प्रदीप द्विवेदी. बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान ने जो आक्रामक राजनीति की थी, उसके नतीजे उन्हें अब लगातार भुगतने पड़ रहे हैं.
चुनाव के बाद जिस तरह से चिराग पासवान पाॅलिटिकली एक्सपोज हुए, उसके मद्देनजर उन्हें अपनी पुरानी सियासी हैसियत हांसिल करने में बहुत ताकत लगानी होगी, क्योंकि उन्होंने जिनका सियासी नुकसान किया वे तो उन्हें छोडेंगे नहीं और जिन्हें राजनीतिक फायदा हुआ वे उनकी ओर देख भी नहीं रहे हैं.
बिहार की राजनीति में गुरुवार का दिन बेहद खास रहा है, एनडीए में रहते हुए जनता दल यूनाइटेड को जोर का सियासी झटका देने वाली चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी में बड़ी बगावत हुई है.
खबरें हैं कि जेडीयू के पटना स्थित प्रदेश कार्यालय में आयोजित मिलन समारोह में एलजेपी के 18 जिलाध्यक्ष व 5 प्रदेश महासचिव सहित 200 से ज्यादा नेता जेडीयू में शामिल हो गए हैं. इसके पहले जनवरी में भी एलजेपी में बगावत हुई थी और तब पार्टी के 27 नेताओं ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया था.
बिहार के राजनीतिक इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी बगावत बताती है कि अनुभवी राजनेताओं के सियासी जाल में उलझ कर रह गए हैं चिराग पासवान.
एक ओर उनके विरोधी सीएम नीतीश कुमार हैं, जिनकी पार्टी लगातार चिराग पासवान को कमजोर करने, उलझाने में लगी है, वहीं दूसरी ओर पीएम नरेन्द्र मोदी हैं, जो उन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जिनके एकतरफा समर्थन में चिराग पासवान ने अपना पाॅलिटिकल करियर दांव पर लगा दिया था.
देखना होगा कि अनुभवी नेताओं की राजनीति चिराग पासवान को बिहार की सियासत में कहां पहुंचाती है!
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