राजा और बड़ा सूबेदार : भुला रहे महंगाई की मार

एक था राजा ....... नही नही ..... एक है राजा. वह कई सालों से राजपाट चला रहा था. आज भी चला रहा है. ज्यादातर लोग खुशहाल थे . यही वज़ह थी कि पांच साल बाद उसी राजा को एक बार फिर राजगद्दी सौंप दी गयी. आज से डेढ़ साल पहले पूरे देश में भयंकर महामारी फैली और थमने का नाम ही नहीं ले रही है. पहली लहर , दूसरी लहर और अब तीसरी की आहट. पहली लहर में हजारों लोगों की मौत हुई , दूसरी में और ज्यादा लोग काल के गाल में समा गए. लाखों बीमार भी हुए. पूरे देश में तालाबंदी बार -बार करनी पड़ी. कामधंधे चौपट हो गए , कई लोग नौकरी से हाथ धो बैठे. लोगों के घर के बजट बिगड़ गए. राजा का खज़ाना भी डगमगा गया. तालाबंदी खुली तो रोज़मर्रा की जिंदगी में काम आने वाली चीजों के दाम आसमान छूने लगे. वाहनों में इस्तेमाल होने वाला ईंधन इतना महंगा हो गया कि लोगों की कमर ही टूट गयी. ईंधन महंगा होने से हर सामान की कीमत बढ़ गयी. सारे देश में महंगाई को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा. इससे राजा की पेशानी पर बल पड़ने लगा. चिंता से राजा का चेहरा मुरझाने लगा. आवाज़ की खनक जाती रही. राजा को फ़िक्र इस बात की थी कि अगली बार कहीं राजगद्दी न छिन जाय. हालाँकि राजगद्दी का फैसला आने में काफी वक़्त है लेकिन कुछ ही दिनों में कई सूबों की गद्दी का फैसला होने वाला है. इन सूबों में एक सबसे बड़ा सूबा भी है जिस पर राजा के अज़ीज़ का राज है और यही सूबा तय करता है कि देश की गद्दी पर कौन बैठेगा. महंगाई की चांव - चांव के बीच राजा ने अपने अज़ीज़ बड़े सूबेदार से कहा - दोस्त , कुछ करो नहीं तो तुम्हारी गद्दी चली जाएगी और तुम्हारी गयी तो मेरी भी नहीं बचेगी. सूबेदार बोला -- जहांपनाह , आपने बात तो सौ टक्के सही कही है , मै सोचकर कुछ नायाब सा करता हूं. एकाध - दो दिन में ही बड़ा सूबेदार हाज़िर हुआ और बोला मैंने रास्ता खोज लिया है. इस रास्ते पर चलने से लोगों का ध्यान महंगाई से भटक जायेगा और लोग दूसरी ही बहस में उलझ जायेंगे. राजा खुश हो गया और बोला - अब चल जल्दी बता क्या कर रहे हो. फूल कर कुप्पा हो रहे सूबेदार ने कहा कि मेरे राज में भ्र्ष्टाचार काबू में है , अपराधी एनकाउंटर से डरकर बिलों में जा छिपे हैं और सूबे में अमन - चैन है. फ़िक्र बस यह है कि आबादी बढ़ाने वाले मान नहीं रहें हैं इसलिए उनके पर कतरने का नुस्खा लाया लाया हूं. सूबे में एलान कर देता हूं कि लोग अब से एक ही बच्चा पैदा करें. किसी भी हालत में एक से ज्यादा नही. अगर , खुदा का वास्ता देकर कोई एक से ज्यादा बच्चा पैदा करेगा तो सारी सहूलियतें बंद कर दी जाएँगी. इससे मीडिया को नया मसाला मिल जायेगा और महंगाई से लोगों का ध्यान भी भटकेगा. सूबेदार ने फुसफुसाते हुए यह भी कहा कि हुज़ूर यह नुस्खा अगले इलेक्शन में भी काम आएगा. यह सुनते ही राजा की बांछें खिल गयीं और आँखों में चमक आ गयी. राजा बोला -- वाह दोस्त ! सचमुच तुमने शानदार और नायाब नुस्खा पेश किया है , हम खुश हुए. जाओ जल्दी से इसका एलान कर दो. इसपर सूबेदार बोल पड़ा -- हुज़ूर इतने से काम नहीं बनेगा , आपको कुछ हाकिमो से भी कुछ करवाना पड़ेगा. ठीक है , कुछ किया जायेगा. राजद्रोह कानून पुराना हो गया है. इस पर कुछ हो सकता है. देखते हैं. यह कह कर मीटिंग ख़त्म हुई. इसी बीच , राजा को एक बात और सूझी. उसने सोचा क्यों न सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारियों पर डोरे डालें. आनन् फानन में डी ए यानि महंगाई भत्ता बढाने का एलान कर दिया गया. इससे एक करोड़ 13 लाख लोगों को फायदा हुआ. मतलब एक करोड़ 13 लाख परिवार. एक परिवार में मोटामोटी 5 लोग भी हुए तो 5 करोड़ 65 लाख लोग खुश. महंगाई का रोना कुछ तो कम होगा. अब सवाल उठता है कि महंगाई तो 130 करोड़ लोगों को सता रही है और खुश करने की कोशिश सिर्फ 5 करोड़ 65 लाख के लिए ? यह तो सरासर अन्याय है. ये 5 करोड़ 65 लाख लोगों की ख़ुशी भी क्षणिक ही है. महंगाई का दंश तो उन्हें तब भी झेलना पड़ेगा. यह तो वही बात हुई कि किसी फूटे घड़े में ऊपर से कितना भी पानी भरें , वह खाली का खाली ही रहेगा जब तक कि उसका छेद न बंद किया जाये ! महंगाई कम करने की कोई कोशिश नहीं हो रही है. पेट्रोल और डीज़ल के दाम रोज़ बढ़ रहे हैं , खाद्य तेल का भाव अपनी बुलंदियों पर है , दालें आसमान छू रहीं हैं. आम आदमी क्या करेगा ? वह बस इंतजार ही कर सकता है आने वाले चुनावों का.

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