दशा सुधारने आत्ममंथन करे कांग्रेस

पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद निश्चित ही कांग्रेस पार्टी के भविष्य के लिए एक ऐसा प्रश्नचिन्ह स्थापित हो गया है, जिसका जवाब फिलहाल न तो कांग्रेस नेतृत्व के पास है और न ही अब इसका जवाब आसान ही रह गया है. कांग्रेस में ऐसी स्थितियों के पीछे क्या कारण हैं? क्यों कांग्रेस निरंतर अपने अस्तित्व को खोती जा रही है? इसके पीछे के कारण तलाश किए जाएं तो कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि गाहे बगाहे कांग्रेस के अंदर ही अंदर जिस प्रकार के स्वर मुखरित हो रहे हैं, उसका यही सही जवाब है, लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस इन स्वरों से इत्तेफाक नहीं रखती. कांग्रेस की दुर्गति के बारे में कहा जाए तो यह कहना भी तर्कसंगत ही होगा कि इसके बारे में उसकी नीतियां ही जिम्मेदार हैं. तर्कों के माध्यम से भले ही सत्य को झुठलाने का प्रयास किया जाए, लेकिन एक दिन सत्य सामने आता ही है. बस इसी सत्य को कांग्रेस के नेताओं को समझने की आवश्यकता है. इस सत्य को जब तक कांग्रेस नहीं समझेगी, तब तक उसका उत्थान संभव ही नहीं है.

पिछले दो बार के लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस की जो राजनीतिक स्थिति बनी, वह कांग्रेस के लिए एक स्पष्ट चेतावनी भी थी, इस बारे में कई कांग्रेस के नेताओं ने अपने नेतृत्व को आत्ममंथन के लिए आगाह भी किया था, लेकिन कांग्रेस ने इन बातों को सुनने के बजाय अपने कानों को लगभग बंद ही कर लिया. हालांकि नेतृत्व परिवर्तन के लिए कवायद भी प्रारंभ हुई थी, लेकिन परिणाम जो निकला, वह ढाक के तीन पात जैसा ही था. गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष बनाए जाने की बात हवा में ही उड़ गई. कहने के बाद भी अगर गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष नहीं बना तो इसके पीछे केवल यही कारण था कि इस परिवार के अलावा कांग्रेस का कोई भी नेता ऐसा नहीं है जो पार्टी को एक रख सके.

अब कांग्रेस में सुधार की गुंजाइश की संभावना में मंथन करने वाला समूह एक बार फिर राष्ट्रीय नेतृत्व पर ठीकरा फोड़ने की कवायद करता हुआ दिखाई दे रहा है. पूर्व केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर बहुत पहले से नेतृत्व परिवर्तन पर मंथन करने पर जोर देते रहे हैं, अब भी कुछ इसी प्रकार की आवाज उठा रहे हैं. इसी प्रकार जी-23 में शामिल नेता भी दो वर्ष पूर्व से अपनी आवाज मुखर कर रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज को भी कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है.

जब से कांग्रेस ने पराभव की ओर कदम बढ़ाने प्रारंभ किए हैं, उस दिन के बाद न तो कांग्रेस में अपनी स्थिति सुधारने की दिशा में कोई प्रयत्न हुए हैं और न ही ऐसा कोई प्रयास ही किया गया है. इसको लेकर कांग्रेस में अंदर ही अंदर लावा सुलग रहा है, जिसकी हल्की सी चिंगारी ने ही कांग्रेस को कमजोर किया है, लेकिन अब भविष्य में कांग्रेस के अंदर बड़े विस्फोट की भी आशंका भी निर्मित होने लगी है. आज कांग्रेस के दिग्गज नेता असहज महसूस करने लगे हैं. वरिष्ठ नेता के रूप में पहचान बनाने वाले आज मायूस हैं. वे कभी खुलकर बगावत करने की स्थिति में दिखाई देते हैं तो कभी अपने प्रति होने वाली उपेक्षा से दुखी दिखाई देते हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने एक बार अपना दुख प्रकट करते हुए कहा था कि अब कांग्रेस में वरिष्ठों के दिन समाप्त हो चुके हैं. राहुल गांधी जैसा चाहते हैं, वैसा ही हो रहा है. अब आगे क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ में है, लेकिन यह अवश्य ही कहा जा सकता है कि कांग्रेस की भविष्य की राह आसान नहीं है.

