नरेंद्र देवांगन. प्राकृतिक खूबसूरती और प्रकृति से जुड़ाव अगर आपको आकर्षित करता है तो केरल को भूलना नहीं। केरल का बहुत ही खूबसूरत स्थल है नीलांबुर। छुट्टियां गर्मी की हों या सर्दी की, केरल भारत के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में से एक है। कतार में उगे नारियल के पेड़, बैकवाटर और प्राकृतिक खूबसूरती से सराबोर केरल की हरी-भरी भूमि को रोमांटिक पर्यटन स्थल का दर्जा प्राप्त है।
परिवार के साथ छुट्टियां बिताने के लिए केरल सबसे अच्छा विकल्प है। यदि आप प्रकृति से जुड़ना चाहते हैं तो केरल में आपको प्राकृतिक खूबसूरती के साथ प्रकृति से जुड़े रोचक तथ्य जानने व देखने को मिल जाएंगे।
केरल के पर्यटन स्थलों में मशहूर है नीलांबुर का टीक म्यूजियम। रोचक जानकारियों से भरा यह म्यूजियम वर्ष भर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। म्यूजियम की रोचकता उसके प्रवेशद्वार से ही पता चल जाती है जहां 55 वर्ष पुराने सागौन वृक्ष की जटिल जड़ प्रणाली का शानदार दृश्य मौजूद है। इस म्यूजियम में 80 से 100 फुट लंबे सागौन के पेड़ों के बारे में विस्तृत जानकारी और उसके ऐतिहासिक तथ्य मौजूद हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इस संग्रहालय को विश्वभर में एक अलग तरह का म्यूजियम होने का दर्जा प्राप्त है। केरल वन अनुसंधान संस्थान परिवार में 1995 में निर्मित यह म्यूजियम दो मंजिली इमारत में है। म्यूजियम के निचले तल में संरक्षित कन्नीमारा सागौन की ट्रांसलाइट, जो कि परम्बिकुलम वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में पाया गया, सबसे पुराना सागौन का पेड़ है और माल्याथुर वन शाखा के सागौन के पेड़ों के जीवनकाल में बढ़ने वाले आकार का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही, यहां 160 वर्ष पुराना कोन्नोल्ली के प्लांट से लाया गया बहुत बड़ा सागौन वृक्ष भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
नीलांबुर में इस तरह का म्यूजियम होने की कुछ ऐतिहासिक वजहें भी हैं। दरअसल, नीलांबुर वह स्थान है जहां विश्व भर में सबसे पहले सागौन के पेड़ लगाए गए थे। 1840 में ब्रिटिश शासनकाल में नीलांबुर में सागौन के पेड़ों का रोपण कर उसकी लकड़ी को इंग्लैंड भेजा जाता था।
उरू नामक प्राचीन समुद्री पोत का लकड़ी से बना मॉडल तथा विभिन्न आकारों में सागौन की लकड़ी से बने खंभे भी म्यूजियम के निचले तल में देखने को मिलते हैं। यहां सबसे दिलचस्प नजारा नागरामपारा से लाए गए 480 वर्ष पुराने सागौन के पेड़ का है।
सागौन के पेड़ के अलावा इस संग्रहालय का दूसरा सबसे रोचक हिस्सा यहां मौजूद 300 प्रकार की अलग-अलग तितलियों और विभिन्न प्रकार के छोटे जंतुओं का संग्रह है। इसके साथ ही सागौन के पेड़ों की कटाई को दर्शाती पेंटिंग्स, खेती में उपयोग होने वाले पारंपरिक औजार और तस्वीरें म्यूजियम की रोचकता को और भी बढ़ा देती हैं।
म्यूजियम के अलावा नीलांबुर में पर्यटकों के लिए और भी कई ठिकाने हैं जहां घूम कर प्राकृतिक खूबसूरती का आनंद उठाया जा सकता है। नीलांबुर के पास ही स्थित नेदुनायकम अपने वनों हाथियों और लकड़ी से बने रेस्ट हाउस के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यदि आप नीलांबुर से कुछ यादें समेट कर ले जाना चाहते हैं तो कुछ ही दूरी पर मौजूद छोटे से गांव अरूवेकोड जाकर कुछ खरीदारी कर सकते हैं। यह स्थान अपने सुप्रसिद्ध मिट्टी के बर्तनों के लिए जाना जाता है। पर्यटक अपने लिए और अपने रिश्तेदारों के लिए यहां से सामान खरीदते हैं।
नीलांबुर में यात्रियों के ठहरने की अच्छी व्यवस्था है। यहां होटलों और रिजॉर्ट की सुविधा के साथ ही स्थानीय लोगों ने अपने ही घरों में भी किराए पर कमरे देने की व्यवस्था कर रखी है। यह सुविधा सस्ती होने के साथ ही आपको खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य देखने का भी मौका देती है। नीलांबुर के रेस्तरां में स्वादिष्ट और पारंपरिक मालाबारी भोजन का जायका भी आपको इस स्थान की बार-बार याद दिलाएगा।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-धार्मिक यात्रा पर जाने की कर रहे हैं प्लानिंग, तो एक बार पीपलकोटी जरूर जाएं
IRCTC का खास ऑफर, 12 दिन में करें 4 धाम की यात्रा
फ्री यात्रा पास का लाभ न लेने वाले रेल कर्मियों को मिलेगी नकद राशि, यह है कारण
उत्तराखंडः चारधाम यात्रा के दौरान अब श्रद्धालुओं की गाइड बनेगी पुलिस
कोरोना काल में भी अब हज यात्रा कर सकेंगे जायरीन, इन लोगों को मिली रियायत
Leave a Reply