ऐसा लगता है कि पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में हो रही बेतहाशा बढ़ोतरी से सरकार बेखबर है और किसी जनांदोलन का इंतज़ार कर रही है. सरकार के कान में जूं नहीं रेंग रही है और जनता हलकान है.इस मुद्दे पर कांग्रेस के देशव्यापी आंदोलन का भी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा.असर पड़ता भी कैसे ? सरकार में बैठे लोग कांग्रेस को गंभीरता से लेते ही नहीं. सिर्फ चुनाव के समय ही उन्हें कांग्रेस एक पार्टी दिखती है.इधर , कांग्रेस ने भी इस आंदोलन को गंभीरता से नहीं लिया.पार्टी के बड़े नेताओं ने इस आंदोलन में सक्रियता से हिस्सा नहीं लिया. कहने की आवश्यकता नहीं कि पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों ने जनता की कमर तोड़ दी है. सात राज्यों में पेट्रोल 100 रुपये से पार चल रहा है और डीज़ल भी 100 के आंकडे की ओर है. ये कीमते और कितनी बढ़ेंगी , कहा नहीं जा सकता है.पेट्रोल ,डीज़ल की कीमतों में वृद्धि का असर दैनिक उपभोग की हर वस्तु पर पड़ा है जिससे महंगाई आसमान छू रही है.खाद्य तेल और दालें इतनी महँगी हो गयी हैं कि आम आदमी पस्त होकर सरकार को गरिया रहा है. यूपीए के कार्यकाल में पेट्रोल 70 रुपये हुआ तो भाजपा के लोगों ने बवाल मचा दिया था.अब उन्हें यह मूल्य वृद्धि जायज़ लग रही है.मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों को तो चिंता इसलिए भी नहीं है क्योंकि उन्हें तो मुफ़्त में पेट्रोल ,डीज़ल मुहैया हो रहा है. ऐसा नहीं है कि आज के वक़्त में बेहद जरूरी पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें कम नहीं हो सकती.बेशक़ हो सकती हैं लेकिन केंद्र सरकार की इच्छाशक्ति ही नहीं है. कुछ सीमा तक राज्य सरकारें भी दोषी हैं.केंद्र और राज्य पेट्रोल और डीज़ल पर लगाने वाला टैक्स कम नहीं करना चाहते.कोरोना के कारण केंद्र और राज्यों का बजट बिगड़ा हुआ है और पेट्रोल ,डीज़ल से होने वाली कमाई कम नहीं होती है. इन सरकारों की ज्यादा कमाई वाहनों के ईंधन और मानव शरीर के ईंधन ( शराब ) से ही होती है इसलिए सरकारें इस ओर ध्यान नहीं देतीं हैं. जहाँ तक कीमतों में वृद्धि के विरोध का प्रश्न है विरोधी दल दमदारी से विरोध नहीं कर पा रहें हैं.कांग्रेस का हालिया आंदोलन बेअसर साबित हुआ है. पार्टी के बड़े नेता मैदान में उतरते और आंदोलन को और ज्यादा उग्र बनाने की कोशिश करते तो शायद कुछ बात बनती लेकिन बिखराव और भटकाव से लदी पार्टी अपने ही समस्याओं से त्रस्त है. वास्तव में , यह वक़्त है कि सभी विरोधी दल इस मुद्दे पर एकजुट होकर पेट्रोल और डीज़ल की बढती कीमतों का विरोध करें तो शायद सरकार नोटिस ले.ऐसा नहीं हुआ तो , हो सकता है कि जनता खुद सडकों पर उतर जाये और कोई जनांदोलन बन जाये लेकिन ऐसा हुआ तो सरकारों के लिए यह बहुत महंगा पड़ेगा.