जिसने जापानियों से संघर्ष किया था.. जापान के उपनिवेशवाद के रूप में चीन में चल रही चियांग काई शेक की सरकार से माओ की सेना ने मुक़ाबला करके उन्हें शिकस्त दी थी और 1949 में चीन की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था.. इसे चीन की आजादी कहा जाता है.. इसके बाद माओ ने अमेरिका और सोवियत संघ जैसे ताक़तवर राष्ट्रों से भी टक्कर ली थी.. लेकिन आज चीन का मीडिया माओ से ज्यादा जिनपिंग की तारीफों के पुल बांधता रहता है..और माओ के सिद्धांतों को अप्रासंगिक लिखने तक की हिम्मत दिखा रहा है.. हालांकि माओ को चीन राष्ट्रपिता भी कहा जाता है.. यह मीडिया विश्व में पूंजीवाद और समाजवाद के बीच सत्ता संतुलन में आए नए और व्यापक परिवर्तनों का श्रेय शी जिनपिंग के थॉट (सिद्धांतों ) को देता है.. उनके अनुसार जिनपिंग के विचारों ने दुनिया का राजनीतिक और आर्थिक नक़्शा बदल दिया है और अब वे चीन को विश्व व्यवस्था के केंद्र में ले जा रहे हैं.. चीन में यह सब ऐसे दौर में भी लिखा गया जब चीन में कोरोना जैसे वायरस का संक्रमण फैला.. इस वायरस के संक्रमण को लेकर दुनिया के अधिकाँश देश चीन को शक की निगाह से देख रहे हैं.. लेकिन जिनपिंग का महिमामंडन जारी है.. इस महिमामंडन के बीच जिनपिंग तेजी से चीन की सत्ता के हर स्तर पर अपना शिकंजा पूरी तरह से कसते जा रहे हैं.. उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी को अपने अधीन कर लिया है.. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पर जिनपिंग की पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले माह प्रमुख कार्यकर्ताओं की डेमोक्रेटिक लाइफ मीटिंग में कार्यकर्ताओं से कहा गया कि , .उन्हें अपने दिल दिमाग से ही नहीं बल्कि आत्मा से भी पुराने विचारों के मलबे और कचरे को साफ़ करके निकाल देना चाहिए.. उस बैठक में शी जिनपिंग ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि सार्वजनिक सुरक्षा के हर अंग को पूरी तरह से केंद्र के प्रति समर्पित होना चाहिए.. और यह सब आधुनिक मार्क्सवाद के नाम पर किया जा रहा है ! दुनिया का कोई भी मार्क्सवादी विचारक इसे मार्क्सवाद तो कतई नहीं मानेगा ? इसके बाद जिनपिंग ने चीन की मिलिट्री रिज़र्व फ़ोर्स का नियंत्रण भी अपने हाथ में ले लिया.. फिल्म, टीवी और प्रकाशनों (ऑनलाइन साहित्य ) पर नियंत्रण और सख़्त कर दिया गया है.. सोशल मीडिया के मंच ट्विटर, यू ट्यूब, इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक खातों की अब और सघनता से निगरानी की जा रही है.. चीन में चल रहे इस घटनाक्रम ज्यादा कंही असर पड़ रहा है तो वह हमारे देश पर.. सीमा पर तनाव है.. युद्ध सदृश्य माहौल बना हुआ है ; क्या यह सब जिनपिंग के
नए युग में मजबूत सेना या महाशक्तियों नए संतुलन के सिद्धांत की वजह से हो रहा है ? या जिनपिंग अपने महिमामंडन के रंग में इस कदर रंगे जा चुके हैं कि वे विस्तारवाद की नीति को नव मार्क्सवाद का चोला पहनाने लगे हैं ? लेकिन चीन में जो कुछ हो रहा है और वह नव मार्क्सवाद की बजाय "नव फासीवाद ज्यादा नजर आ रहा है.. और चीन के नेता जिनपिंग इसी दिशा में बढ़ते चले तो इसका खामियाजा वंहा की जनता को आने वाले समय में भुगतना पड़ेगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता..