नज़रिया. यह हो सकता है कि किसान आंदोलन से सत्ताधारी नेता बौखला गए हों, यह भी हो सकता है कि इसके कारण संतुलन खो बैठे हों, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि दलाल जैसे नेता, किसानों को लेकर जो बेशर्म बयान दे रहे हैं, वे किसान किस देश के हैं? और ऐसे बेशर्म बयानों पर पीएम मोदी खामोश क्यों हैं?

खबरें हैं कि विभिन्न विरोध प्रदर्शन स्थलों पर हुई किसानों की मौत पर हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल ने विवादास्पद बयान देते हुए कहा कि वे घर पर रहते तब भी उनकी मौत हो जाती.

किसानों की मौत के बारे में भिवानी में एक पत्रकार द्वारा पूछे गए प्रश्न पर दलाल ने कहा कि किसान घर रहते तब भी मर जाते. हालांकि, दलाल के इस बयान के बाद किसान संगठनों ने हरियाणा सरकार से मांग की कि वह उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त किया जाए, लेकिन लगता नहीं है कि उन पर कोइ्र कार्रवाई होगी?

दरअसल, किसानों को लेकर ऐसे कई विवादास्पद बयान आते रहे हैं, जिनका मकसद किसान आंदोलन को बदनाम करना है.

खबरों की माने तो प्रेस से बात करते हुए दलाल का कहना था कि- मेरी बात सुनिए, क्या एक से दो लाख लोगों में से छह महीने में दो सौ लोग नहीं मरते? कोई दिल का दौरा पड़ने से मर रहा है और कोई बीमार पड़ने से, यह बात अलग है कि बेशर्म नेताओं की तरह बयान देने के कुछ घंटों बाद ही दलाल ने कहा कि सोशल मीडिया पर मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है. मेरे बयान का गलत अर्थ निकाला जा रहा है. यदि कोई इससे आहत हुआ है तो मैं माफी मांगता हूं.

कई किसान संगठनों ने मंत्री के इस बयान पर आपत्ति व्यक्त की है. जय किसान आंदोलन के सदस्य योगेंद्र यादव ने मंत्री के इस बयान को अमानवीय करार दिया और कहा कि उन्हें ऐसा कहने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सत्ता में पहुंचने के बाद नेताओं का सियासी रवैया इस कदर बदल जाता है कि उन्हें यह भी होंश नहीं रहता कि वे किसके लिए और क्या बोल रहे हैं?

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