नीति गोपेंद्र. कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष  राहुल गांधी  अपने किसी भी दौरे की अपेक्षा इस बार राजस्थान के दौरे पर पहले की अपेक्षा कहीं अधिक परिपक्व दिखाई दिए . मोदी सरकार द्वारा संसद में पारित करवाए गए  तीन किसान विधेयकों के विरुद्ध चल रहें किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में अपनी पार्टी की रीति नीति के अनुरूप संसद के अंदर और बाहर इस बार उनके भाषण कसावट भरें रहें और भीड़ भरी सभाओं में श्रोताओं ने भी उन्हें  गंभीरता से लिया.

क़रीब एक साल बाद राहुल गांधी के राजस्थान में हुए इस दौरे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का व्यक्तित्व और अधिक उभर कर सामने आया. पिछले महीनों में अपनी सरकार को अपने ही बग़ावती साथियों और भाजपा की तथाकथित साज़िश से सुरक्षित बाहर निकालने में सफल रहने के साथ कांग्रेस हाई कमान की नज़रों में अपना क़द बढ़ाने वाले गहलोत ने इस बार राहुल गांधी के दौरे को इस प्रकार सुनियोजित तरीके से संजोया कि पूरी पार्टी और राहुल गांधी गदगद हो उठें और  उन्हें नई प्रतिष्ठा और पहचान मिली. साथ ही पूरे देश के किसानों में यह सन्देश भी गया कि कांग्रेस पार्टी इस बार पूरी तरह किसानों के समर्थन में खड़ी है. ज़मीनी नेता और सटीक रणनीति के लिए पहचाने जाने वाले अशोक गहलोत ने इस बार राहुल गांधी का दौरा राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की सीमाओं से लगें उन क्षेत्रों पर केन्द्रित रखा इससे देश में विशेष कर पंजाब हरियाणा और उत्तरप्रदेश के पंजाबी किसान जाट किसान और अन्य वर्ग के किसानों तक आंदोलन के पक्ष में ज़बर्दस्त सन्देश गया. दौरा इस प्रकार नियोजित किया गया कि आगे जाट वोटों का राजनैतिक धूर्वीकरण पार्टी के पक्ष में होवें.

राहुल गांधी भी संसद में किसानों के समर्थन में दिए अपने भाषण  साथ ही आंदोलन में मृतक किसानों को शहीद बता संसद में प्रतिपक्ष के सांसदों का मौन करवाने के तत्काल बाद अपने इस दौरे में तीनों कृषक बिलों को प्रधानमंत्री मोदी के उद्योगपति मित्रों को फ़ायदा पहुँचाने वाले बिल्स की अपनी बात को किसानों के गले उतारने  में सफल रहें.मुख्यमंत्री गहलोत ने राहुल गांधी के दौरे का सम्पूर्ण परिवेश ही ग्रामीण और किसानों की महापंचायत बना दिया और बिना कोई  पांडाल लगायें मंच पर कुर्सियों की जगह देशी खाट पलंग और बिसलरी बोतलों की जगह पानी से भरें मटकें और देशी लोटें रखवायें. टेक्टर-ट्रोली पर सभा का मंच बनवाया और टेक्टर पर बैठें श्रोता और किसानों को सम्बोधित करवाया . किसान पंचायतों में महिला किसानों और अन्य किसानों को भी भारी संख्या में जुटाया गया.

