दिग्‍भ्रमित होने का खामियाजा भुगत रहे हैं वामपंथी 

आजादी के बाद भारत के बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों की कई पीढ़ियां वामपंथ और कांग्रेस की भेंट चढ़ गई. जो बिक सकते थे वह कांग्रेसी हो गए और बाकी बचे वामपंथी. कुछ तो इस भ्रम में भी कांग्रेसी हो गए कि यही वह पार्टी है जिसने देश को आजाद करवाया है और वामपंथी इस भ्रम में हो गए कि वामपंथ ही गरीबों के उत्थान का, दलितों और पीड़ितों के अभ्युदय का एकमात्र रास्ता है; जबकि हकीकत यह नहीं थी. हां अपवाद सब जगह होते हैं तो इनमें भी थे. ऐसे लोग भी थे जो जो इन दोनों ही विचारधाराओं से परे थे और सचमुच देश और देश की गरीब जनता का हित चाहते थे ,लेकिन उनकी गिनती नगण्य थी. 

शुरुआत के वामपंथी देश विरोधी नहीं थे, केवल भ्रमित थे. 'सर्वहारा का उत्थान' 'बुर्जुआ का पतन' जैसे शब्दों ने उनकी बुद्धि को फेर दिया था.  वह सचमुच गरीबों, दलित और पीड़ितों का उत्थान चाहते थे, लेकिन वह भूल गए कि वामपंथ का इतिहास हिंसा के इतिहास के सिवा कुछ नहीं है. ईमानदारी से कहूं तो विचारधारा के तौर पर इसमें कोई खामी नहीं है. संसार में हर आदमी समान हो, सबको समान अवसर मिले, कोई बड़ा और कोई छोटा ना हो ऐसा आदर्श समाज किसे नहीं चाहिए. लेकिन इस विचारधारा की पूर्ति के लिए उन्होंने जो मार्ग अपनाया वह मानवता के इतिहास के सबसे रक्तरंजित अध्यायों में से एक है. संसार में जितना नरसंहार चंगेज खान या मुगल आक्रांताओं ने नहीं किया होगा उससे ज्यादा नरसंहार, उससे भी अधिक हत्याएं वामपंथ की विचारधारा ने की हैं और आज भी कर रही है. इस विचारधारा ने कभी सोचा ही नहीं की हिंसा के अलावा भी मानव उत्थान का कोई रास्ता हो सकता है. पहले हाथ में हथियार थमा दो बाद में सोचो कि हथियार क्यों थमाया है. पहले खून बहाओ बाद में सोचो कि खून क्यों बहाया है. कभी आपने देखा कि वामपंथ ने किसी देश का भला किया? कुछ लोग चीन और रूस का उदाहरण दे सकते हैं लेकिन ऐसा सिर्फ वही कर सकते हैं जिन्हें इतिहास का ज्ञान नहीं है और जो सिर्फ विचारधारा के अंधकार में डूबे हैं. रूस और चीन इतिहास के हर मोड़ पर उस समय के हिसाब से शक्तिशाली राष्ट्र ही थे और आधुनिक समय के हिसाब से भी जिस समय से उनका  उत्थान शुरू हुआ, उसी समय से दुनिया के पचासों अन्य देशों ने, बिना वामपंथ का मार्ग अपनाए, बिना हिंसा का सहारा लिए खूब तरक्की की. इसलिए यह तो तय है कि वामपंथ और मनुष्य के उत्थान का आपस में कोई संबंध नहीं है लेकिन वामपंथ और हिंसा एक दूसरे के अभिन्न अंग हैं, यह तय है. और आज के वामपंथी इस बात को समझ भी चुके हैं, लेकिन इस विचारधारा को त्याग कर अप्रासंगिक हो जाने का भय, या इस विचारधारा पर चलने से होने वाले आर्थिक लाभ के खो जाने का भय उन्हें सही मार्ग पर आने नहीं देता. आज इन दोनों ही विचारधाराओं का देश और समाज के हित से कोई लेना देना नहीं रह गया है. जीवन में अप्रासंगिक हो जाने का भय एक बुद्धिजीवी, एक साहित्यकार के लिए सबसे बड़ा भय होता है और इस भय से मुक्त होने के लिए इंसान कुछ भी कर सकता है.
इसीलिए तो आज हर जगह जहां अगड़ों को पिछड़ों से लड़ाने की बात हो, हिंदू को मुसलमान से लड़ाने की बात हो, देश के टुकड़े टुकड़े करने की बात हो, क्रिस्चियन और हिंदुओं में विभाजन की बात हो, किसानों और देश के बाकी लोगों को बांटने की बात हो या अब सिखों को हिंदुओं से अलग करने की बात हो; हर जगह वही चेहरे दिखाई देते हैं. वही ग्रुप, उसी विचारधारा के लोग, चिर-परिचित चेहरे;इनके मन में कोई द्वंद नहीं है. जहां कहीं समाज को बांटने की बात हो, भारत को तोड़ने की बात हो वहां यह सब के सब एक साथ खड़े दिखाई देते हैं बिना किसी भी अपवाद के. ऐसा कैसे संभव है दो विचारधारा के लोग किसी भी मुद्दे पर आपस में विरोधाभास नहीं रखते, उनका कभी मतांतर नहीं होता; हर जगह एक साथ और केवल और केवल उन्हीं जगहों पर जहां समाज में विखंडन होता हो, जहां भारत का, हमारे देश का नुकसान होता हो, विरोध होता हो, चाहे वो देश हो या विदेश. और मेरी बात याद रखियेगा, कल को यह लोग बौद्ध और हिंदू, जैन और हिंदू; इनके बीच भी खाई खोदने का प्रयास करेंगे ही करेंगे. 

