शनि व केतु की युति बहुत संघर्षपूर्ण योग माना गया है, जिस जातक की कुंडली में यदि शनि और केतु एक साथ हों तो ऐसे में व्यक्ति की आजीविका या करियर बहुत संघर्ष पूर्ण होता है. इस जातक को पूरी मेहनत करने पर भी आपेक्षित परिणाम नहीं मिलते. कई बार तो जातक अपनी आजीविका का क्षेत्र बदलने पर मजबूर हो जाता है.
शनि ग्रह और केतु ग्रह की युति को समझने के लिए सर्वप्रथम हमें दोनों ग्रहों को समझना होगा.
शनि ग्रह आयु, न्याय, नौकरी, सेवा, अपमान, और निष्ठा के कारक ग्रह है. ये कारावास के भी कारक ग्रह है. राजनीति में इन्हें आमजन का कारक ग्रह भी माना गया है एवं केतु को रहस्यमयी विषयों का कारक ग्रह माना गया है. यह मोक्ष कारक ग्रह भी है. धनु राशि में केतु उच्चस्थ होते हैं तो बुध की मिथुन राशि इनकी नीच राशि है.
केतु को मंगल के समान माना गया है, शनि इसके सबसे बड़े शत्रुओं में से एक है. हालांकि दोनों ही व्यक्ति ग्रहों को आध्यात्मिक मार्ग की ओर अग्रसर करने वाला और मार्गदर्शन करने वाला माना गया है, दोनों ही ग्रहों की प्रवृत्ति है की ये दोनों ग्रह पापी व्यक्तियों को सजा, कष्ट देकर कठिन सबक देते है.
शनि जहाँ व्यक्ति को सबसे अलग थलग कर देता है, वही केतु रिश्तों का त्याग कर वैराग्य देता है. केतु हमें अतीत को फिर से देखने के लिए मजबूर करता है. जैसा की सर्वविदित है की शनि अपनी साढ़ेसाती, शनि ढैय्या अथवा अपने गोचर के समय व्यक्ति को अपने किए गए कर्मों की जिम्मेदारी लेने और सात्विक मार्ग का चयन कर, सही कार्य करने के लिए मजबूर कर देता है.
शनि ग्रह और केतु दोनों ग्रहों का एक सिद्धांत जो एक समान है वह है- “जो बोया है वही काटना पडेगा” अर्थात अपने पाप कर्मों की सजा स्वयं ही भुगतनी होगी. “अपनी गंदगी स्वयं ही साफ करनी होगी”. यह उक्ति उन लोगों के लिए एक सन्देश है जो वर्त्तमान में मानसिक, शारीरिक और आर्थिक कष्ट झेल रहे है. जो जीवन परिस्थितियों से हताश और निराश हो चुके है.
जिन्हें अतीत ने चोट पहुंचाई है, पूर्व जन्म के बुरे कर्मों का फल जो इस जन्म में कष्टों के रूप में प्राप्त कर चुका रहे है. शनि केतु युति का यह समय कर्मों की सफाई या कर्ज चुकाना अथवा कठिन समय से सीख लेने वाला भी कहा जा सकता है.
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जानें ज्योतिष आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया से 8 मई 2021 तक का साप्ताहिक राशिफल
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