इसे कहते हैं कुदरत की मार. आज से करीब 15 दिनो पहले तक तमाम मप्र वासी इंद्र देवता को रिझाने के लिए पूजा पाठ और टोने टोटके में लग गए थे कि अचानक मौसम ने करवट बदली. राजनीतिक सरगर्मी और तोक्यो अोलिम्पिक में खुशियों के उतार-चढ़ाव के बीच आसमान में कुछ पानी भरे सिस्टम बने और प्रदेश पानी से तरबतर होने लगा. लेकिन बारिश का मौसम हो और कही से भी बाढ़ की खबर न आए, तब तक मानो आषाढ़ और सावन की तस्दीक नहीं होती. इस बार यह आपदा मध्यप्रदेश के उत्तर-पश्चिमी इलाके चंबल में आई है. चंबल और इस अंचल की दूसरी नदियों के रौद्र रूप के कारण इलाके के 2 सौ से ज्यादा गांव प्रभावित हुए हैं. कई गांव पानी में डूब गए हैं. हजारों लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाना पड़ा है. बड़े पैमाने पर राहत कार्य चल रहे हैं. स्वयं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान इसकी माॅनिटरिंग कर रहे हैं. उन्होंने भरोसा दिलाया कि राहत कार्य में कोई कमी नहीं आने दी जाएगी. बाढ़ प्रभावित इलाकों में प्रशासन भी बचाव और राहत कार्य में युद्ध स्तर पर जुटा है. साथ में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ व सेना भी लोगों को बचाने के काम में जुटी है. इस हकीकत के बावजूद सोशल मीडिया की अपनी ही दुनिया है, जो सच को भी नमक मिर्च के साथ परोसने से परहेज नहीं करती. इस संजीदा माहौल में भी सोशल मीडिया में कुछ वीडियो ऐसे वायरल हुए, जिनकी नरम गरम चर्चा हो रही है. पहला वीडियो राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के जुझारू जज्बे से जुड़ा है. मंत्रीजी अपने क्षेत्र दतिया में बाढ़ का जायजा लेने और मुश्किल में फंसे लोगों की मदद करने गए थे. लेकिन बाद में वो खुद ही बाढ़ में घिर गए और सेना के हेलीकाॅप्टर को उन्हें एयरलिफ्ट करना पड़ा. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मंत्री मिश्रा बुधवार को दतिया जिले के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का जायजा लेने के लिए पहुंचे थे. सुबह साढ़े 10 बजे जिले के कोटरा गांव में एक मकान की छत पर कुछ लोगों के फंसे होने की जानकारी मिलने पर मंत्रीजी उन्हें बचाने राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की टीम के साथ नाव से पहुंचे. अचानक एक पेड़ उनकी नाव पर िगर गया. जिससे वो पानी में फंस गए. इसके बाद मंत्री ने सहायता के लिए संदेश भेजा. थोड़ी ही देर में वायु सेना का हेलीकाॅप्टर बचाव दल के साथ वहां पहुंच गया. मंत्रीजी ने पहले दूसरों को सुरक्षित निकलवाया. बाद में वायु सेना के हेलीकाॅप्टर खुद भी एयरलिफ्ट हुए. इसी के बरक्स एक दूसरा एक वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें बाढ़ प्रभावित इलाके में नाव में बैठे कुछ अफसर मौज मस्ती के मूड में दिख रहे हैं. बाढ़ की भयावहता से ज्यादा उनकी बाॅडी लैंग्वेज में लाइफ जैकेट के साथ तफरीह का मूड ज्यादा झलक रहा है. हालांकि जिले के अधिकारियों ने ऐसे किसी वीडियो से इंकार किया है. लेकिन यह कथित वीडियो अपने आप में काफी कुछ कहता है और ये कि सरकारी तंत्र अपनी ही स्टाइल में काम करता है. फिर चाहे वह बाढ़ की विभीषिका ही क्यों न हो. इसमें एक अफसर को खास शैली में हाथ हिलाने के लिए कहते दिखाया गया है. हालांकि स्थानीय एसडीअोपी का कहना है कि वीडियो उस समय बनाया गया था, जब बाढ़ प्रभावित गिरवासा में 37 लोगों और 20 पशुअों को रेस्क्यू किया गया था. वैसे इस बात में दम है कि जानवरो को रेस्क्यू करते समय कोई इंसानों के लिए हाथ हिलाने को क्यों