जबलपुर, एमपी का बैनर

ऐसा है जबलपुर का जिला अस्पताल: आक्सीजन बाहर से खरीदकर लाना पड़ी, इंजेक्शन के लिए भी दौड़ाया, तब तक हो गई मरीज की मौत

प्रेषित समय :18:31:00 PM / Mon, May 3rd, 2021

पलपल संवाददाता, जबलपुर. मध्यप्रदेश के जबलपुर में जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के दावों व प्रयासों की जमीनी हकीकत कुछ और ही है, मेडिकल से लेकर जिला अस्पताल विक्टोरिया में मरीजों को भरती करने के लिए एप्रोच लगाना पड़ रही है, यदि भरती कर लिया गया तो उसे इतना परेशान किया जाता है कि वे घर में ही मरना पंसद कर रहा है, ऐसा ही एक मामला जिला अस्पताल विक्टोरिया में सामने आया है, जहां पर मरीज को आक्सीजन सिलेंडर बाजार से खरीदकर देना पड़ा, तब उसका इलाज शुरु किया गया, यहां तक कि स्टाफ ने इंजेक्शन भी बाहर से खरीदकर लाने के लिए कहा, जब परिजन बाहर इंजेक्शन लेने गए तो कहा गया कि अस्पताल से ही मिलेगा. परिजन इंजेक्शन के इंतजाम में इधर से उधर भटकते रहे, इस बीच मरीज मानसिंह की मौत हो गई. कु ल मिलाकर इंजेक्शन की कालाबाजारी बाहर से नहीं बल्कि जिला अस्पताल से ही हो रही है, यह बात अलहदा है कि स्वास्थ्य विभाग के मुखिया व जिला प्रशासन के आला अधिकारियों को कुछ दिखाई नहीं दे रहा है.

                         बताया गया है कि सेठ गोविंददास जिला अस्पताल विक्टोरिया में मानसिंह ठाकुर निवासी पुराना शोभापुर को वार्ड नम्बर दो के पलंग नम्बर 13 में भरती कराया गया है, इसके लिए मानसिंह के परिजनों को काफी एप्रोच लगाना पड़ी तब कहीं यह संभव हो सका, मानसिंह को भरती किए जाने के बाद जो अमानवीय व्यवहार किया गया वह दिल दहलाने वाला रहा, मानसिंह को आक्सीजन लगाई जाना थी, जिसके चलते स्टाफ ने कहा कि आक्सीजन की व्यवस्था कर दो तो आक्सीजन लगा दी जाएगी, यहां पर आक्सीजन नहीं है, इतना सुनते ही परिजन घबरा गए, किसी तरह भागकर आक्सीजन सिलेंडर की बाहर से व्यवस्था कर लाकर दिए, जब मानसिंह को आक्सीजन लगाई गई, यहां तक कि इंजेक्शन की बात आई तो भी स्टाफ ने कहा कि इंजेक्शन लिखकर दिया कि बाजार से लेकर आओ, यहां पर इंजेक्शन नहीं है, परिजन इंजेक्शन के लिए बाजार में भटकते रहे, हर जगह यही कहा गया कि इंजेक्शन की व्यवस्था अस्पताल से ही होगी, परिजन व रिश्तेदार भटकते रहे, लेकिन उन्हे इंजेक्शन नहीं मिला और रात 11.30 बजे के लगभग पीडि़त मानसिंह की मौत हो गई.

परिजनों ने आरोप लगाया कि यदि समय पर आक्सीजन व इंजेक्शन मिल जाता तो मानसिंह की जान को बचाया जा सकता था लेकिन जिला अस्पताल विक्टोरिया में स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा आक्सीजन व इंजेक्शन के लिए भटकाया गया, जिसके चलते समय पर इलाज नहीं मिल पाया और उनकी मौत हो गई. जब सरकारी अस्पतालों में मरीजों के साथ इस तरह का व्यवहार किया जा रहा है तो अन्य संस्थानों के हालात को बेहतर समझा जा सकता है. मानसिंग की मौत ने एक बार फिर यह बात तो साफ कर दी कि स्वास्थ्य विभाग के मुखिया व जिला प्रशासन के मुखिया द्वारा किए जा रहे दावे की आक्सीजन पर्याप्त मात्रा में है, इंजेक्शन के लिए भटकना नहीं होगा, सिर्फ  कागजों तक ही सीमित है, इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. जिला अस्पताल विक्टोरिया से लेकर मेडिकल में मरीजों को न तो समय पर आक्सीजन मिल रही है न ही जीवन रक्षक माना जाने वाला रेमडेसिविर इंजेक्शन, जब मरीजों को इन सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है तो यहां पर होने वाली सप्लाई पर सवालिया निशान उठने लगे है, क्या मेडिकल व विक्टोरिया से ही आक्सीजन व रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी की जा रही है, क्या इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, या फिर सबकुछ सांठगांठ के तहत हो रहा है.

अच्छे नहीं है जबलपुर के हालात-

खैर जो भी इस तरह के मामले सामने आने के बाद यह बात तो साफ है कि  जबलपुर के हालात बेहतर नहीं है, यह बात अलहदा है कि कागजों में सबकुछ बेहतर बताया जा रहा है, राजधानी भोपाल में उच्चाधिकारियों के सामने पेश किए जाने वाले आंकड़े भले ही कुछ हो, लेकिन जबलपुर में हालात पूरी तरह से बिगड़ चुके है, खासतौर पर मेडिकल से लेकर विक्टोरिया अस्पताल के, जहां से एक आम आदमी को ज्यादा उम्मीद है वह सीधे यहां पर आ रहा है क्योंकि कोरोना संक्रमण का इलाज निजी अस्पतालों में कराना, हर आम के लिए संभव नहीं है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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