वास्तुशास्त्र में बताई गई हर दिशा और उपदिशा का सम्बन्ध उस दिशा के किसी एक विशेष ग्रह से भी होता है. ज्योतिष शास्त्रीय व्याख्या के अनुसार हर ग्रह की अपनी प्रकृति, लक्षण और विशेषताएं होती हैं. वास्तु और दिशाओं का आपस में गहरा संबंध भी होता है,
-उत्तर-पश्चिम की उपदिशा को चन्द्र का स्थान माना जाता है. जिससे इस दिशा की प्रकृति, शीतल, मानी जाती है. ऐसे में घर या भवन के इस हिस्से में सफेद व सिल्वर रंग का इस्तेमाल करना बेहतर रहता है. इसके अलावा प्रतिदिन अपने आकार को बदलने वाले चन्द्रमा की इस दिशा में स्वागत-कक्ष, अतिथि कक्ष, बच्चों का कमरा, विवाह योग्य कन्या का कमरा आदि बनाने की सलाह दी जाती है. इस दिशा में छत के ऊपर यानी ओवरहैड वाटर स्टोरेज टैंक भी बनाया जा सकता है.
पूर्वोत्तर दिशा का ग्रह है बृहस्पति. बृहस्पति को ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा एव विकास के साथ भी जोड़ कर देखा जाता है. यही वजह है कि बृहस्पति को 'गुरु' भी कहा जाता है. इस दिशा को वास्तुशास्त्र में स्वतन्त्र, खुला, प्रकाशवान, स्वच्छ एव ठंडा रखने की सिफारिश की जाती है, क्योंकि यदि बृहस्पति या गुरु के स्थान की मर्यादा को बनाए रखा जाएगा तभी परिवार एव बच्चों का बौद्धिक विकास हो सकेगा. इस दिशा में अध्ययन कक्ष एव पूजा स्थान बनाना बेहतर माना जाता है.
8वास्तुशास्त्र के तीसरे कोण या दिशा में आता है किसी भी भवन या प्लाट का दक्षिण पूर्व एव पूर्व दक्षिण का भाग. भवन का यह हिस्सा मगल एव शुक्र ग्रह का संधि स्थल बनाता है. इनकी प्रकृति गरम व रंग लाल है. शुक्र ग्रह का सबध स्त्रियों से भी है इन्हीं कारणों से दक्षिण पूर्व दिशा में रसोई घर यानी पाकशाला का प्रावधान होना चाहिए. मगल एव शुक्र ग्रह गर्म प्रकृति के साजो सामान एव इसी से सबध क्रिया कलापों से ही सन्तुष्ट हो पाते हैं.
वास्तुशास्त्र की चौथी दिशा किसी भी मकान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित होती है. जिसे नैऋतय कोण भी कहते हैं. यह दक्षिण के मगल ग्रह से प्रारंभ होकर पश्चिम दिशा के शनि तक का स्थान राहु एव केतु के समान प्रभाव दिखाता है जो कि सामान्य बोल चाल में नकारात्मकता की ओर इशारा करता है. हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि किसी भी नकारात्मक वस्तु से बचने का आसान तरीका, उससे उलझना, जूझना या लड़ना न होकर उसके रास्ते में रुकावट खड़ी कर देना होना चाहिए.
इन सभी ग्रहों एव वास्तु ऊर्जा का सन्तुलन बनाए रखने के लिए वास्तुशास्त्र में बताए गए कुछ विशेष दिशा-निर्देशों पर भी ध्यान देना चाहिये. जैसे-
-सम्पूर्ण दक्षिण, पश्चिम व विशेषकर दक्षिण-पश्चिम के नैऋत्य दिशा को सदा भारी, ऊंचा व रुकावट जैसा प्रभाव बनाने वाला रखने की सस्तुति की जाती है व इसी दिशा में कभी भी मुख्य द्वार, खिड़की या खुला स्थान बनाने की सलाह नहीं दी जाती. जिसका उद्देश्य यहा पर अवरोध या रुकावट करने का होता है. इतना ही नहीं दक्षिण पश्चिम में सदा भारी ऊंची व मोटी दीवार बनाने एव यहा पर ऊंचे से ऊंचे तथा भारी से भारी पेड़ लगाने की भी सिफारिश की जाती है.
8सदा कल्याणकारी, शीतल, सकारात्मक एव मित्र ग्रहों की दिशाओं को खुला, हल्का, खाली व स्वच्छ रखें एव दुष्ट ग्रहों की सभी दिशाओं को हमेशा बंद बन्द व भारी रखने की सलाह भी वास्तुशास्त्र में दी जाती है.
8पाजिटिव इनर्जी को और अधिक बढ़ाने के लिए पूर्व एव उत्तर दिशाओं की चहारदीवारी के भीतर की ओर अपनी भवन की तरफ हमेशा हल्के, ग्लॉसी यानी कि हल्की चमक वाले पेन्ट का इस्तेमाल करें. साथ ही दक्षिण एव पश्चिम की दीवारों पर भवन की तरफ डल या मैट फिनिश के रंग-रोगन प्रयोग करना बेहतर रहता है. रंगों की प्रकृति के बारे में समझना आपके लिए बेहतर होगा.
-पूर्व दिशा में हरा, दक्षिण दिशा में लाल, पश्चिम दिशा में सफेद, सुनहरा, सिल्वर आदि तथा उत्तर दिशा में नीले रंग की प्रधानता या प्रमुखता वाले रंग या डिजाइन के परदों के इस्तेमाल से चारों दिशाओं की अपनी-अपनी प्रकृति से सामजस्य रखने वाले रंग पूरे परिवार में ग्रहों के अनुकूल सामजस्य बनाने में सहयोगी सिद्ध होंगे.
-Astrologer Nirmal choudhary
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-शालिग्राम का रोज पूजन करने से वास्तु दोष और बाधाएं अपने आप समाप्त हो जाती
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