कहेगा? और बचाव कार्य भी आत्ममुग्धता के साथ करना, उसकी गंभीरता को कम करने जैसा है. वैसे कुछ लोगों का यह भी कहना है कि राहत कार्य जैसे युद्ध स्तर पर चलने वाले कार्यक्रमों में ऐसे हलके-फुलके प्रसंग आते रहते हैं. इन्हें गंभीरता से नहीं लेना चाहिए. सरकारी तंत्र की यह भी एक खूबी है. लेकिन इन भयंकर हालात में भी गृह मंत्री ने जो दिलेरी दिखाई और अपने लोगों को बचाने की खातिर जान का जोखिम उठाया, उसकी उस विपक्षी कांग्रेस ने भी तारीफ की, जो अक्सर विरोध में तंज करती रहती है. प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता नरेन्द्र सलूजा ने वीडियो देखने के बाद मंत्रीजी के इस जज्बे को सलाम किया. उन्होंने कहा कि आलोचना तो बहुत होती है, अच्छे काम की सराहना भी होनी चाहिए. यह बात अलग है कि कुछ विघ्न संतोषियो को इसमे भी नौटंकी नजर आई. समाजवादी नेता यश भारतीय ने इस वीडियो पर हल्की टिप्पणी कर डाली. बहरहाल मंत्रीजी का एयरलिफ्ट होते जो वीडियो वायरल हुआ, उसने पिछले साल असम में आई बाढ़ के दौरान स्थानीय भाजपा विधायक मृणाल सैकिया की जांबाजी की याद दिला दी. उस वीडियो में भी सैकिया गले तक पानी में खुद खुमताई गांव के लोगों को बाढ़ से निकालने में मदद करते दिख रहे हैं. वहां लोगों को लकड़ी के फट्टे की नाव पर बिठाकर बचाया गया. विधायक खुद नाव के साथ पानी में चलते दिखते हैं. वैसे ऐसा ही जोखिम उत्तराखंड में पिछले साल एक कांग्रेस विधायक हरीश धामी ने उठाया था. वो बाढ़ से प्रभावित राज्य के धारचूला क्षेत्र में बाढ़ प्रभावितों को बचाने के लिए पहुंचे थे. लेकिन बाद में कांग्रेस कार्यकर्ताअों को उन्हें ही बाढ़ से बचाकर निकालना पड़ा. कहने का आशय ये कि सार्वजनिक जीवन में रहना है तो जनप्रतिनिधियों को ऐसी रिस्क लेनीपड़ती है, जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता कायम रखने के लिए. कुछ लोग इसमे भी प्रचार की भूख तलाशें तो यह उनका दृष्टिदोष है. यह कोई जान बूझकर किया गया ‘पाॅलिटिकल एडवेंचर’ नहीं होता और न ही अपने वजूद को जताने की कोशिश होती है. बल्कि इसमें अपने लोगों की प्रति गहरी चिंता और यह संदेश निहित होता है कि आपदाअोंसे डरे नहीं. जब मैं नहीं डर रहा तो आपको डरने की क्या जरूरत है? मैं और सरकार आपके साथ खड़ी है. ऐसे में आलोचको का यह तर्क दुर्भावना से प्रेरित है कि जब इतना खतरा था तो मंत्रीजी को वहां जाना ही नहीं चाहिए था या फिर इस तरह वीडियो वायरल होना या करना भी लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश है. कुछ विघ्न संतोषियो ने तो इसे ‘राजनीतिक एयरलिफ्ट’ के रूप में देखने की हिमाकत भी की. वो भूल गए कि किसी भी आपदाग्रस्त क्षेत्र में मंत्री की शक्ल में सरकार वहां पहुंचती है. नेता की निर्भयता से जनता में हिम्मत रखने का संदेश जाता है. मंत्री की मौजूदगी से प्रशासन भी फुल हरकत में रहता है और इस तरह समय रहते स्पाॅट पर जाना किसी भी आपदा के हवाई सर्वेक्षण की प्रेक्टिकल पायदान है. अगर यह ‘एयरलिफ्ट’ है तो उम्मीदों का ‘एयरलिफ्ट’ होना है. यूं किसी भी क्षेत्र में बाढ़ का आना संकट और सुकून दोनो का परिचायक है. संकट इस माने में कि पानी के रौद्र रूप से हजारों लोग शरणार्थी बनने पर विवश हैं. फसलें, सड़कें, पुल व तटबंध बह गए हैं. प्रभावित इलाकों में चारो तरफ पानी ही पानी है तो सुकून इस अर्थ में कि इस साल मानसून के बीच में ही रूठ जाने से सूखे का जो साया मंडराने लगा था, वो अब दूर हो चुका है. पानी न आने की चिंता पानी से बचने की जद्दोजहद में बदल चुकी है. .