स्पीकर का फैसला नए विधायकों के लिए ‘लांचिंग पैड’ हो सकता है...!

मध्यप्रदेश विधानसभा में पहली बार चुनकर आए विधायकों के लिए हर सत्र में प्रश्न काल का एक दिन रिजर्व रखने का फैसला सराहनीय और नवाचारी है. इसे नए विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम की सकारात्मक सोच और उनके संसदीय अनुभव प्रतिफल भी माना जा सकता है. हर विधानसभा में बड़ी संख्या में नए विधायक सदन में चुनकर आते हैं, लेकिन उनमें से बमुश्किल 10 फीसदी ही विधानसभा की कार्यवाही में ‍सक्रियता से भाग लेते हैं. प्रश्नकाल में तीखे सवाल कर सरकार को कटघरे में खड़ा करते हैं. अपनी तर्क और बहस की क्षमता का परिचय देते हैं. यूं मध्यप्रदेश में पहली से लेकर वर्तमान पंद्रहवीं विधानसभा तक अमूमन सभी स्पीकरों ने नए विधायकों को बोलने के लिए प्रोत्साहित किया है, उन्हें पर्याप्त संरक्षण दिया है. न केवल स्पीकर बल्कि कई बार सदन के वरिष्ठ सदस्य भी अपने जूनियरों का उत्साह बढ़ाते रहे हैं. बावजूद इसके सदन की कार्यवाही में नए विधायकों की भागीदारी उतनी नहीं होती, जितनी कि अपेक्षित है. लेकिन हर विधानसभा में कम से कम एक दर्जन चेहरे ऐसे जरूर झलकते हैं, जिनमें भावी प्रखर संसदवेत्ता होने की प्रतिभा दिखती है. विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने अपने इस नवाचारी निर्णय की जानकारी देते हुए कहा कि चालू बजट स‍त्र के दौरान यह नया प्रयोग 15 मार्च से लागू करने की तैयारी है. इसमें एक ‍िदन प्रश्नकाल में केवल नए विधायकों को ही प्रश्न पूछने की अनुमति होगी. मंत्री उनका उत्तर देंगे. पुराने विधायको को प्रश्न करने की अनुमति नहीं होगी. गौरतलब है कि विधानसभा या संसद में भी प्रश्नकाल सदन का सबसे जीवंत काल माना जाता है. जीवंत इसलिए क्योंकि सदस्य अपने तारांकित सवालों पर पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं. सरकार को घेर सकते हैं. कई बार ये सवाल- जवाब तीखी बहस की शक्ल भी ले लेते हैं. विधानसभा में प्रश्नकाल 1 घंटे का होता है. इसमें 25 तारांकित ( वो प्रश्न जिन पर सदन में मौखिक चर्चा होती है) पूछे जाते हैं. इन्हीं प्रश्नों के माध्यम से पूछने वाले विधायक और जवाब देने वाले मंत्री के विभागीय ज्ञान, होमवर्क और हाजिरजवाबी की भी सार्वजनिक परीक्षा होती है. इसलिए धुरंधर विधायक पूरी तैयारी से आते हैं और अपने उलझाऊ सवालों से कई दफा सरकार की बखिया उधेड़ देते हैं. इनमे कई बार सत्ता पक्ष के ‍िवधायक भी होते हैं. विधायकों के लिए प्रश्नकाल अपने क्षे‍त्र की समस्या उठाने का भी बेहतरीन अवसर होता है. विपक्ष के ‍िलए तो प्रश्नकाल एकतरह से आॅक्सीजन सिलेंडर की तरह ही होता है. जबकि सरकारें इससे बचना चाहती हैं. सवाल किया जा सकता है कि सदन में पूछे जाने वाले तारांकित सवाल कौन से होते हैं? इन प्रश्नों का चयन सदस्यों द्वारा विधानसभा सचिवालय को भेजे गए सवालों में से लाॅटरी पद्धति से किया