राजनीति में कल्याण सिंह के होने का मतलब!

प्रखर हिंदुत्ववादी नेता कल्याण सिंह को जाननेवाले यह भी जानते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद देश में कल्याण सिंह ही बीजेपी के एकमात्र ऐसे नेता थे जिनका भाषण सुनने को लोग ललायित रहती थे. राम मंदिर आंदोलन के दौरान पार्टी के यूपी में सबसे मुखर चेहरा थे. हालांकि अटलजी की भाषण शैली की तरह धाराप्रवाह लयबद्धता और कविता की कसक उनके तेवर में नहीं थी, लेकिन अपने धारदार अंदाज वाले तीखे तेवर उनकी पूंजी थे. अपनी राजनीतिक महारत से कल्याण सिंह ने यूपी की राजनीति में ध्रुवीकरण का ऐसा ध्यान रखा कि यूपी में जो जातिगत समीकरण और धर्म की राजनीति आज हमें देखने को मिल रही है, वह सदा सदा के लिए स्थापित करने में कल्याण सिंह सफल हो गए. कल्याण सिंह, जिन्होंने हर किसी को समझ में न आनेवाली अपनी अनोखी राजनीति शैली से रामंदिर आंदोलन के जरिए सामाजिक ध्रुवीकरण के सहारे धर्म और राजनीति को जातिवाद के तड़के के साथ समाज में एक साथ परोसने की सहूलियत ले ली, जो आज देश की राजनीति में भी राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के लिए कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी को किनारे करने का हथियार बन गई. देश गवाह है कि राम मंदिर आंदोलन न केवल बीजेपी के उभार का आंदोलन था, बल्कि बीजेपी के कई नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर उभारने में मददगार भी रहा. सच कहा जाए, तो बीजेपी को बड़ा बनाने में अगर किसी बीजेपी नेता ने सबसे बड़ी कुर्बानी दी थी तो वे कल्याण सिंह ही थे,जो उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री थे, और उनकी सरकार की उम्र तब केवल साल भर की ही थी कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस हो गया. जिसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसंबर 1992 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद तज दिया. जैसे ही मस्जिद की आखिरी ईंट गिरने की खबर मिली, कल्याण सिंह ने कागज मंगवाया और खुद ही अपना त्याग पत्र लिखकर राज्यपाल के यहां पहुंच गए. उनके सत्ता त्यागने के बाद केंद्र सरकार ने यूपी की बीजेपी सरकार को बर्खास्त भी कर दिया और बाद में न्यायिक कल्याण सिंह को एक दिन की जेल भी हो गई. वैसे, मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट मे शपथपत्र दायर करके कहा था कि उनकी सरकार मस्जिद को कुछ नहीं होने देगी, लेकिन बाबरी का जो कुछ हुआ, वही ध्वंस इतिहास में एक नया पन्ना लिख गया और बीजेपी व उसके कई नेताओं के देश में छा जाने के दरवाजे भी खोल गया. कल्याण सिंह ने केवल प्रदेश के पुलिस मुखिया को ही नहीं, केंद्र की पीवी नरसिम्हा राव की सरकार को भी साफ कह दिया था कि कारसेवकों पर गोली नहीं चलाऊंगा, नहीं चलाऊंगा और नहीं चलाऊंगा. बाबरी ध्वंस को उनके विरोधी ‘शर्मनाक घटना’ कहते हैं तो कल्याण सिंह आखरी सांस तक उसे राष्ट्रीय गर्व की बात बताते रहे. और बाबरी मसजिद टूटी, तो अब राम मंदिर भी बन ही रहा है. उनको श्रद्धांजलि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हम उनके सपनों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. मैं भगवान राम से प्रार्थना करता हूं कि कल्याण सिंह को अपने पास स्थान दे. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में वे सन 1932 में 5 जनवरी को जन्मे और 21 अगस्त 2021 का रात उन्होंने लखनऊ में आखरी सांस ली. जीवन भर जमकर राजनीति की, 9 बार विधायक, दो सांसद और दो बार मुख्यमंत्री रहे व दो प्रदेशों के राज्यपाल भी. लेकिन व्यक्ति पद चाहे कितने भी पा ले, व्यक्तित्व तो उसका उसके कार्यों से ही नापा जाता है. इसीलिए कल्याण सिंह के जीवन में बाबरी विध्वंस उनके कीर्तिमान के रूप में देखा जाता है, और देश में ओबीसी की औकात को राजनीतिक हैसियत बख्शने के उनके प्रयास को उच्चतम राजनीतिक कृतित्व का दर्जा हासिल है. बाबरी विध्वंस कल्याण सिंह और बीजेपी दोनों के लिए यह एक जबरदस्त राजनीतिक हथियार बना और दूसरी खास बात यह कि जब ‘मंडल’ प्रभाव में देश के उत्तरी हिस्से में पिछड़े वर्ग के वोट राजनीतिक रूप वोट बेंक के रूप में मजबूती पाने लगा, तो बामन और बनियों की पार्टी की पहचान वाली बीजेपी में कल्याण सिंह ने ही एक पिछड़े नेता के रूप में ओबीसी जातियों को जोड़ने की जुगत लगाई. कल्याण सिंह की वह कोशिश इतनी सार्थक रही कि अब यूपी ही नहीं, देश भर में हर पार्टी सबसे पहले ओबीसी का खयाल रखने लगी है, और अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो इस बार के अपने मंत्रिमंडल को ही पूरी तरह से ओबीसी को समर्पित कर दिया है. जैसा कि राजनीति में अकसर ताकतवर लोगों के साथ होता है, कल्याण सिंह का भी सन 1999 में अपनी ही पार्टी से मोहभंग हो गया. अटल बिहारी वाजपेयी से मतभेद के कारण कल्याण सिंह ने बीजेपी छोड़ दी. अपने दम पर अपनी पार्टी @राष्ट्रीय क्रांति पार्टी@ बनाई, और काफी दिनों भाजपा से बाहर रहने के बाद वापस भी आए और वापसी का उनका वह रास्ता भी उन्हीं वाजपेयी ने खोला था, जिन्हें कल्याण सिंह ने भरपूर कोसकर पार्टी छोड़ी थी. वे आए, तो फिर से छा भी गए, पार्टी को भी भा गए और 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद ने राज्यपाल बनकर राजस्थान भी आ गए और बाद में तो खैर, वे हिमाचल प्रदेश के भी राज्यपाल के रूप में अतिरिक्त कार्यभार संभाले रहे. वे अटलजी और आडवाणीजी का सम्मान करते थे, इसलिए कभी भी उनसे आगे निकलने की मंशा नहीं पाली, लेकिन बाबरी विध्वंस और ओबीसी को उबार देने के अध्याय ने देश की राजनीति में कल्याण सिंह को एक तारीख बना दिया, जिसे कोई भी शक्ति चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, बाबरी भले ही मिट गई हो, लेकिन कल्याण सिंह को देश की राजनीति के इतिहास से मिटाना संभव नहीं है.

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