सत्ता के लिए बेचैन होती कांग्रेस

भारतीय राजनीति कब किस समय कौन सी करवट बैठेगी, यह कोई भी विशेषज्ञ अनुमान नहीं लगा सकता. अगर इसका अनुमान लगाएगा भी तो संभव है कि उसका यह अनुमान भी पूरी तरह से गलत प्रमाणित हो जाए. हमारे देश में लम्बे समय तक सत्ता पक्ष की राजनीति करने वालों राजनेताओं के लिए यह समय वास्तव में ही अवसान काल को ही इंगित कर रहा है, अवसान इसलिए, क्योंकि उनके पास अपने स्वयं के शासनकाल की कोई उपलब्धि नहीं है. अगर उनका शासन करने का तरीका सही होता तो संभवत: उन्हें इस प्रकार की स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता. कांग्रेस आज भले ही अपनी गलतियों के कारण उत्पन्न हुई स्थितियों को वर्तमान सरकार पर थोपने का काम करे, परंतु इस बात को कांग्रेस भी जानती है कि वह केन्द्र सरकार का विरोध न करे तो उसके पास राजनीति करने के लिए कुछ भी नहीं है. आज देश में जो समस्या दिखाई दे रही है, कांग्रेस उसे ऐसा प्रचारित करती है, जैसे यह सारी समस्याएं मोदी के शासनकाल में ही आर्इं हैं. भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद देश में सबसे ज्यादा शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी की इतनी दयनीय स्थिति क्यों बनी, इसका अध्ययन किया जाए तो यही सामने आता है कि इस स्थिति के लिए कांग्रेस के नेता ही जिम्मेदार हैं. कांग्रेस ने प्रारंभ से ही विविधता में एकता के सूत्र को स्थापित करने वाली परंपरा पर राजनीतिक प्रहार किया, एक प्रकार से कहा जाए तो कांग्रेस ने विविधता को छिन्न भिन्न करने की राजनीतिक चाल खेली. अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की सीमाओं को लांघते हुए कांग्रेस ने हिन्दू आस्था पर घातक प्रहार करने का षड्यंत्र किया. इसमें कांग्रेस के साथ वामपंथियों ने कदम से कदम मिलाकर सहयोग किया. यही चाल वह आज भी खेलती हुई दिखाई दे रही है. समाज में विभाजन की खाई को पैदा करने वाले राजनीतिक दल भले ही इस नीति पर चलकर शासन करते रहे, लेकिन देश की जो तस्वीर बनी, वह बहुत ही कमजोर चित्र को दर्शा रही है. इसमें समुदाओं के लिए बनाए गए पर्सनल कानून आग में घी डालने जैसा ही काम कर रहे हैं. अगर यह पर्सनल कानून की अवधारणा देश में नहीं होती तो स्वाभाविक रूप से समाज के बीच दरार पैदा नहीं होती. आज देश के लिए आवश्यक यह है कि समान नागरिक संहिता लागू की जाए. गांधी की विरासत को गले से लगाने वाली कांग्रेस आज उन्हीं के सिद्धांतों से भटकती हुई दिखाई दे रही है. गांधी जी ने कहा था कि मैं एक ऐसे भारत का निर्माण करुंगा, जिसमें कहीं भी ऊंचनीच का भाव नहीं हो, साम्प्रदायिकता का अभाव हो, गौहत्या पर पूरी तरह से प्रतिबंध हो और शराब बंदी हो. लेकिन आज हम क्या देखते हैं कांग्रेस ने गांधी के सिद्धांतों को निर्मूल साबित कर दिया. आज की कांग्रेस ने समाज को वर्गों में बांटकर राजनीति की, इससे समाज में ऊंचनीच का भाव पैदा हुआ, इसी प्रकार केरल में कुछ वर्ष पूर्व कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सरेआम गौहत्या की, वह हमने प्रत्यक्ष रुप से देखा. हालांकि बाद में भले ही कांग्रेस ने गौहत्या करने वाले कांग्रेस नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया. सबसे बड़ी बात यही है कि कांग्रेस दिखावे की राजनीति करती है, मन में कुछ और ही चल रहा होता है. इसी प्रकार हम