सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण किया खत्म, कहा- 50% की सीमा तोड़ना समानता के खिलाफ

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण किया खत्म, कहा- 50% की सीमा तोड़ना समानता के खिलाफ

प्रेषित समय :11:42:09 AM / Wed, May 5th, 2021

मुंबई. महाराष्ट्र सरकार की ओर से दिए गए मराठा आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने आरक्षण पर सुनवाई करते हुए कहा है कि इसकी सीमा को 50 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता। इसके साथ ही अदालत ने 1992 के इंदिरा साहनी केस में दिए गए फैसले की समीक्षा करने से भी इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को खत्म करते हुए कहा कि यह 50 फीसदी  की सीमा का उल्लंघन करता है। अदालत ने कहा कि यह समानता के अधिकार का हनन है। इसके साथ ही अदालत ने 2018 के राज्य सरकार के कानून को भी खारिज कर दिया है।

दरअसल महाराष्ट्र सरकार ने 50 फीसदी सीमा से बाहर जाते हुए मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का ऐलान किया था। राज्य सरकार की ओर से 2018 में लिए गए इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थीं, जिन पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह फैसला सुनाया है।

'असाधारण स्थिति में आरक्षण'

पांच जजों की पीठ ने चार अलग-अलग फैसला दिया है, लेकिन सभी ने माना कि मराठा समुदाय को आरक्षण नहीं दिया जा सकता. आरक्षण सिर्फ पिछड़े वर्ग को दिया जा सकता है. मराठा इस कैटेगरी में नहीं आते. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जस्टिस गायकवाड कमिशन और हाईकोर्ट दोनों ने असाधारण स्थिति में आरक्षण दिए जाने की बात की है, लेकिन दोनों ने नहीं बताया कि मराठा आरक्षण में असाधारण स्थिति क्या है.

संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई 15 मार्च को शुरू की थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 फीसदी आरक्षण उचित नहीं है और रोजगार में आरक्षण 12 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए और नामांकन में यह 13 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए. हाईकोर्ट ने राज्य में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा था?

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि महाराष्ट्र के पास मराठाओं को आरक्षण देने की विधायी क्षमता है और इसका निर्णय संवैधानिक है, क्योंकि 102वां संशोधन किसी राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की सूची घोषित करने की शक्ति से वंचित नहीं करता.

वर्ष 2018 में लाए गए 102वें संविधान संशोधन कानून में अनुच्छेद 338 बी, जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के ढांचे, दायित्वों और शक्तियों से संबंधित है, तथा अनुच्छेद 342ए, जो किसी खास जाति को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा घोषित करने की राष्ट्रपति की शक्ति और सूची में बदलाव की संसद की शक्ति से संबंधित है, लाए गए थे.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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