राहुल के दौरे ने गिराया असंतुष्टों  का ग्राफ

कांग्रेस के युवा हृदय राहुल गांधी 12 व 13 फरवरी को राजस्थान की दो दिन की यात्रा पर आकर चले गए. इस दौरान उन्होंने किसान पंचायतों में हिस्सा लिया तथा ट्रैक्टर रैली में भी शरीक हुए. राहुल गांधी के दौरे को लेकर कई प्रकार की कयासबाजी के दौर चल रहे थे क्योंकि पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके सहयोगियों की बगावत के बाद राहुल गांधी की यह पहली राजस्थान यात्रा थी. राहुल के दौरे ने एक बार फिर से असंतुष्टों का ग्राफ गिराया है. राहुल गांधी के बचपन से ही मित्र माने जाने वाले सचिन पायलट गहलोत सरकार में उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे. माना जाता है  कि बगावत के बाद उन्हें पार्टी में वापस लेना राहुल गांधी के कारण ही संभव हो पाया तथा भविष्य में उन्हें और उनके सहयोगियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी राहुल गांधी ही दिलवाएंगे लेकिन इस बार राहुल गांधी के दौरे में सचिन पायलट पूरी तरह अलग-थलग दिखे.उनकी यात्रा के पहले दिन पीलीबंगा की पहली किसान पंचायत में वे भाषण तक नहीं दे पाए जबकि दूसरी पंचायत जो पदमपुर में हुई वहां प्रभारी महासचिव अजय माकन ने अपने स्थान पर उन्हें बोलने का मौका दिलाया. मंच पर पायलट की राहुल गांधी से दूरी भी सबने देखी . राहुल गांधी का पहले दिन रात्री विश्राम गंगानगर में था पर पायलट पदमपुर की सभा के बाद जयपुर लौट गए तथा अगले दिन सुबह किशनगढ़ एयरपोर्ट पहुंचे.यात्रा के दूसरे दिन किशनगढ़ एयरपोर्ट पर पायलट को लाइन में खड़े रहकर राहुल गांधी का स्वागत करना पड़ा. बाद में रुपनगढ़ में वे राहुल गांधी के साथ ट्रैक्टर पर भी नहीं बैठ पाए. बाद में मकराना की सभा में उन्हें बोलने का मौका मिला.राहुल गांधी इस यात्रा में राजनीतिक रूप से परिपक्व दिखे.उन्होंने राजस्थान में चल रहे सत्ता संघर्ष को समझते हुए पायलट को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

कुल मिलाकर राहुल गांधी के दौरे से यह संदेश गया कि राजस्थान में आगे भी गहलोत और डोटासरा की जोड़ी ही कांग्रेस को चलाएगी तथा गहलोत सरकार को कोई खतरा नहीं है .राजनीति के जादूगर गहलोत सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का भरोसा हासिल करने में भी सफल हुए है और यह सन्देश दूर तलक जा रहा है कि अहमद पटेल के निधन से रिक्त हुए स्थान के लिए सोनिया गांधी और परिवार को गहलोत जैसा सबसे अधिक भरोसेमंद नेता मिल गया है.

राहुल गांधी के दौरे का असर आने वाले दिनों में गहलोत मंत्रिमंडल के विस्तार और राजस्थान में राजनैतिक नियुक्तियों में भी दिखेगा और लगता है वैसा ही होगा जैसा गहलोत चाहेंगे. वैसे प्रदेश में आगामी माहों में होने वाले चार उप चुनावों के परिणाम आने वाले दिनों में  प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा तय करने वाले होंगे . यदि इन चुनावों में सत्ताधारी दल कांग्रेस को अपेक्षित सफलता नहीं मिलती है तो असंतुष्टों को एक बार फिर हाई कमान के सामने अपनी बातें मनवाने का अवसर मिल सकता हैं. 

मुख्यमंत्री गहलोत के लिए यह अच्छी बात है कि भाजपा में चल रहें अंतरकलह का लाभ भी उन्हें मिल रहा है और आने वाले उप चुनावों में राहुल गांधी की यात्रा और किसान आंदोलन के साथ-साथ हाल ही हुए निकाय चुनावों में मिली विजय का फ़ायदा भी उन्हें मिलने की उम्मीद है.

मोदी चीन के सामने खड़े नहीं हो पाते हैं, लेनरेंद्र किन किसानों के सामने दीवार खड़ी कर देते हैं!

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