जहां तक उत्तरप्रदेश की बात है तो वहां भी कांग्रेस पतन की ओर ही तेज गति से अग्रसर हुई है. चुनाव से पूर्व कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा की ओर से महिलाओं को प्रमुखता देने की बात जोर शोर से की गई, लेकिन यह मात्र शिगूफा बनकर ही रह गया. जहां एक ओर कांग्रेस को मात्र ढाई प्रतिशत ही वोट मिल सके, वहीं उसके लगभग 95 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत जप्त हो गई. इसी प्रकार समाजवादी पार्टी भले ही चुनाव में सरकार बनाने लायक सीट प्राप्त नहीं कर पाई, लेकिन उसकी सीटों में जबरदस्त उछाल आया है. हालांकि कहा यह जा रहा है कि सपा को कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने आंतरिक रूप से समर्थन किया था, यह बात कितनी सच है, इसका दावा नहीं किया जा सकता. परंतु इतना भी सच है कि विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से जिस प्रकार से भ्रम फैलाया गया, जनता उसकी असलियत भी जान चुकी थी.

कांग्रेस की विसंगति यह है कि आज के परिदृश्य में उसके साथ मिलकर कोई भी दल चुनाव लडऩा नहीं चाहता, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ा सपना दिखाते हुए समाजवादी पार्टी को सत्ता सुख से वंचित कर दिया. अखिलेश यादव के सीने में यह टीस गाहे बगाहे उठती ही होगी. कांग्रेस के कमजोर होने एक प्रामाणिक तथ्य यह भी है कि राहुल गांधी ने अपने परिवार की परंपरागत सीट अमेठी का परित्याग कर केरल की राजनीतिक पिच पर अपना खेल खेला. हालांकि राहुल गांधी ने अमेठी से चुनाव अवश्य लड़ा, लेकिन भाजपा ने पूरी तैयारी करके जो चुनौती दी, राहुल गांधी उस चुनौती को स्वीकार करने की स्थिति में दिखाई नहीं दिए और अमेठी से उन्हें शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा.

पंजाब राज्य की बात करें तो वहां सरकार होते हुए भी कांग्रेस को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा. वहां पिछले छह महीने पहले जो राजनीतिक दृश्य दिखाई देता था, उसके पीछे यही कहा जा रहा है कि जब से नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस की कमान संभाली, तभी से कांग्रेस का हारना लगभग तय हो गया था. वस्तुत: वर्तमान समय को कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा निरूपित किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. चुनाव में मिली असफलता के बाद कांग्रेस के नेताओं को अपनी दशा सुधारने के लिए आत्ममंथन भी करना चाहिए, लेकिन ऐसा लग ही नहीं रहा.

सुरेश हिन्दुस्तानी के अन्य अभिमत

© 2023 Copyright: palpalindia.com
CHHATTISGARH OFFICE
Executive Editor: Mr. Anoop Pandey
LIG BL 3/601 Imperial Heights
Kabir Nagar
Raipur-492006 (CG), India
Mobile – 9111107160
Email: [email protected]
MADHYA PRADESH OFFICE
News Editor: Ajay Srivastava & Pradeep Mishra
Registered Office:
17/23 Datt Duplex , Tilhari
Jabalpur-482021, MP India
Editorial Office:
Vaishali Computech 43, Kingsway First Floor
Main Road, Sadar, Cant Jabalpur-482001
Tel: 0761-2974001-2974002
Email: [email protected]