कुछ छोटे-छोटे स्थानीय राजनीतिक दल भी हैं जो देश में जातीयता और सांप्रदायिकता का जहर घोलने में लगे हैं लेकिन उनका दायरा सीमित है और उनका उद्देश्य भी दूरगामी नहीं है बल्कि अधिकतर तो अपने परिवार मात्र का हित साधना ही है, लेकिन कांग्रेस और वामपंथ, यह दो विचारधाराएं हैं जो पूरे देश में आग लगाने में लगी हैं; अपने स्वार्थ के लिए, सत्ता के लिए, हमेशा के लिए अप्रासंगिक हो जाने के भय से मुक्ति के लिए. इन्हें पहचानने की आवश्यकता है जो अब तो बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है. हर जगह यह खुद ही खड़े होकर अपना पोस्टर छपवा देते हैं. कभी भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग इनके प्रभाव में था क्योंकि अपनी लगाई आग का दोष दूसरे पर मढ देने में इन्हें महारत हासिल है; लेकिन आज यह खुद सामने आकर अपना परिचय दे रहे हैं. इनकी प्रतिक्रिया सिर्फ एक तरह की घटनाओं पर आती है, यह सिर्फ एक तरह के आंदोलनों का साथ देते हैं, यह सिर्फ एक तरह के लोगों का साथ देते हैं और यह सिर्फ एक तरह की घटनाओं को उछालते हैं. इसलिए अब इन्हें ही एक तरफ कर आगे बढने का समय आ गया है. आखिरकार रंगा सियार कब तक लोगों को भ्रम में रख सकता है? बारिश हो चुकी है और उसका रंग धुल चुका है; अब बस उसको खदेड़ा जाना बाकी है.

© 2023 Copyright: palpalindia.com
CHHATTISGARH OFFICE
Executive Editor: Mr. Anoop Pandey
LIG BL 3/601 Imperial Heights
Kabir Nagar
Raipur-492006 (CG), India
Mobile – 9111107160
Email: [email protected]
MADHYA PRADESH OFFICE
News Editor: Ajay Srivastava & Pradeep Mishra
Registered Office:
17/23 Datt Duplex , Tilhari
Jabalpur-482021, MP India
Editorial Office:
Vaishali Computech 43, Kingsway First Floor
Main Road, Sadar, Cant Jabalpur-482001
Tel: 0761-2974001-2974002
Email: [email protected]