प्रदीप द्विवेदी. योग्य व्यक्ति को मौका मिले और अयोग्य व्यक्ति को परिवारवाद के नाम पर अवसर नहीं मिले, इस मकसद से परिवारवाद का मुद्दा लगातार उठाया जाता रहा है.

खासकर, गांधी परिवार को राजनीति में रोकने के लिए इस मुद्दे को बीजेपी की ओर से जोर-शोर से उठाया जाता रहा है, लेकिन असल में परिवारवाद, नियम का नहीं नैतिकता का मुद्दा है.

क्योंकि, यदि परिवारवाद का नियम बना दिया गया तो अयोग्य व्यक्ति को रोकने का जितना लाभ होगा, उतना ही बड़ा नुकसान योग्य व्यक्ति को रोकने का भी होगा.

यही नहीं, यह योग्य व्यक्ति के मौलिक अधिकार का भी हनन है, क्योंकि किसी योग्य व्यक्ति के किसी परिवार विशेष में पैदा होना अपराध है, क्या?  

इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी सोनल के टिकट प्रकरण से समझा जा सकता है. उन्हें परिवारवाद के नियम के कारण अहमदाबाद नगर निकाय चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने टिकट नहीं दिया.

इस संबंध में प्रधानमंत्री मोदी की भतीजी सोनल का पत्रकारों से कहना था कि- उन्होंने अहमदाबाद नगर निगम के बोदकदेव वार्ड से चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी से टिकट मांगा था. सोनल, प्रधानमंत्री मोदी के भाई प्रह्लाद मोदी की बेटी हैं, जो शहर में राशन की दुकान चलाते हैं और गुजरात उचित दर दुकान संघ के अध्यक्ष भी हैं.

बीजेपी की राज्य इकाई के अध्यक्ष सीआर पाटिल का सोनल मोदी को टिकट नहीं दिए जाने के बारे में कहना था कि नियम सबके लिए बराबर हैं. 

उधर, सोनल का कहना था कि उन्होंने प्रधानमंत्री की भतीजी होने के नाते नहीं, बल्कि भाजपा कार्यकर्ता की हैसियत से टिकट मांगा था.

बड़ा सवाल यह है कि सोनल का अपराध क्या है? यदि उन्हें योग्यता के आधार पर टिकट नहीं दिया जाता तो सही होता, लेकिन उन्हें तो परिवारवाद के नियम के आधार पर टिकट नहीं दिया गया, किसी योग्य व्यक्ति को इस तरह से रोकना कैसे सही ठहराया जा सकता है?  

उल्लेखनीय है कि गुजरात के राजकोट, अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, भावनगर और जामनगर समेत कुल छह नगर निगमों के चुनाव के लिए 21 फरवरी 2021 को मतदान होगा, जबकि 81 नगरपालिकाओं, 31 जिला पंचायतों और 231 तालुका पंचायतों के लिए 28 फरवरी 2021 को वोट डाले जाएंगे.

याद रहे, सोनल को टिकट ना दिए जाने के बाद उनके पिता और प्रधानमंत्री के भाई प्रह्लाद मोदी ने कैलाश विजयवर्गीय के विधायक बेटे आकाश विजयवर्गीय और अमित शाह के बेटे जय शाह पर सवाल उठाए थे. प्रह्लाद मोदी ने पूछा था कि जब इन दोनों को पद मिल सकता है, तो उनकी बेटी एक आम कार्यकर्ता की तरह चुनाव क्यों नहीं लड़ सकती?

इस बीच, मजेदार खबर यह भी है कि राजकोट नगर निकाय चुनावों में टिकट पाने वाले 72 उम्मीदवारों में से सात ऐसे परिवारों से आते हैं, जिनके सदस्य या तो मौजूदा पार्षद हैं या पहले पार्षद रह चुके हैं. इतना ही नहीं, जामनगर, भावनगर में भी कुछ उम्मीदवारों के साथ ऐसी ही स्थिति है. जामनगर में तो निर्वतमान मेयर हसमुख जेठवा के बेटे पार्थ जेठवा को टिकट दिया गया है.

परिवारवाद के मुद्दे का बेवजह बहुत ज्यादा दुरुपयोग किया जा रहा है, जबकि ऐसा नहीं है कि परिवारवाद से आगे बढ़ा हर व्यक्ति कामयाब हो ही, कई ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें परिवारवाद के कारण अवसर तो मिले, लेकिन सफलता नहीं मिली.

इसलिए, यह नैतिकता होनी चाहिए कि परिवारवाद के आधार पर किसी अयोग्य व्यक्ति को अवसर नहीं मिले, लेकिन किसी योग्य व्यक्ति को परिवारवाद के नियम के आधार पर रोका नहीं जाना चाहिए!

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