कोरोना पर विजय का दावा करने वाला भारत क्या आज इस लड़ाई में हारता नजर आ रहा है ? या यूं कह लें कि ,कोरोना की वैक्सीन बनाये जाने के बाद जिस तरह से हमारी सरकार ने "विश्व फार्मेसी" या दुनिया को राह दिखाने वाले विश्व गुरु की तरह अपने आपको पेश किया था ,उस दावे की कलई 100 दिन के अंदर अंदर ही खुल गयी। पिछले दो दिनों से देश में कोरोना मरीजों का आंकड़ा तीन लाख और मृतकों का दो हजार को पार कर रहा है और यह दुनिया के किसी भी देश में सर्वाधिक है। हर दिन संक्रमण के मामलों में इजाफा हो रहा है और मृतकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है ,स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा ध्वस्त होता दिखाई दे रहा है तथा दवा और ऑक्सीजन के लिए त्राहि त्राहि मची हुई। उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि " कोरोना " को हमारी सरकार ने समझा ही नहीं। ऐसा लगता है ,हमारी सरकार ने मात्र वाहवाही लूटने के लिए समय से पहले इस पर जीत का परचम फहराने की कोशिश की। लेकिन हकीकत यह है कि आज कोरोना के कहर से श्मशान और कब्रिस्तान भी छोटे पड गए हैं। हर तरफ मौत का अनवरत सिलसिला जारी है । एक नहीं कई अस्पतालों की यह कहानी है कि ,ऑक्सीजन के अभाव में दर्जनों मरीजों ने दम तोड़ दिया। ऑक्सीजन की यह तस्वीर उस देश की है जो दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। इसे मानव निर्मित (सरकार निर्मित ) आपदा नहीं तो और क्या कहेंगे ? ऑक्सीजन के लिए राज्य सरकारें ही नहीं अस्पताल भी हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं। कुछ ऐसा ही कोरोना की वैक्सीन को लेकर भी हो रहा है। भारत वैक्सीन निर्माण के क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र है , लेकिन आज देश में वैक्सीन की किल्लत है। 11 जनवरी 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टेलीविजन पर आते हैं और अगले पांच दिन बाद देश में टीकाकरण अभियान की ना सिर्फ घोषणा करते हैं ,अपितु यह भी कहते हैं कि आने वाले कुछ महीनों में देश में 30 करोड़ लोगों को टीका दे दिया जाएगा। उन्होंने कहा ,उनकी सरकार ने जो काम किये उसकी वजह से देश में कोरोना फैला नहीं। शायद यही अति विश्वास आज हमारे देश के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। अपने खर्च पर 30 करोड़ लोगों को टीका लगाने की बात कहने वाली केंद्र सरकार ,अब जब स्थिति भयावह होने लगी तो राज्य सरकारों से कह रही है कि वे अपना अपना इंतजाम स्वयं करें।प्रधानमंत्री मोदी "टीका उत्सव " की घोषणा करते हैं और देश के अनेक राज्यों में टीके के अभाव में ,टीकाकरण केंद्र बंद हो रहे हैं। हालात तो यह है कि ,राज्यों को किस दर से टीका मिलेगा इस बात का निर्धारण भी केंद्र की तरफ से नहीं हुआ है। परिणामस्वरूप टीका उत्पादक कंपनी अलग अलग भाव बता रही है जिनमें भारी असमानता देखने को मिल रही है। राज्य सरकारें उलझन में हैं कि वैक्सीन आयात करें या केंद्र सरकार कोई नीति निर्धारित करेगी ? इससे भी भयावह स्थिति कोरोना के उपचार के लिए दी जाने वाली दवाओं को लेकर है। डॉक्टर्स और अस्पताल ,मरीजों को दवा तो लिख दे रहे हैं लेकिन मिलेंगी कहां इसका पता नहीं। सरकार द्वारा निर्यात और बिना इजाजत बिक्री पर पाबंदी लगाए जाने के बावजूद अस्पतालों और मेडिकल स्टोर्स की बजाय ये दवाएं काला बाजार में बिक रही हैं और लोग मुंह मांगे दामों में अपने परिजनों की जान बचाने के लिए इन्हें खरीदने को विवश हैं। कोविड के एक के बाद एक नए म्यूटेंट तथा विश्व के विशेषज्ञों द्वारा भारत में आने वाले दिनों में स्थिति और भी भयावह होने की आशंकाएं लोगों को डरा रही हैं। कोविड के "डबल म्यूटेंट" संस्करण के बाद ट्रिपल संस्करण की भी खबरें आने लगी हैं। दुनिया के अनेक देश अब भारत की हवाई यात्रा पर पाबंदियां लगा रहे हैं लेकिन हमारे देश में सरकार डरने की बजाय कुछ और ही करने में व्यस्त हैं। हरिद्वार में कुंभ का आयोजन किया जा रहा है तो पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव और उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत के चुनावों की धूम मची हुई है। सोशल डिस्टेंसिंग की बात तो की जाती है ,लेकिन इश्तेहार देकर यह भी अपील की जाती है की भारी संख्या में मतदान करें। चुनावी रैलियों और रोड शो में अनियंत्रित भीड़ की बात उठे तो देश के गृहमंत्री अमित शाह यह तर्क देते हैं कि ,जिन प्रदेशों में चुनाव हो रहे हैं वहां कोरोना कहाँ है ? उनके इस बयान की सच्चाई का पता इसी से चल जाएगा कि ,बंगाल में करीब 700 प्रतिशत कोरोना मामलों में इजाफा हो रहा है। अमरीकी प्रधानमंत्री डोनाल्ड ट्रम्प की तरह हमारे प्रधानमंत्री भी धुंआधार प्रचार में जुटे रहे और कोरोना संक्रमण ,महामारी का रूप ले लिया। लेकिन सरकार और उसके मंत्रियों की नींद तब उड़ती है जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ,उन्हें पत्र लिखते हैं। दरअसल हमारे देश में कोरोना को लेकर लापरवाही साल 2020 में उसकी पहली लहर के समय से ही देखी जा रही है। बिना किसी रणनीति या पूर्व सूचना के लम्बा और कड़क लॉकडाउन लगा दिया गया। जब अर्थ व्यवस्था चरमरा गयी और मजदूरों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरु हुआ तो , ओपन अप कार्यक्रम शुरु कर दिया। कॉर्पोरेट घरानों से चंदा हांसिल करने की एक अलग व्यवस्था "पीएम केयर्स " के नाम से नया फण्ड शुरु करके कर ली। लेकिन उस चंदे से यदि देश की स्वास्थ्य सेवा के ढाँचे को मजबूत करने का काम किया गया होता तो आज जैसी परिस्थितियां उत्पन्न नहीं होती थी.