जाता है. इसकी पर्ची भी विधायक ही ‍िनकालते हैं. चुनिंदा 25 सवालों पर सदन में मौखिक चर्चा होती है. बाकी प्रश्नों के सरकारी विभाग लिखित जवाब देते हैं. हालांकि कई बार सरकार को परेशानी में डालने वाले सवाल अतारांकित में चले जाते हैं. ऐसा संयोगवश होता है, इस पर कुछ लोगो को संदेह रहता आया है. जहां तक विधानसभा की कार्यवाही में नए ही नहीं पुराने विधायको की भागीदारी भी बहुत उत्साहजनक नहीं है. इसी संदर्भ में एक रिसर्च स्काॅलर निधि अरूण ने भारत के 17 ( नीति आयोग के अनुसार) उत्तम राज्यों की विधानसभाअों में विधायकों के परफार्मेंस का तुलनात्मक अध्ययन किया था. गत वर्ष अगस्त में छपी इस रिपोर्ट में बताया गया था कि नए ही क्यों विधानसभा में पुराने विधायक भी ज्यादा सवाल नहीं पूछते. परिणामस्वरूप सदन में तमाम‍ विधेयक धड़ाधड़ पास होते जाते हैं. उन सरकारी विधेयकों की मंशा और परिणामों पर कोई सार्थक चर्चा नहीं होती. किसी भी सरकार के लिए यह बहुत सुविधाजनक‍ स्थिति है. जबकि हमारी लोकतां‍त्रिक व्यवस्था में कार्यपालिका को जवाबदेह बनाने की महती ‍िजम्मेदारी विधायिका की है. यह जवाबदेही तभी पूर्ण होती है, जब विधायक विधानमंडलों में कार्यपालिका से जवाब तलब करें. निधि अरूण ने इसका एक नवाचारी सूचकांक तैयार किया था, जिसमें 17 विधानसभाअोंका डाटा विश्लेषित किया गया था. इस अध्ययन में सदन में सदस्यों द्वारा विधानसभा में जून 2017 से लेकर जून 2020 तक की अवधि का दौरान पूछे गए तारांकित और अतारांकित सवालों की संख्या को शामिल किया गया था. इन नवाचारी सूचकांक में कर्नाटक नंबर वन, तमिलनाडु नंबर दो पर तथा महाराष्ट्र विधानसभा नंबर तीन पर रही थी. मध्यप्रदेश विधानसभा का क्रमांक 17 राज्यों में 14 वां था. मप्र‍ विधानसभा में इस अवधि में 1450 तारांकित व 7610 अतारांकित सवाल ही पूछे गए थे. रिपोर्ट बताती है कि कर्नाटक विधानसभा में 92 फीसदी विधेयक उन्हें पेश किए जाने के एक हफ्ते के भीतर ही पारित हो गए ( क्योंकि उनपर ज्यादा चर्चा ही नहीं हुई). लगभग यही ट्रेंड अन्य‍ विधानसभाअोंमें भी पाया गया. रिपोर्ट यह भी कहती है कि ज्यादातर विधानमंडल मुख्यमंत्री और उनके कुछ खास मंत्री मिलकर ही चलाते हैं. विधायकों की भूमिका इसमें सीमित ही रहती है. अफसोस की बात यह भी है कि इस बात को लेकर मतदाता भी उदासीन रहते हैं कि उनके द्वारा निर्वाचित विधायक विधानसभा में ‍िकतना जागरूक, सक्रिय और गंभीर है. ज्यादातर ‍विधायक और खासकर नए विधायक विधानसभा की कार्यवाही में अपेक्षित भागीदारी क्यों नहीं करते? इस प्रश्न का उत्तर बहुआयामी है. पहला कारण संसदीय नियम कायदों का कम ज्ञान और उसे अर्जित करने में सदस्य की अरूचि हो सकती है. दूसरा कारण एक गंभीर मंच पर बोलने में संकोच या फिर अपने क्षेत्र के बारे में अपेक्षित जानकारियों का अभाव हो सकता है. मप्र की पंद्रहवीं विधानसभा में कुल 90 विधायक पहली बार चुनकर आए हैं, लेकिन