जयपुर. दयानंद सेवाश्रम राती तलाई, बांसवाड़ा में शिवरात्रि के अवसर पर वैदिक मंत्रों से यज्ञ किया गया तथा आदि गुरु शिव की आराधना की गई।
इस अवसर पर यज्ञ के मुख्य आचार्य जीववर्धन शास्त्री ने यज्ञ उपरांत अपने संबोधन में कहा कि आज ही के दिन आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद ने सच्चा शिव का ज्ञान पाया।
अपने धार्मिक प्रवृत्ति के पिता कृष्ण तरवाड़ी के संस्कारों के कारण 14 वर्ष के बालक मूल शंकर ने पूरे दिन उपवास किया तथा मध्य रात्रि की आरती के बाद भी जब अधिकतर भक्त सो गए तब भी यह बालक शिव की आराधना करता रहा, लेकिन थोड़े समय बाद बालक मूल शंकर ने देखा कि कुछ चूहे आए हैं और शिवजी के प्रसाद को खाकर उनके ऊपर खेल रहे हैं, यह देख बालक बहुत दुखी हुआ और उसने अपने पिताजी को जगा कर पूछा कि यह कैसे, शिव है, तब उनके पिताजी ने कहा कि यह तो शिवजी की मूर्ति है, सच्चे शिव के दर्शन तो बड़ी तपस्या से और वेदों के ज्ञान से प्राप्त होते हैं। मूल शंकर के मन में तभी से तपस्या करने और वेद का ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा घर कर गई और यही बालक बड़ा होकर स्वामी दयानंद बना।
इस अवसर पर मुख्य यजमान मुंबई से आए जैनेंद्र द्विवेदी तथा डॉक्टर हेमप्रभा द्विवेदी थे।
डॉक्टर युधिष्ठिर त्रिवेदी ने स्वामी दयानंद के प्रमुख ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश के बारे में तथा स्वामीजी के हिंदी व स्वदेशी तथा वेदों के महान प्रचारक के रूप में किए गए कार्यों के लिए उन्हें श्रद्धांजलि दी।
दयानंद सेवाश्रम के छात्रों, वेद मंदिर के छात्रों के अलावा डॉक्टर युधिष्ठिर त्रिवेदी, आरके पांडे, प्रद्युम्न त्रिवेदी, भारती त्रिवेदी, श्रीमती मृदुला एडवोकेट पंकज आदि ने भाग लिया।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-मरु महोत्सव-2021: सामूहिक सूर्य नमस्कार और योगाभ्यास ने दिया निरोगी राजस्थान का पैगाम!
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