यह भी जानते हैं कि कांग्रेस ने तुष्टिकरण की सारी सीमाओं को तोड़ते हुए यहां तक कह दिया कि देश के संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है. कांग्रेस की यह राजनीति सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली नहीं तो और क्या कही जाएगी? कांग्रेस के शासन काल में भगवान राम द्वारा बनाए गए रामसेतु को तोड़ने का भरसक प्रयास किया, सरकार की ओर से न्यायालय में दिए गए शपथ पत्र में कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि भगवान राम एक काल्पनिक पात्र हैं, वे तो पैदा ही नहीं हुए थे. इस प्रकार की सोच रखने वाली कांग्रेस को भारत विरोधी कहना न्याय संगत ही कहा जाएगा. कांग्रेस नेता राहुल गांधी को तो कई बार उपहास का पात्र बनते हुए पूरे भारत वर्ष ने देखा है, लेकिन अब कांग्रेस भी अपने कार्यक्रमों के माध्यम से उपहास का पात्र बनती जा रही है. समाज की नजरों से बहुत दूर जा चुकी कांग्रेस अपने आपको जनहितैषी साबित करने के लिए दम खम से प्रयास कर रही है, लेकिन यह दिखावे की राजनीति ही उसकी पोल खोलने का काम भी कर रही है. इससे यह साबित होता है कि कांग्रेस के नेता जो दिखाते हैं, सत्यता उससे बहुत दूर है. अभी हाल ही में कांग्रेस का चिंतन शिविर आयोजित किया गया. इसके बाद कांग्रेस नेताओं के भिन्न प्रकार के स्वर मुखरित हुए, जिसके कारण कुछ नेताओं को संतुष्ट करने के लिए इसी प्रकार का दूसरा लघु चिंतन शिविर फिर से आयोजित करने की स्थिति बनी. देश से लगातार सिमटती जा रही कांग्रेस के बारे में यही कहना समुचित होगा कि आज वह छटपटा रही है. सत्ता प्राप्त करने के लिए भरसक प्रयत्न कर रही है, लेकिन उनके यह प्रयत्न सकारात्मक न होकर नकारात्मक ही कहे जाएंगे. कांग्रेस ने जितने वर्षों तक देश में शासन किया, उतने वर्षों में अगर ईमानदारी से इस वंचित समाज को आगे लाने का काम किया होता तो आज समाज में असमानता नहीं होती. इसके विपरीत वर्तमान नरेन्द्र मोदी की सरकार ने प्रारंभ से ही कहा है कि उनकी सरकार सबका साथ सबका विकास की अवधारणा पर काम करने वाली सरकार है. उनकी सरकार में किसी का भी तुष्टिकरण नहीं किया जाएगा. ऐसा हो भी रहा है, लेकिन विरोधी पक्ष के राजनीतिक दल केवल इसलिए ही मोदी सरकार का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि केन्द्र सरकार अगर सबका विकास कर देगी तो फिर राजनीति कैसे होगी? विरोधी दल के नेता केवल इतना ही सोचकर वर्तमान केन्द्र सरकार को घेर रहे हैं, जबकि यह कमजोरी पूरी तरह से पहले की सरकारों की देन है. ऐसी राजनीति करना ठीक नहीं है. देश में कांग्रेस की नीति पर चलने के लिए अन्य राजनीतिक दल भी आतुर दिखाई दे रहे हैं. उसमें बहुजन समाज पार्टी की मायावती तो धनवान होने के बाद भी अपने आपको वंचित समाज का हितैषी मानने का दिखावा कर रही हैं. इससे यह भी साबित होता है कि मायावती समय के अनुसार ही राजनीति करती हैं, इसमें उनकी पार्टी का कोई सिद्धांत नहीं है. विरोधी दलों के लिए सबसे बड़ी परेशानी की बात यह है कि उन्हें वर्तमान सरकार में कोई खामी दिखाई नहीं दे रही, इसलिए स्वयं मुद्दे खड़ा करके केन्द्र सरकार पर आरोपित करने की राजनीति ही की जा रही है. ऐसी राजनीति देश के स्वास्थ्य के लिए कतई ठीक नहीं कही जा सकती, ऐसी राजनीति से बचना ही चाहिए.

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