प्रदेश की जनता की जबान पर इनमें से एक दर्जन के भी नाम नहीं चढ़े होंगे. तीसरा कारण सदस्यों में उस मेहनत और अध्ययनशीलता का अभाव है, जो संसदीय मुखरता के लिए आवश्यक है. उल्लेखनीय है कि मप्र विधानसभा की समृद्ध लायब्रेरी में इक्का-दुक्का विधायक ही अपने प्रश्न अथवा विषय की तैयारी करते दिखते हैं. चौथा कारण किसी भी मुद्दे या विषय पर सोशल मीडिया और ह्वाट्सएप यूनिवर्सिटी से मिलने वाला तुरत-फुरत और अधकचरा ज्ञान है, जिसकी पृष्ठभूमि में जाने का वक्त शायद ही किसी विधायक के पास हो. पांचवा कारण टीवी चैनलों पर बाइट के माध्यम से मिलने वाली तत्काल लोकप्रियता है, जिसने गंभीर ज्ञानार्जन की प्रवृत्ति को ट्रैश में डाल दिया है. छठा कारण विधायक बनने के बाद से ही तबादले पोस्टिंग व ठेकों तथा जोड़-तोड़-जुगाड़ आदि में अत्यधिक रूचि भी हो सकती है. वैसे भी आजकल राजनीति में ‘गणेश परिक्रमा’ एक आजमाया हुआ शर्तिया वैक्सीन बन चुका है. ऐसे में बौद्धिक रूप से कष्टदायक रास्ते पर कम ही लोग जाना पसंद करते हैं. फिर भी अध्यक्ष का यह निर्णय इसलिए ऐतिहासिक है ‍क्योंकि जहां तक सदन में आत्मविश्वास के साथ बोल सकने की बात है तो स‍त्र के एक दिन का यह ‘आरक्षित’ प्रश्नकाल नए विधायकों का उत्साहवर्द्धन कर सकता है. भले ही आज सदन में हो-हल्ले की मीडिया में ज्यादा चर्चा होती हो, लेकिन प्रश्नकाल की गंभीर और चक्रव्यूहात्मक चर्चा पर भी पारखी नजरें लगी रहती हैं. ये नजर मुख्‍यमंत्री, नेता-प्रतिपक्ष से लेकर आलाकमान और मीडिया तक फैली होती हैं. यह बात नए विधायकों को समझनी चाहिए. यानी प्रश्नकाल में नए विधायकों की सक्रिय सहभागिता उनके संसदीय कॅरियर का लांचिंग पैड साबित हो सकता है. सदन में निर्भीकता से प्रश्न पूछने के लिए बहुत पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं है. इस विधानसभा में पांच ऐेसे विधायक हैं, ‍िजन्होने अपनी शैक्षणिक योग्यता ‘साक्षर’ लिखवाई है. लेकिन वो भी खुद को अच्छा जनप्रतिनिधि साबित कर सकते हैं. बहरहाल स्पीकर का यह निर्णय कुछ हद तक साहसी होने के साथ-साथ मप्र की विधानसभा में पहली बार चुनकर आए विधायकों के लिए खुद को संसदीय प्रतिभा और गंभीर राजनेता सिद्ध करने की चुनौती से भरा भी है. वो इस अवसर का कितना लाभ लेते हैं,यह देखने की बात है.

अजय बोकिल के अन्य अभिमत

© 2023 Copyright: palpalindia.com
CHHATTISGARH OFFICE
Executive Editor: Mr. Anoop Pandey
LIG BL 3/601 Imperial Heights
Kabir Nagar
Raipur-492006 (CG), India
Mobile – 9111107160
Email: [email protected]
MADHYA PRADESH OFFICE
News Editor: Ajay Srivastava & Pradeep Mishra
Registered Office:
17/23 Datt Duplex , Tilhari
Jabalpur-482021, MP India
Editorial Office:
Vaishali Computech 43, Kingsway First Floor
Main Road, Sadar, Cant Jabalpur-482001
Tel: 0761-2974001-2974002
Email: [email protected]