आतंकी घटनाओं पर अपनी सीरीज़ 'स्टेट ऑफ़ सीज' की अगली कड़ी के रूप में ज़ी5 'स्टेट ऑफ़ सीज- टेम्पल अटैक' लेकर आया है. 'स्टेट ऑफ़ सीज-26/11' जहां मुंबई हमलों पर आधारित 8 एपिसोड की वेब सीरीज़ थी, वहीं 'टेम्पल अटैक' को अहमदाबाद के अक्षरधाम मंदिर पर 2002 में हुए आतंकी हमले से प्रेरित फ़िल्म कहा गया है.
मगर, टेम्पल अटैक सिर्फ़ एक आतंकी घटना पर बनी फ़िल्म नहीं है, बल्कि यह एक हॉस्टेज ड्रामा है और ऐसा कहने की पर्याप्त वजह हैं, जिसे अक्षरधाम मंदिर हमले की पृष्ठभूमि में स्थापित किया गया है. हालांकि, डिस्क्लेमर में इसे 'एक सच्ची घटना' से प्रेरित फ़िल्म बताया गया है. कहीं दावा नहीं किया है कि फ़िल्म अक्षरधाम मंदिर की घटना से ही प्रेरित है या उस पर आधारित है. इसीलिए, फ़िल्म में अक्षरधाम मंदिर को कृष्णा धाम मंदिर रहा गया है और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को मनीष चोक्सी.
'स्टेट ऑफ़ सीज- टेम्पल अटैक' के कथानक को जिस तरह से बदला गया है और कहानी जिस तरह से पेश की गयी है, वो किसी भी पृष्ठभूमि में दिखायी जा सकती थी. इसके लिए सच्ची घटना से प्रेरित कहने की भी कोई ज़रूरत नहीं थी. बहरहाल, फॉर्मूला फ़िल्मों के तमाम 'क्लीशेज़' होने के बावजूद स्टेट ऑफ़ सीज- टेम्पल अटैक पकड़कर रखती है और एनएसजी ऑपरेशन के कुछ दृश्य रोमांचित करने में कामयाब रहते हैं. सिर पर कफ़न बांधकर दूसरे मुल्क़ में सिर्फ़ आतंक मचाने आये आतंकियों को अटैक के बीचों-बीच एक मुस्लिम किरदार से मज़हब और भाईचारे का उपदेश दिलवाना बहुत और नाटकीय लगता है.
टेम्पल अटैक की पटकथा विदेशी लेखकों विलियम बोर्थविक और साइमन फैनराज़ो ने लिखी है, जबकि संवाद फ़रहान सलारुद्दीन के हैं. फ़िल्म का सारा ज़ोर एनएसजी कमांडोज़ के एक्शन को दिखाने पर गया है, जिसकी वजह से मंदिर के अंदर बंधकों के इमोशनल दृश्य असर नहीं छोड़ते.
इन दृश्यों में जज़्बात की वो गहराई नज़र नहीं आती, जो ऐसी हॉस्टेज सिचुएशन में होना चाहिए. विवेक दहिया के किरदार द्वारा आतंकी की ओर बिना पिन निकाले हैंड ग्रेनेड फेंककर उसे बाहर निकलने के लिए मजबूर करने वाला दृश्य मज़ेदार है. एक्शन दृश्यों को केन घोष ने सिनेमैटोग्राफर की मदद से अच्छे से शूट किया है.
अक्षय ने इस फ़िल्म के साथ ओटीटी डेब्यू किया है और ख़ुद से जूझ रहे एनएसजी कमांडो के रूप में ठीक लगे हैं. हालांकि, एक ही रैंक वाले साथी मेजर समर चौहान (गौतम रोडे) की तुलना में वो उम्रदराज़ दिख रहे हैं. विवेक दहिया, कैप्टन बग्गा के रोल में ठीकठाक काम है.
'स्टेट ऑफ़ सीज- टेम्पल अटैक' की सबसे अच्छी बात इसकी अवधि है. फ़िल्म एक घंटा 49 मिनट में ख़त्म हो जाती है, जिसकी वजह से कुछ दृश्यों को छोड़कर फ़िल्म कसी हुई मालूम पड़ती है और बोर होने का मौक़ा नहीं देती. इस फ़िल्म को अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले की घटना के स्क्रीन रूपांतरण के बजाए सामान्य हॉस्टेज ड्रामा मानकर देखेंगे तो बेहतर होगा और फ़िल्म का लुत्फ़ उठा पाएंगे.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-कान फिल्म फेस्टिवल में छा गईं सिया पारिख
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