नई दिल्ली. शिक्षा और नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने से संबंधित महाराष्ट्र के 2018 के कानून को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सोमवार से सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण के मामले पर सभी राज्यों को सुना जाना आवश्यक है.
ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है और पूछा है कि क्या आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाई जा सकती है? मराठा आरक्षण पर इस सुनवाई को 15 मार्च तक के लिए टाल दिया गया है.
पिछले साल 9 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने कहा था कि महाराष्ट्र के 2018 के कानून से जुड़े मुद्दों पर त्वरित सुनवाई की जरूरत है क्योंकि कानून स्थगित है और लोगों तक इसका फायदा नहीं पहुंच पा रहा है. बता दें कि नौकरियों और दाखिले में मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण प्रदान करने के लिए सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग कानून 2018 को लागू किया गया था.
सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले में अनुच्छेद 342ए की व्याख्या भी शामिल है. ऐसे में यह सभी राज्यों को प्रभावित कर सकता है. इसीलिए एक याचिका दाखिल हुई है. इसमें कोर्ट को सभी राज्यों को सुनना चाहिए. मुकुल रोहतगी ने कहा कि बिना सभी राज्यों को सुने इस मामले में फैसला नहीं दिया जा सकता है.
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. इस पीठ में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट भी हैं. इससे पहले की सुनवाई में पीठ ने कहा था कि पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर भी दलीलें सुनेगी कि इंदिरा साहनी मामले में ऐतिहासिक फैसला जिसे मंडल फैसला के नाम से जाना जाता है उस पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है या नहीं
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एमपीपीएससी मेडिकल ऑफिसर के कुल 727 पदों पर वैकेंसी
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